विमुद्रीकरण के विरोध में, तमिलनाडु को छोड़कर (डीएमके ने बारिश का हवाला दिया था), कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने पूरे भारत में इस दिन को काला दिवस नामांकरण कर शोक मनाया। वही दूसरी ओर, सरकार ने इस दिन को ”एन्टी ब्लैक मनी डे” के रुप में मनाया। क्या हमें पुराने मुद्रा नोटों की नोटबंदी पर शोक मनाना चाहिए, जिसके कारण हमें कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा या फिर इस तथ्य का जश्न मनाना चाहिए कि विमुद्रीकरण के कारण काला धन रखने वालो को एक अच्छा सबक सिखाया गया? क्या भारत सरकार द्वारा लिया गया, यह निर्णय इतना बुरा था कि भारत के गरीबों को इसका सबसे अधिक सामना करना पड़ा और जिसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी बुरी तरह से प्रभावित हुई, जो संभवतः अब ठीक नहीं हो सकती? क्या इस फैसले ने आतंकवाद पर पूर्ण रोक लगाई और भारतीय अर्थव्यवस्था से ब्लैक मनी को समाप्त किया? आइए प्राचीन भारतीय परंपरा का पालन करते हुए, विचार-विमर्श करें।
अक्सर हम पुरानी भारतीय परंपराओं पर आधारित कहानियों का उपयोग नैतिकता प्रदान करने के लिए करते हैं, ऐसी ही एक कहानी की आज हम बात करेगें। रमन और कृष्णन की कहानी, दोनों ही तमिलनाडु तट पर एक अज्ञात गांव में रहते थे। रमन एक अमीर आदमी था। वह कई उद्योगो, व्यवसायों, हजारों एकड़ कृषि भूमि आदि का एक अकेला मालिक था। स्वतंत्र भारत की आर्थिक परंपरा के अनुसार, वह अपनी सग्रहित संपत्ति में से मात्र कुछ करों का भुगतान करता था। रमन ने अपनी संपदा को सुरक्षित रूप से बचाएं रखने के लिए समुद्र तट के नजदीक एक फार्म हाउस का निर्माण करवाया, जहां उसने अपने धन के 90% भाग को सोने के रुप में परिवर्तित करके इकत्रित कर लिया, जैसे कि सभी पुराने अमीर तमिलों द्वारा किया जाता था। कृष्णन, रमन के विला-डी-कोस्टा के परिसर के बाहर, ताड़ की पत्तियों से बनी एक झोपड़ी में रहते थे। एक कयामत का दिन आया जब सागर के देवता ने अपनी भयानक लहरों से आस-पास के सभी समुद्र तटीय इलाकों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया, इस तबाही का शिकार कृष्णन, रमन दोनो के घर भी हुए, जो बुरी तरह मिट्टी में मिल गए। जब समुद्र की तेज लहरे शान्त हो गई, तब कृष्णन ने फिर से कुछ ताड़ के पत्तों को इकट्ठा किया और एक नई झोपड़ी तैयार की और पुन: अपना जीवन पहले की तरह व्यतीत करने लगे, क्योंकि कृष्णन के लिए यह कोई बड़ा नुकसान नहीं था। दूसरी तरफ रमन था, जो लगभग एक सप्ताह तक सो नहीं सका। रमन अपनी खोई हुई सम्पत्ति के बारे में सोचता रहा और रोता रहा तथा आर्थिक और मानसिक रुप से तनावग्रस्त हो गया। बेशक, रमन का परिवार उसके साथ था और उसका व्यवसाय अभी भी एक समृद्ध स्थिति में था। फिर भी, हर साल रमन उस समुद्रतट पर अपना शोक प्रकट करने के लिए जाता था। रमन, समुद्रतट पर कृष्णन को देखता है, जो पूर्ण चन्द्रमा की रोशनी में गाना गा रहा था। रमन ने कभी भी यह समझने का प्रयास नहीं किया कि कृष्णन्न, जो अपना सब कुछ खो चुका था, वह उस बात के लिए शोक नहीं मना रहा था और अपने जीवन का भरपूर आन्नद ले रहा था। वही, कृष्णन ने अपनी झोपड़ी का पुनर्निर्माण करने और पहले के दिनों की तरह जीवन व्यतीत करने और पून: धन एकत्र करने की निरर्थकता का एहसास कराने की शक्ति प्रदान करने के लिए भगवान का धन्यवाद किया।
संक्षेप में, यह विमुद्रीकरण के बाद के प्रभाव की कहानी है। स्टीव फोर्ब्स, मुख्य संपादक, जो दुनिया भर के धनी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्होंने विमुद्रीकरण को “कुत्सित और अनैतिक” कहा। भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, जो खुद को भारतीय आर्थिक सुधारों के वास्तुकार मानते हैं, उन्होंने विमुद्रीकरण को “संगठनात्मक लूट और वैधानिक खसोट” कहा था। विमुद्रीकरण ने राहुल गांधी जैसे बड़े नेताओं को पहली बार एटीएम के बाहर लगी लोगों की कतार में खड़े रहने के लिए मजबूर कर दिया था, जिन्होंने विमुद्रीकरण के विषय में यह कहा कि इस असुविधा की वजह से लोगों की मौतें हो रही हैं। यदि विमुद्रीकरण के विषय को गंभीरता से देखा जाए तो औसत दरजे के भारतीयों को, विशेष रूप से गरीबों को सरकार के इस फैसले से कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। विमुद्रीकरण से सबसे अधिक प्रभावित प्रवासी श्रमिक हुए। कुछ महीनों के भीतर ही फोर्ब्स ने अपने एक अन्य लेख के द्वारा यह बताया कि कैसे भारत विमुद्रीकरण के संकट से स्वंय को बचा रहा है।
सत्य विमुद्रीकरण की आलोचना और सरकार के दावों के बीच झूल रहा है।
सामान्य भारतीयों ने विमुद्रीकरण को झेला है। लेकिन वह अभी भी अनियमित मानसून, नियमित सूखा, सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार, डेंगू के मौसमी प्रकोप, चिकन-गुनिया, उच्च करों, सड़क दुर्घटनाएँ, सांप के काटने और दूध सहित मिलावटी भोजनों जैसे इसी तरह के कई समस्याओं से ग्रस्त हैं, जिनकी सूची अंतहीन है। सामान्य भारतीय व्यक्ति के लिए, विमुद्रीकरण एक समस्या के रूप में सामने आया। जिसमें, अच्छी बात ये है कि यह विमुद्रीकरण नामक समस्या उनकी अन्य रोजमर्रा की समस्याओं की तरह जीवन चर्या नहीं बनी, यह समस्या एक निश्चित अवधि के बाद टल गई। विमुद्रीकरण के कारण हुई असुविधा को वे भूल गए और अपने रोजमर्रा के संघर्ष को जारी रखा तथा सभी चीजों को भुलाकर आगे बढ़ गए।
एक सामान्य भारतीय इस बात से परेशान नहीं होता कि जीडीपी बढ़ रहा है या घट रहा है। उन्हे इस बात से भी कोई परेशानी नहीं है कि मुद्रा विनिमय दर कहा जा रही है। वे केवल इसलिए परेशान थे कि, उन्हे एक बजाज स्कूटर या एक गैस कनेक्शन के लिए छह महीने तक इंतजार करना पड़ा था। वे उस एक ट्रेन के लिए घंटों तक इंतजार करते थे, जिसमें उन्हें बैठने के लिए सीट तक नहीं मिलती। वे गावों में रहते थे जहाँ उन्हे एक शिक्षक का इंतजार करना पड़ता था जो उनके गाँव के स्कूल में पढ़ाता था। वे अपने गांव में उन डाक्टरों का पीढ़ियों से इंतजार करते हैं जो सरकार द्वारा गांव में लगवाए गए शिविरों में आए थे। विमुद्रीकरण के दौरान केवल उन लोंगो को परेशानी का सामना करना पड़ा, जो कभी किसी लाइन में नही खड़े हुए थे, जिन्होंने कभी किसी भी चीज के लिए इंतजार नहीं किया था तथा जिनका कभी भी किसी सरकारी अधिकारी द्वारा अपमान नहीं किया था, स्वाभिक रूप से उन लोगों को विमुद्रीकरण से परेशाना हुयी। विमुद्रीकरण ने उन लोगों को बेईमानी से इकट्ठा की गई संपत्ति को रखने के नए तरीकों के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया। बेशक, वे ऐसा करने में सफल हुए और इस बात की पुष्टि हुई है कि आरबीआई ने मनी रिटर्न बैंकिंग प्रणाली के तहत 99% तक धनराशि वापस प्राप्त कर ली है।
हांलाकि विमुद्रीकरण से हुए लाभों का सरकार ज्यादा दावा नहीं करती लेकिन वास्तविकता में विमुद्रीकरण के परिणामस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण लाभ हुए है। बेशक, विमुद्रीकरण ने काले धन की उत्पत्ति को नहीं रोक दिया। भ्रष्टाचारियों ने नए नोटों को रिश्वत में लेना शुरू कर दिया। वे लोग, सरकार के द्वारा लिए गए विमुद्रीकरण जैसे नियमों से बचने के लिए भविष्य में सोना या हीरे जवाहरातों में अपनी संपत्ती को बदल सकते हैं। लेकिन विमुद्रीकरण उस पैसे को वापस लाया, जो अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा के समानांतर चल रहा था।
विमुद्रीकरण ने बैंकों को ऋण दरों को कम करने के लिए मजबूर किया, जो कि आरबीआई नहीं कर सकी थी। उस समय विमुद्रीकरण ने लोगों को एहसास दिलाया की अपनी संपत्ती को नकदी के रूप में रखना व्यर्थ है। विमुद्रीकरण के कारण लोगों ने करों का भुगतान करना शुरू कर दिया।
इस प्रकार, कृष्णन जैसे औसत दरजे के भारतीयों के लिए, विमुद्रीकरण एक सामान्य घटना थी, जो एक साल पहले घटित हुई थी। लेकिन, रमन जैसे लोगों के लिए, यह एक सामान्य घटना नहीं एक दुर्घटना थी, जिसके कारण उन्होंने अपनी वे सभी चीजें खो दी, जो उन्हें सबसे अधिक प्रिय थीं, जैसे कि उनकी अपार धन-सम्पत्ति। इसलिए, चिदंबरम और राहुल गांधी आदि और उनके जैसे कई अमीर लोग हर साल इस दिन को याद करेंगे और अपनी अपार धन-सम्पत्ति के इस तरह चले जाने के गम में शोक मनाएंगे।