दीदी गयीं थी कोर्ट केंद्र के इस फैसले का विरोध करने, कोर्ट ने जमकर लगाई फटकार

सर्वोच्च न्यायालय ममता आधार

ममता बनर्जी के आधार के विरोध पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रुख दिखाया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जो केंद्र की नीतियों (किसी भी और हर नीति) की एक प्रत्यक्ष आलोचक हैं और वह कभी भी सरकार की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ती, उन्हें आधार विवाद में सर्वोच्च न्यायालय में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में पश्चिम बंगाल की सरकार की दलील की आलोचना की। न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि “किस आधार पर उन्होंने संसद द्वारा यथोचित रूप से लागू किए गए कानून को चुनौती दी है?”

पश्चिम बंगाल ने आधार को जोड़ने की अनिवार्यता के लिए केंद्र की नीति को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका प्रस्तुत की थी।

पश्चिम बंगाल सरकार का प्रतिनिधित्व वकील कपिल सिब्बल ने किया, जिन्होंने याचिका की मान्यता की व्याख्या की। सिब्बल ने कहा कि राज्य द्वारा केंद्र के फैसले को चुनौती देने में कुछ भी गलत नहीं था, परन्तु वे न्यायालय को विश्वास दिलाने में नाकाम रहे।

अदालत ने पूछा – कि क्या होगा यदि कल केंद्र राज्य की कानून विधि की मान्यता को चुनौती देगा? न्यायपीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार से याचिका में सुधार करने के लिए कहा। सिब्बल ने न्यायालय की मनोदशा समझते हुए याचिका में सुधार करने के लिए अपनी सहमति दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह सूचना दे दी कि संसद द्वारा विधिपूर्वक लागू किए गए कानून को चुनौती देना एक राज्य के लिए नाजायज है। केंद्रीय शासन से संबंधित निर्माण में अनुच्छेद 32 के अनुसार राज्य संसद द्वारा लागू कानून को चुनौती नहीं दे सकता। संविधान में अनुच्छेद 32 में एक प्रावधान है जहाँ एक व्यक्ति केंद्र द्वारा पारित किए गए कानून को चुनौती दे सकता है। परन्तु यह अधिकार राज्य सरकारों को नहीं दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने ममता बनर्जी से कहा कि अगर वह चाहती हैं को व्यक्तिगत रूप से याचिका दायर कर सकती हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद, तृणमूल कांग्रेस के विधायक और दल के महासचिव मोहुआ मित्रा ने एक व्यक्तिगत नागरिक की तरह बैंक द्वारा जारी किए गए सभी निर्देशों के खिलाफ एक याचिका प्रस्तुत की, जो याचिका अपने सभी खाताधारकों को 31 दिसंबर तक अपने संबंधित खातों के साथ अपने आधार कार्ड को जोड़ने के लिए की गयी है, जिसके बिना खातों को बन्द करना होगा। मित्रा ने नए खाताधारकों को अपने आधार नंबर को अपने बैंक खातों से जोड़ने के लिए समय की भी मांग की।

सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर से ममता बनर्जी के आधार विरोध के लिए उन पर उत्तेजित हुआ। वह बार-बार यही निरर्थक बातें करती रही हैं, कि “मैं अपने फोन का त्याग कर दूंगी लेकिन इसे आधार के साथ नहीं जोड़ा जाएगा”। ममता ने भाजपा के इस ‘गंदे’ राजनीतिक खेल को उजागर करने के लिए पश्चिम बंगाल की सरकार ने अपने नागरिकों से केंद्र के निर्देशों का पालन न करने को कहा। उन्होंने इसे लोगों की गोपनीयता के उल्लंघन करने वाला निर्णय भी कहा और यह भी कहा कि सरकार को नागरिकों के निजी विवरणों में झांकने का कोई अधिकार नहीं है।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक नागरिक राघव तन्खा द्वारा मोबाइल नंबर को आधार नंबर से जोड़ने की अनिवार्यता को लेकर दायर की गयी शिकायत के सम्बन्ध में केंद्र को नोटिस जारी किया है और केंद्र को 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा है। पश्चिम बंगाल ने केंद्र के उस निर्णय को भी चुनौती दी थी, जिसमें सरकार की सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के लिए आधार को जोड़ना अनिवार्य किया गया था।

केंद्र ने उत्तर दिया कि उन्होंने इसलिए 31 मार्च 2018 तक आधार को जोड़ने की समय सीमा तय की है, ताकि जिनके पास अभी तक आधार नहीं है, वो इसे प्राप्त कर सकें। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद ममता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने उनकी याचिका को खारिज नहीं किया और वह न्यायालय के फैसले का सम्मान करती हैं। जो निश्चित रूप से बुद्धिमानी की बात है।

केंद्र का कहना है कि विभिन्न सरकारी सेवाओं, रिटर्न दाखिल, कर चालान, मोबाइल फोन नंबर और अन्य वित्तीय लेनदेन के लिए आधार को जोड़ना जरूरी है। केंद्र के निर्देशानुसार लाखों भारतीय पहले ही अपने 12 अंकों के आधार नंबर को जोड़ चुके है। अदालत में एक याचिका दायर करने वाले व्यक्तिगत कार्यकर्ता ने कहा कि यह जल्दबाजी का फैसला है, जिसने कई गरीब लाभार्थियों को राशन जैसी सरकार की नीतियों से वंचित कर दिया है।

केंद्र ने राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि कोई भी भोजन से वंचित न रहे। लेकिन आधार की अनिवार्यता पर केंद्र के कड़े रुख ने निर्णय के खिलाफ अदालत में कई याचिकाओं को आमंत्रण दिया है। यदि उच्चतम न्यायालय व्यक्तियों की सुनवाई करता है और उनके पक्ष में निर्णय देता है तो इसे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के लिए आंशिक जीत के रूप में देखा जा सकता है, तब तक उन्हें इस मामले में केंद्र की सूचनाओं का पालन करना होगा। तब तक ममता बनर्जी यह खेल हार चुकी हैं, जो कि अक्सर पश्चिम बंगाल को अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के लिए एक सुरक्षित स्वर्ग बनाने के लिए उनके आलोचकों द्वारा लक्षित होती रही हैं, ऐसा कहा जाता रहा है पश्चिम बंगाल सरकार अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वैधता प्रदान करती है।

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