भारत में अगर सबसे अधिक भ्रमित पार्टी नामक कोई पुरस्कार होता, तो शिवसेना ने निश्चित रूप से उसको जीत लिया होता। शिवसेना एकमात्र राजनीतिक दल हैं, जिसने एक महीने के भीतर ही विमुद्रीकरण पर दो अलग-अलग राय पेश की, १४ नवंबर २०१६ को शिवसेना ने कहा कि “अमानवीय और अव्यवस्थित” विमुद्रीकरण से देश में “वित्तीय अराजकता” उत्पन्न हुई है। “१२५ करोड़ भारतीय बिना भोजन और पानी के झुलसाने वाली गर्मी सहन करते हुए कतारों में खड़े हैं। “फिर, २२ नवंबर २०१६ को, प्रधानमंत्री मोदी को मिलने के बाद शिवसेना के विचार में महत्वपूर्ण बदलाव आया। उन्होंने कहा, “हमारे सांसदों की प्रधानमंत्री के साथ एक अच्छी बैठक हुई। प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें आश्वासन दिया है, एनडीए में सब कुशल मंगल हैं। उन्होंने आगे विमुद्रीकरण को एक ‘साहसिक और ऐतिहासिक’ कदम के रूप में वर्णित किया।
वर्तमान में, शिवसेना के विचारों में फिर से मौसमी बदलाव आया है और अब वे दावा कर रहे हैं कि विमुद्रीकरण के बाद ‘लोग भिखारी हो गए हैं’। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में भी लिखा गया है, कि भारतीय विमुद्रीकरण के बाद भिखारी हो गए हैं। जो सिर्फ एक अजीबोगरीब बयान है।
भाजपा ने सिर्फ महाराष्ट्रीयन राजनीति में भारी पारगमन नहीं किया, बल्कि राज्य में एक सरकार भी बनाई है, शिवसेना शायद वास्तविकता के इस सदमे से अभी तक नहीं उबरी है। शिवसेना अभी भी उस युग की पुनरावृत्ति चाहती है, जब बालासाहेब महाराष्ट्र में एनडीए सरकार को नियंत्रित करते थे। कांग्रेस की दोस्ती और ममता बनर्जी जैसी कूट-धर्मनिरपेक्षताओं के साथ मुलाकात के बाद, शिवसेना, महान बालासाहेब के द्वारा स्थापित राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी पार्टी कि परछाई तक नहीं हैं, और शाह और मोदी से दया की उम्मीद रखना भी बेवकूफी की बात है।
शिवसेना को पता है कि वे तेजी से राज्य पर नियंत्रण खो रहा है, तथा वे वास्तविकता को समझने में असफल रहे हैं साथ साथ वे एजेंडों, मुद्दों और सार्वजनिक समर्थन से महरूम रहे हैं। उनके बयान, जैसे विमुद्रीकरण वाली ये नयी टिपण्णी, इस बात को स्पष्टता से दर्शित करते है की यह पार्टी क्या थी और क्या बन गयी। आज कल, भाजपा पर हर शिव सैनिक, छोटा या बड़ा, प्रहार कर रहा है जिसका नेतृत्व संजय राउत कर रहे है। अफसोस की बात तो यह है कि मौजूदा प्रमुख, उद्धव ठाकरे भी इसके बारे में कुछ नहीं कर रहे हैं। भाजपा के सहयोगी के रूप में शिवसेना की भूमिका संदिग्ध है, क्योंकि जैसी हरकतें वे हर समय करते है उससे ऐसा ही प्रतीत होता है कि वे विपक्ष से जा मिले है। केवल भाजपा जैसी सहनशील पार्टी के पास इतना धैर्य है कि वे निरंतर अपमानों को सह सके। घटिया तरह से सुर्खियों में रखकर, ये क्या साबित करना चाहते हैं।
शिवसेना संभवतः यह दिखाना चाहती है कि उसमें भाजपा के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत है और उसके शाबाशी के बिना भाजपा कोई कार्य नहीं कर सकती, जो कि हास्यास्पद और बेतुका है।
गठबंधन से पीछे हटने की धमकी, से कुछ हासिल नहीं हुआ है। शिवसेना ने राज्य के हर बड़े फैसले पर लगातार विपक्षी दलों से बाहें मिला कर, भाजपा का विरोध किया है। उनकी खोखली बातें, गंभीरता और प्रतिक्रियाशीलता की कमी और घमंड़ी रवैये के कारण, उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय लग रहा है।
यदि विमुद्रीकरण के बारे में बात की जाए, तो ८ नवंबर को इसकी पहली सालगिरह थी। संख्याएं झूठ नहीं बोलती, हमारे पास आपसे साझा करने के लिए कुछ संख्याएं हैं।
~*बेनामी संपत्ति के १६२६ करोड़ रुपये जब्त कर लिए गए
~*२.२४ लाख शेल कंपनियों को बंद करा दिया गया
~*१७.७३ लाख ऐसे संदिग्ध मामलों की पहचान की गई जहाँ नकदी जमा, टैक्स प्रोफाइल से मेल नहीं खाती
~*विमुद्रीकरण के बाद १६००० करोड़ रूपये बैंक में वापस नहीं आए
~*२९,३१३ करोड़ रुपए की अघोषित आय का पता करके उन्हें दाखिल किया
~*देश की कुल आबादी के ०.०००११% आबादी ने कुल नकदी का ३३% जमा किया।
~*कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में ७५% की गिरावट आई है।
~*मजदूरों की नगदी रहित लेनदेन को सुनिश्चित करने कि लिए, ५० लाख नए बैंक खाते खोले गए
~*टैक्स के आधार को ६६.५३ लाख से बढ़ाकर ८४.२१ लाख कर दिया गया, जिससे २७% की वृद्धि हुई
~*अगस्त २०१६ की तुलना में डिजिटल भुगतान में ५८% की वृद्धि हुई
~*उधार दरों में लगभग १०० अंकों की गिरावट के साथ ऋण सस्ता हो गया
संख्याएँ बताती है कि देश कि जनता देश के प्रधानमन्त्री के साथ थी, सिवाय उनलोगों के जिनका सारा जमा काला धन एक ही दिन में बर्बाद हो गया। शिवसेना, यह उस राष्ट्र के चिन्ह नहीं है जिनकी आवाम एक रात में ही बर्बाद हो गयी।
जब जागो, तभी सवेरा – यह एक बहुत प्रसिद्ध बोली है, इसका अर्थ यह है कि जब आप जागते है तभी से आपका दिन शुरू हो जाता है। शिवसेना बहुत लंबे समय से सोई हुई है, इसे अपनी गहरी नींद से जागने की और एक मजबूत सहयोगी एवं एक दोस्त की भूमिका निभाने की जरूरत है। क्योंकि बीजेपी के दृष्टिकोण से यदि गठबंधन टूट भी जाता है तब भी पार्टी नहीं हारेगी, लेकिन शिवसेना के पास बस एक ही ऐसा राज्य है, जहाँ पर उसका सिक्का चलता है। उन्हें एक भ्रमित पार्टी होने से बचना चाहिए और उस कार्य को सम्पन्न करना चाहिए जिसे उनके संस्थापक, महान बालासाहेब ने शुरू किया था।