हाल ही में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर दिल्ली पुलिस पर उनका नियंत्रण होता, तो वे सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वाले लोगों को अच्छा सबक सिखाते।
आज दिल्ली पुलिस हमारे पास होती तो इनकी नाक में दम कर देते…..इनकी-ऐसी-की-तैसी कर देते।
“केजरीवाल ने ऑनलाइन ट्रोल करने वालों का जिक्र करते हुए कहा कि यदि दिल्ली पुलिस मेरी सरकार के नियंत्रण में होती, तो मैं इन ट्रॉल करने वालों को एक बड़ी परेशानी में डाल देता … उन्हें एक अच्छा सबक सिखाता। अरविंद केजरीवाल २४ नवम्बर दिन शुक्रवार को आम आदमी पार्टी (आप) के संस्थापक सदस्य और सोशल मीडिया के प्रमुख, अंकित लाल द्वारा लिखित एक पुस्तक ‘इंडिया सोशल‘ के लॉन्च (प्रमोचन) पर संविधान क्लब में गए थे, जिस दौरान उन्होंने यह सब बोला।
अरविंद केजरीवाल ने ऑनलाइन ट्रोल करने वालों से परेशान होकर कहा, कि “२०११ में अन्ना हजारे के नेतृत्व में चलाए जाने वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर सोशल मीडिया पोस्ट के द्वारा जो प्रतिक्रिया दी गई थी, वह जनता की मनोदशा को प्रदर्शित करती थी। “अब, जहाँ तक मेरे ट्वीट्स की बात है, तो मेरे ट्वीट्स पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया का मानक इतना अधिक नीचे गिर चुका है कि वास्तविक टिप्पणियां भी इसमें खो जाती हैं,।”
केजरीवाल के इस बयान के बाद, दोबारा यह सवाल चर्चा में आ गया है कि- “क्या दिल्ली पुलिस को राज्य सरकार के पास आना चाहिए या नहीं और सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों को कैसे नियंत्रित करें”?
सबसे पहली बात तो यह है कि हम आम आदमी पार्टी (आप) की इस दोषपूर्ण राजनीति के जाल में फंसने वाले नहीं हैं। हम इस बात पर भी चर्चा नहीं करेंगे कि इंटरनेट ट्रॉलिंग के खिलाफ कार्रवाई करने के आधार पर राज्य सरकार के हाथों में दिल्ली पुलिस का नियंत्रण एक अच्छा विकल्प है या नहीं। सबसे पहले मूल बातें – अरविंद केजरीवाल या कोई भी अन्य व्यक्ति ऑनलाइन उत्पीड़न के लिए ट्रोल करने वालों के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करवा सकता है या उस अपराध को कानून के उपयुक्त प्रावधान के तहत दायर किया जा सकता है। आईटी अधिनियम २००० के ६६ ए के तहत गलत इरादे से ऑनलाइन उत्पीड़न करना एक दंडनीय अपराध है। अपराधी को आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी करार भी किया जा सकता है, जैसे कि आत्महत्या के लिए उकसाने पर धारा ३०६ लगाई जाती है इत्यादि।
लेकिन हमें ट्रॉलिंग को भी समझना चाहिए, क्योंकि यह बहुत ही सामान्य शब्द है। इंटरनेट की भाषा में, ट्रोल करने वाला व्यक्ति वह है जो किसी इन्टरनेट समूह (जैसे एक न्यूज ग्रुप, मंच, चैट रूम, या ब्लॉग) पर उत्तेजक, अप्रासंगिक या मुद्दे से हटकर संदेश पोस्ट करके विवाद फैलाता है, झगड़ा पैदा करता है और भावनात्मक प्रतिक्रिया द्वारा पढ़ने वालों को भड़काता है या किसी सामान्य चर्चा में बाधा डालता है। अक्सर देखा गया है कि ट्रोल सिर्फ मनोरंजन के लिए किया जाता है।
अध्यन कहते हैं, कि “ट्रोल बैटमैन फिल्म का वो विलेन जोकर है जो कि अराजकता के एजेंट की तरह है। ट्रोल करने वाले इन्टरनेट पर हमेशा दुखी ही दिखाई पड़ते हैं और ये निःसंदेह बुरे भी हैं। जितना ही वे लोगों को परेशान करते हैं और उसके बदले उनको जितनी ज्यादा गुस्से से प्रतिक्रिया देते हैं, वे इससे उतना ही खुश होते हैं।
लेकिन क्या इंटरनेट पर सही जवाब देना, या वास्तविक खण्डन करना, या विषय के ढोंगों, या पूर्वाग्रहों का अर्थ ट्रोलिंग या ऑनलाइन उत्पीड़न के रूप में लगाया जा सकता है? यह स्पष्ट है कि तथाकथित लोकप्रिय सुपरस्टार, प्रसिद्ध पत्रकार, न्यूज एंकर, राजनैतिक नेता और बुद्धिजीवी आलोचना या विरोधी प्रश्नों पर सहज महसूस नहीं करते, जो कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर काफी लोकप्रिय है। यह वीवीआईपी नस्लवाद का एक प्रकार है, उनकी एक भावना यह है कि वे सामान्य जांच से उपर हैं और उन्हे यह लगता है कि उनके फ्लिप फ्लॉप और पूर्वाग्रहित बयानों के लिए उनसे कोई जवाब नहीं मांगेगा क्योंकि वे बड़ी फालोइंग वाले एक लोकप्रिय सेलिब्रिटी हैं। लेकिन वे आगे बढ़कर प्रत्येक असंतोष जनक बात को “ऑनलाइन ट्रोल” के रुप में पेश कर सकते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कई ऐसे पत्रकार और नेता हैं जो असुविधाजनक प्रश्नों के सकारात्मक जबाव देने के बजाए या उस पर तर्क करने के बजाय, प्रश्न पूछने वाले पर ही आरोप लगाते हैं और गाली गलौच करते हैं। इसके बाद वे एक स्वयं को हर सत्य का अधिकारी बताते हुए, सरकार से हर मामूली मुद्दों और झूठे तथ्यो को लेकर सवाल पूछते हैं और स्वयं को अभिव्यक्ति की आजादी के अगुआकार के रूप में प्रदर्शित करते हैं। कहने का मतलब और सीधी सी बात ये है की उनकी अभिव्यक्ति की आजादी, हमारी अभिव्यक्ति की आज़ादी से कहीं ज्यादा ज़रूरी है।
अरविंद केजरीवाल अपने विरोध प्रदर्शन और धरना देने के दिनों में अभिव्यक्ति की आजादी और संवाद के मुखर और उत्साही समर्थक थे। लेकिन अब ऐसा लगता है कि आलोचना करना, प्रश्न उठाना और दूसरों को जिम्मेदार ठहराना इत्यादि केवल उन्हीं के दिव्य अधिकार हैं और बाकी सभी लोग एक ट्रोल हैं।
लेकिन जवाबी बयानबाजी और धमकी देने की राजनीति “आप” का ट्रेडमार्क रहा है। मई २०१४, नागपुर में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, “पूरी मीडिया बिकी हुई है” और यदि वे सत्ता में आए तो वह भ्रष्ट व्यापारियों और मीडिया को जेल में डाल देंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुनियादी शिष्टता और सार्वजनिक व्यवहार के मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए केजरीवाल को कड़ी फटकार लगायी थी। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा मुख्यमंत्री और पांच अन्य नेताओं के खिलाफ दायर मानहानि के एक दावे में, केजरीवाल के पूर्व वकील राम जेठमलानी द्वारा की गयी टिप्पणियों का हवाला देते हुए अदालत ने मुख्यमंत्री से कहा, “पारस्परिक जांच के ढोंग के लिए लज्जाजनक और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किसी भी व्यक्ति के लिए नहीं किया जा सकता; इससे बहुत ही सख्ती से निपटा जाना चाहिए।”
लेकिन यहाँ पर विवादास्पद मुद्दा यह है कि, क्यों केवल आम आदमी और कुछ इंटरनेट उपयोगकर्ता ही ऑनलाइन ट्रोल के रूप में पहचाने जाते हैं जबकि सोशल मीडिया पर बार-बार वही व्यवहार करने के बावजूद लोकप्रिय लोगों की पहचान ट्रॉल के रूप में नहीं होती है?
तो कौन ट्रोल के रूप में परिभाषित किया जाना है और कौन नहीं? मैं यहाँ कोई भी व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं कर रहा हूं और अरविंद केजरीवाल द्वारा की गई कुछ ट्वीट्स दिखाकर पाठकों द्वारा फैसला करने के लिए इसे पाठकों के ज्ञान पर ही छोड़ रहा हूँ। देखते हैं कि वह ट्रोल के रूप में उत्तीर्ण होते है या नहीं?
जनवरी 2014 में केजरीवाल ने संगीत निर्देशक विशाल दादलानी के ट्वीट “एक मूर्ख और एक हत्यारे के बीच फंस गया …भारत, अब क्या?” को रीट्वीट किया
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर उनके कार्यालय पर छापा मारा। जिसके लिए उन्होंने प्रधान मंत्री को ‘कायर और मनोरोगी’ तक कह डाला।
सितंबर 2016 में, एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित एक लेख पर कथित भारत-विरोधी ट्वीट के लिए आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लिया गया, जिस लेख ने जम्मू और कश्मीर के उरी में हुए आतंकवादी हमलों के बाद मामला पाकिस्तान के पक्ष में बना दिया।
लेख ने दावा किया कि पाकिस्तान नहीं, बल्कि भारत उरी हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग हो रहा था। केजरीवाल ने ट्वीट किया और कहा “उत्कृष्ट लेख। उरी मामले पर, पाकिस्तान की तुलना में भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग लगता है।”
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी पर यह आरोप लगाते हुए एक कार्टून ट्वीट किया, कि वे देश में वास्तविक मुद्दों को चकमा दे रहे हैं। भगवान हनुमान का अपमान करने पर लोगों ने केजरीवाल को बहुत खरी खोटी सुनाई।
ऐसा लगता है कि केजरीवाल को ट्रॉलिंग (साजिश) करने की आदत है। तो क्या होगा अगर दिल्ली पुलिस उनके नियंत्रण में आये?पहले किसे गिरफ्तार कराएँगे सीएम केजरीवाल?