भाजपा ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गुजरात और हिमाचल जैसे राज्यों में विपक्ष धुल चटाते हुए अब 2018 चुनावों के लिए चरम सीमा पर अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं, जहां वे न सिर्फ पूर्वोत्तर के रूप में एक नयी राजनीतिक जमीन पर विपक्षी दलों का सफाया करना चाहेगें बल्कि इसके साथ ही उनका उद्देश्य यह भी होगा कि पुनरुत्थानशील विपक्ष द्वारा अपने गढ़ों को कुचलने से बचाया जाए।
2018 में भाजपा निम्नलिखित राज्यों में चुनाव लड़ेगी: –
1.) कर्नाटक
2.) मध्य प्रदेश
3.) राजस्थान
4.) छत्तीसगढ़
5.) त्रिपुरा
6.) मेघालय
7.) मिजोरम
उत्तर पूर्व के बारे में एक अलग लेख में विचार-विमर्श किया जायेगा, इस विश्लेषण का मुख्य फोकस पहले चार राज्य अर्थात कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर होगा। पहले राज्य पर कांग्रेस का शासन है और अन्य तीन राज्य भाजपा के प्रमुख गढ़ हैं। तो इन चार राज्यों में बीजेपी का परचम लहराने की क्या संभावना है और 2019 के आगामी चुनावों पर इसका क्या प्रभाव होगा ?
निम्नलिखित चार राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन कुछ ऐसा हो सकता है: –
कर्नाटक: –
भाजपा के लिए अपना खोया हुआ मैदान पुनः प्राप्त करने और 2019 के चुनावों तक अपने गौरव को और बढाने के लिए यह राज्य एक सुनहरे अवसर से कम नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा की कर्नाटक राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री सिद्दारमैया लोगो के चहेते तो बिलकुल भी नहीं हैं, ये ठीक वही काम कर रहे हैं जिन कामों की वज़ह से अखिलेश यादव को 2017 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। कर्नाटक राज्य के मुख्यमंत्री श्री सिद्दारमैया के शासनकल में राज्य का अत्यधिक अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और कानून एवं व्यवस्था तंत्र का एक स्पष्ट विघटन देखा जा रहा है।
निम्नलिखित कुछ प्रमुख मुद्दे हैं जिसके वजह से सत्तासीन कर्नाटक सरकार की काफी किरकिरी हुई है, इनमे राजनीतिक मंडल और नौकरशाही मंडल में अनियंत्रित भ्रष्टाचार और गुजरात की कुख्यात KHAM नीति की तर्ज पर AHINDA नीति की शुरूआत जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय तथा निचली जातियों को आरक्षण देकर और हिन्दुओं को जाति के आधार पर विभाजित करके बहुसंख्यक समुदाय की एकता को नष्ट करना है, एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
इसके अलावा कुछ प्रमुख मुद्दे हैं:
–> वन्य उत्पादों, विशेषकर मूल्यवान लाल चंदन तस्करी की बड़े पैमाने पर तस्करी।
–> पत्रकारों के बोलने पर पाबंदी, प्रमुख उदाहरण रवी बेलागेरे, अनिल राजू और शिव अरूर।
–> कर्नाटक के किसानों को कर्ज माफी नहीं मिली तथा सूखे में नष्ट फसलों के लिए 1 रुपये का मामूली मुआवजा मिला
–> केपीएमई अधिनियम जिसका डॉक्टरों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया
–> महिलाओं के खिलाफ अपराध
–> बैंगलोर में पढता अतिक्रमण, प्रदूषण, स्वच्छता की कमी, बजबजाते नाले और टूटी हुई सड़कें
–> राज्य में हिंदुओं की पूर्ण रुप उपेक्षा और अल्पसंख्यकों पर अत्यधिक ध्यान
क्या इस समय भाजपा के पास एक मौका है? हां, भाजपा के पास 2018 कर्नाटक चुनाव में स्वयं को बेहतर साबित करने का एक सुनहरा मौका है, ऐसा तब हो सकता है जब यह अपने सिद्धांतों से कोई समझौता न करे।
यूपी, मणिपुर, असम, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि राज्यों में भाजपा ने सफलता प्राप्त करने के लिए जो किया था, सबसे पहले, उसी आधार पर इन्हें एक मजबूत, स्थानीय नेतृत्व परियोजना बनाने की आवश्यकता है। एक और बात जो ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि उन्हें बस एक बार ही सत्ता में नहीं आना है बल्कि आगे भी बने रहना है इसलिए अपना ट्रम्प कार्ड जैसे आक्रामक राष्ट्रवाद को दरकिनार नहीं करना होगा क्यूंकि यही समय की मांग है, खासकर कर्णाटक जैसे राज्य के लिए।
इस समय भाजपा के पास दो दिग्गज नेता हैं जो कि भाजपा के लिए तुरुप के इक्के की तरह हैं जिसमें कांग्रेस के निष्ठावान एस.एम. कृष्णा, जो कुछ समय पहले ही भाजपा में शामिल हुए हैं, वे कर्नाटक के हिमांता बिस्वा सरमा हो सकते हैं जिनकी अपने वोक्कलिगा समुदाय में एक महत्वपूर्ण पहचान है। इसके अलावा, फायरब्रांड बी एस येदियुरप्पा ने भी भाजपा में वापसी कर ली है, जिन्हें 2012-13 के कुख्यात खनन घोटाले में लगाए गए आरोपों के चलते पार्टी से बाहर कर दिया गया था। वे भाजपा के अभियान के लिए एक आक्रामक चेहरे के रुप में उभर कर सामने आ सकते हैं। कुलमिला कर 113 सीटों के जादुई आंकड़े को पार करने के लिए भाजपा बहुत अच्छी तरह से तैयार है।
2.) मध्य प्रदेश –
एक अन्य राज्य – मध्य प्रदेश, जहाँ भाजपा के हाथ में फिर से बड़ा खजाना लगने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि इस राज्य में भाजपा को सत्ता विरोधी हवाओं का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश की तर्ज पर एक आक्रामक अभियान और मध्य प्रदेश राज्य के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाजपा की नैय्या पार लगा सकते हैं, ये चौहान ही हैं जिन्होंने अपने 15 साल के शानदार शासन के दौरान मध्य प्रदेश राज्य को कुख्यात बीमारू राज्य के दर्जे से सफलतापूर्वक छुटकारा दिलाया है।
हालांकि यह सच है कि मध्य प्रदेश कुछ गलत कारणों की वजह से खबरों में भी रहा है। जिसमें व्यापम घोटाला प्रमुख रहा, यह बड़ी ही सावधानी से तैयार की गई एक रणनीति के तहत शुरु किया गया। किसान आन्दोलन भी सरकार की सरदर्दी का कारण रहा लेकिन इन षड्यंत्रों को चौहान सरकार हराने में कामयाब रही।
मध्य प्रदेश राज्य में हो रहे कई सुधारों का भाजपा को प्रभावी ढंग से लाभ उठाना चाहिए, चाहे वह पुरोहित्याम योजना की शुरुआत हो, जो यह सुनिश्चित करता है कि जाति, एक हिंदू पुजारी बनने के मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न नही करेगी, या चाहे वो दलित लड़कियों के लिए सुकन्या योजना की शुरुआत हो, या नाबालिग लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न करने में दोषी पाए जाने वाले अपराधियों को मौत की सजा का फैसला हो। यहाँ तक कि 2016 की एक प्रसिद्ध मुठभेड़, जहाँ भोपाल की सेंट्रल जेल से फरार 8 खतरनाक सिमी आतंकवादियों को भोपाल एटीएस की बहादुर पुलिस ने मार गिराया था, उपरोक्त मुद्दो के साथ-साथ इस पर भी चर्चा की जा सकती है। ऐसी सकारात्मक घटनाओं पर ध्यान देने के साथ-साथ एक आक्रामक अभियान पर भी ध्यान देने की जरुरत है, जो निश्चित रूप से भाजपा को 165 सीटों से ज्यादा सीटें दिला सकता है जो भाजपा को अपने पिछले चुनाव में भी प्राप्त हुईं थीं।
कर्नाटक की तरह, मध्य प्रदेश भी 2019 के चुनावों के लिए भाजपा की जीत का रास्ता साफ कर सकता है, बशर्ते कि वे अपने राज्य में मतदाताओं की वृद्धि करने के लिए हार्दिक पटेल या जिग्नेश मेवानी जैसे जातीय राजनीति करने वाले लोगों को पनपने न दें।
3.) छत्तीसगढ़: –
यह एक ऐसा राज्य है, जिसे भाजपा के लिए जीतना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। रमन सिंह को सत्ता विरोधी लहर से लड़ने में काफी कठिनाई होगी। रमन सिंह हाल ही में मीडिया के आकर्षण का केन्द्र रहे, जब उन्होंने पत्रकार विनोद वर्मा को एक सी.डी रखने के संबंध में उनकी गिरफ्तारी करवाई थी, जिसमें कुछ क्लिप्स में एक बड़े भाजपा नेता कथित रूप से संदिग्ध अवस्था में दिखाई दे रहे थे। हालाँकि वर्मा स्वयं संदेह के घेरे में हैं, जिनपर अब जबरन वसूली करने का आरोप लगा है। फिर भी इस तरह के कार्यों से भाजपा को चुनाव जीतने के अभियान में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
बस्तर क्षेत्र से सीआरपीएफ कमांडेंट आईजीपी एस.आर.पी. कल्लुरी जैसे अधिकारियों का, बेला भाटिया जैसी माओवादी समर्थक द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण, स्थानांतरण करवाने की वजह से रमण सिंह की छवि को बड़ा नुकसान हुआ है। इस क्षेत्र में कल्लूरी ने माओवादिओं को कुचलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस बार छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के लिए बिना किसी गठबंधन के सरकार बनाने में आवश्यक 46 सीटें हासिल करना काफी मुश्किल होगा।
वैसे, छत्तीसगढ़ में अभी सबकुछ हाथ से नहीं गया है। यदि रमन सिंह ‘सलवा जुडुम‘ को पुनः संचालित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं और छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ सीआरपीएफ और बीएसएफ की इकाइयों को अधिक शक्ति प्रदान कर सकते हैं तो इसका फायदा उन्हें ज़रूर होगा। और अगर रमण सिंह पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी द्वारा किये जा रहे जातिवादी राजनीती पर कठोर कार्रवाई करते हैं तो यह भाजपा के लिए एक बड़ा फायदे का काम साबित हो सकता है, भाजपा अगर उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए एक प्रचंड प्रचार करे तो जीत क्या, अच्छा बहुमत भी प्राप्त कर सकती है।
4.) राजस्थान: –
यह भाजपा का एक ऐसा गढ़ है जहां भाजपा के लिए दोबारा जीत हासिल कर पाना बेहद मुश्किल होगा, इसके लिए राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो भाजपा के लिए एक चोटिल ऐड़ी के समान बन गयीं हैं। हाल ही में उनके द्वारा लिए गए कुछ फैसलों ने उनकी 2018 में जीत की राह को मजबूत करने की बजाए राज्य में उनके समर्थन को और कमजोर कर दिया है।
हालांकि यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि 1993 के बाद से राजस्थान में लगातार कोई एक ही सरकार सत्ता में नहीं रही। हर पांच साल बाद राजस्थान में सरकार बदलती रहती है। और वर्तमान में रुझान भाजपा के खिलाफ हैं, इन विवादित फैंसलों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है:
1.) हिंदू समुदाय के खिलाफ अपराधों को रोक पाने में विफलता
2.) अनियमित नौकरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं
3.) विधानसभा में आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2017 की प्रस्तावना, जो सरकार को तानाशाही के समान अधिकार देता है और जिसने कथित रूप से राजनेताओं को आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से बचाने का काम किया है
4.) पशु वध करने के लिए बड़े पैमाने पर गायों की तस्करी को देखते हुए भी अंजान बनना और इसके बजाए ‘गौ रक्षकों’ को और कमजोर करना
5.) फिल्म ‘पद्मावती’ के ट्रेलर को रिलीज करने के बाद फैली अराजकता को नियंत्रित करने के प्रबंधन में विफलता
6.) आनंदपाल मुठभेड़ और राजपूत वोट बैंक की निराशा
7.) शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता आदि जैसे बुनियादी मानकों में कोई महत्वपूर्ण वृद्धि दिखाने में असफलता
अगर इस तरह के मामले लगातार सामने आते रहैं, तो मुझे संदेह है कि भाजपा, जिसने 2013 में हुए राजस्थान चुनाव में 200 सीटों में से 163 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया था, इस बार 101 के बहुमत अंक को भी पार कर पायेगी क्या?
खैर, भाजपा ने 2018 के चुनाव हेतु चरम सीमा पर अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। यदि भाजपा सभी चारों राज्यों ( कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान ) में अपनी जीत दर्ज करने में सफल हो जाती है, तो 2019 में होने वाले वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा का 300 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने वाला लक्ष्य अत्यधिक सहज और सीधा हो जाएगा।
रिपोर्ट बहुत अच्छी है पर ये बात सही ही है के राजस्थन में भाजपा का जीतना लगभग नामुमकिन ही है.
कृपया सपस्ट करैं के मैं अपने लेख इसमें कैसे व्यक्त कर सकता हूँ