देश भर के भाजपा समर्थकों के लिए सोमवार की कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन एक डरावनी सुबह थी। शुरूआती रुझानों में भाजपा कांग्रेस पर बढ़त बनाये हुए थी। एक समय तो ऐसा लगा कि भाजपा 130 सीटों के आंकड़े को भी पार कर जाएगी, और तभी पासा पलटा। कांग्रेस, भाजपा से थोडा आगे हुई और तुरंत ही 92 सीटों के बहुमत के आंकड़े की ओर तेजी से आगे बढ़ी। एक समय तो ऐसा था जब कांग्रेस 20 सीटों के अंतर से आराम से भाजपा से आगे चल रही थी। 5 स्टार लुटियंस पत्रकारों के उदास चेहरे ख़ुशी से खिल उठे थे और यह प्रसिद्द पंक्ति “ये शुरुआती रूझान हैं, अभी परिणाम का इंतज़ार करते हैं”, जो कि कांग्रेसी प्रवक्ताओं का प्रिय तकिया कलाम रही है, अब भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा बार बार बोली जा रही थी। सेंसेक्स 800 पॉइंट नीचे गिर गया। लेकिन धीरे धीरे सधे तरीके से भाजपा ने वापसी की और तेजी से कांग्रेस से आगे बढ़ चली।खैर अब तो नतीजे सामने है,कम अंतर से ही सही परन्तु भाजपा ने गुजरात का चुनावी महासमर जीत ही लिया!
लेकिन, डर वास्तविक था। पिछले चुनावों की तुलना में भाजपा ने कुछ सीटें खोयी हैं, काफी संख्या में वोट भी कटे। सीट तालिका समझने के लिए काफी है कि गुजरात में दो दशकों में पहली बार भाजपा कमजोर हुई। भाजपा अपने 150 सीटों के निर्धारित लक्ष्य से काफी पीछे रह गयी। जबकि पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित थे, समर्थकों में विश्वास था और भाजपा की सोशल मीडिया टीम उल्लास में थी लेकिन प्रधानमंत्री मोदी चिंतित थे। वो समझ रहे थे कि उनके गृह राज्य में हर चीज़ ठीक नहीं चल रही थी। भाजपा 22 साल की सत्ता विरोधी लहर के खिलाफ लड़ रही थी। भाजपा एक प्रत्यक्षतः नाराज कारोबारी समुदाय के खिलाफ लड़ रही थी। भाजपा को गुजरात के उन 52 प्रतिशत मतदाताओं से अपील करने में कठिनाई हो रही थी, जिन्होंने अपने आधे से ज्यादा जीवन में केवल भाजपा को ही सत्ता में देखा था। पटेल समुदाय नाराज़ था। दलितों को एक नया मसीहा मिल चुका था। अनुसूचित पिछड़े वर्ग के पास भी मजबूत नेता था। और इस सब से ऊपर ये था कि नरेन्द्र मोदी इस बार मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं थे।
यदि इस कांटे की टक्कर का कोई प्रत्यक्ष संकेत है तो यह है कि भाजपा गुजरात में हारने सकती थी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसे दो हफ़्तों में पलट दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे गुजरात में प्रचार करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। वो भाजपा के स्टार प्रचारक के अपने पुराने अवतार में पूरी तरह से आ गये थे। और प्रचार शुरू करने से पहले उन्होंने नींव तैयार करनी शुरू कर दी थी।
मोदी सरकार ने जीएसटी दरों को काफी कम किया और कई प्रक्रियाओं को बड़े पैमाने पर सरलीकृत किया। गुजरात के व्यापारी वर्ग, खासकर सूरत और इसके आस पास, ने जीएसटी और इसके त्रुटिपूर्ण परीक्षण और कार्यान्वयन पर अपनी अप्रसन्नता दिखाई थी। जीएसटी में अंतिम समय में किये गये बदलावों ने व्यापारियों को एक सुविधापूर्ण सन्देश दिया। इसीलिए शायद भाजपा ने सूरत में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आप को प्रचार अभियान में झोंक दिया था। इस बार वहां कोई मोदी लहर नहीं थी और प्रधानमंत्री मोदी को ये लहर चुनाव से 2 सप्ताह पहले पैदा करनी थी। प्रधान मंत्री मोदी ने गुजराती अस्मिता (गुजराती अभिमान) का आह्वान किया और मतदाताओं को उन लोगों के खिलाफ वोट देने के लिए कहा, जो एक सामान्य गुजराती के हितों के खिलाफ काम करते रहे हैं। एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के घटिया चुनाव प्रचार को उन्हीं की तरफ मोड़ दिया। जब मणिशंकर ने उन्हें नीच आदमी कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने उसे मरोड़कर “नीच जाति का आदमी” में परिवर्तित दिया, जिसके चलते उन्होंने कांग्रेस पर जातिवादी मानसिकता रखने और दलित एवं पिछड़े वर्गों के साथ अन्यायपूर्ण होने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री मोदी ने यही रणनीति 2014 के आम चुनावों में प्रियंका गाँधी के खिलाफ भी अपनाई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीरी अलगाववादी नेता सलमान निज़ामी की राहुल गाँधी के साथ नजदीकियों का मुद्दा उठाया। उन्होंने निज़ामी के भारत विरोधी ट्वीटों का हवाला देते हुए कांग्रेस “सिर्फ भाजपा ही राष्ट्रवादी पार्टी नहीं है” के दावे पर निशाना साधा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जानी परखी पाकिस्तान की निंदा की रणनीति भी इस्तेमाल की, जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मणिशंकर अय्यर पर पाकिस्तानी अधिकारियों से सांठगांठ करके उनकी सरकार को असफल करने का आरोप लगाया। ये सब तब हुआ जब चुनाव बिलकुल सर पर थे जिससे कांग्रेस अपने ऊपर लगाये गये आरोपों का खंडन भी नहीं कर सकी, कांग्रेस मनमोहन सिंह के आधे अधूरे मन वाले धर्मी क्रोध के झूठे दिखावे तक ही सीमित रह गयी।
ये कहना निराधार नहीं होगा कि प्रधानमंत्री के पिछले सप्ताह के बेधड़क चुनाव प्रचार, जब उन्होंने गले में खराश के बावजूद भी एक के बाद एक रैली को संबोधित किया, ने भाजपा को संभावित हार से बचा लिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर इस देश के सबसे बड़े राजनीतिक ब्रांड होने के अपने अधिकार पर मोहर लगाई है। प्रधानमंत्री मोदी ने सुनिश्चित हार के जबड़ों में से जीत खींचकर ये दिखा दिया है कि वे किसी लहर के बिना भी जीत सकते हैं और इस देश में कोई दूसरा नेता नहीं है जो सपने में भी उनके बराबर खड़ा हो सके। कांग्रेस पार्टी ने सब कुछ ठीक किया लेकिन अंत में प्रधानमंत्री मोदी स्वयं एक बहुत बड़े प्रतिद्वंदी की तरह सामने आ गए, जिन्हें हराना बहुत मुश्किल था।