राहुल गाँधी 2004 में सक्रिय राजनीति का हिस्सा बने लेकिन वे हमेशा कांग्रेस पार्टी की तरह इस देश को भी अपनी जागीर ही समझते रहे इसलिए उन्होंने कभी राजनीति को गंभीरता से लिया ही नहीं। पुश्तैनी सीट से आसान जीत दर्ज करवा दी गयी तो उन्हें कभी पता ही नहीं चला की जीतने के बाद जनता की सेवा भी करनी होती था। जब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और राहुल को मंत्री पद लेकर जवाबदार नेता का दायित्व वहन करना चाहिए था तब वो अपनी ही दुनिया में मशगूल थे और उनके मंत्री भ्रष्टाचार में सर से पैर तक डूबे हुए थे। लेकिन 2009 में जब एक बार फिर मनमोहन की छवि को देखते हुए जनता ने देश की बागडौर मनमोहन सिंह को सौंप दी पिछले चुनाव से ज्यादा सीटों देकर तो देर न करते हुए कांग्रेसियों ने इसका पूरा श्रेय राहुल गाँधी को दे डाला जबकि राहुल गाँधी उस वक्त राजनीति की ABCD तक नहीं जानते थे (वैसे अब भी नहीं जानते था)। यह वो टाइम था जब राहुल सक्रिय राजनीति में जबरदस्ती धकेल दिए गए फिर शुरु हुआ कांग्रेस के पतन का सिलसिला।
2012 में राहुल के नेतृत्व में चार राज्यों में करारी हार के बाद राहुल को दिया गया बड़ा तोहफा
2012 में राहुल गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का चुनाव लड़ा जिसमें राहुल ने धुआंधार रैली की और जबरदस्त प्रचार किया था लेकिन पार्टी राहुल के नेतृत्व में महज 28 सीटें ही पा सकी। पंजाब में कांग्रेस जीत की स्वाभाविक दावेदार बताई जा रही थी लेकिन यहां भी राहुल ने अपने चमत्कार से सब को चौंका दिया और सत्ता फिर एक बार अकाली-बीजेपी को सौंप दी। राहुल का चमत्कार गोवा में भी बरक़रार रहा। गोवा में दिगंबर कामत वाली कांग्रेस सरकार को हार का सामना करना पड़ा। 2012 के अंत में गुजरात में एक बार फिर राहुल की कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी जिसमें नरेन्द्र मोदी तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रहे।
2012 तक का समय था जब ‘डिंपल बॉय’ राहुल गाँधी ने 4-5 चुनाव में अपना चमत्कार दिखाकर असफलता हासिल कर ली थी और इसी ख़ुशी में राहुल को प्रमोट कर दिया गया और राहुल महासचिव से उपाध्यक्ष बना दिए गए। राहुल के उपाध्यक्ष जैसे पद पर आ जानें से फिर एक बार कांग्रेस में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी मानो जैसे मात्र पद बदल जाने से अब राहुल मोदी बन जायेंगे।
उपाध्यक्ष बनते ही 2013 में फिर छह राज्यों में विधानसभा चुनाव में राहुल पूरे दमखम के साथ उतारे और धुआंधार प्रचार भी किया। लेकिन फिर से राहुल चमत्कारिक साबित हुए और उन्होंने कांग्रेस को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया। ये वो समय था जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और देश के कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता में थी लेकिन एक एक करके सभी राज्य उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के चलते कांग्रेस के हाथ से निकलते गए। कांग्रेस को राहुल के नेतृत्व में त्रिपुरा, नागालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में करारी हार मिली। राहुल के लिए खुशखबरी महज कर्नाटक से आई हालांकि यहां भी पार्टी की जीत के लिए कांग्रेस को कम और येदुरप्पा प्रकरण के चलते हुई बीजेपी की बदनामी को ज्यादा बड़ी वजह माना गया।
2017 तक 22 से ज्यादा चुनाव हारकर उनके शानदार प्रदर्शन के लिए राहुल गाँधी को दिया जा रहा सर्वोच्च खिताब
2014 में राहुल गाँधी को अघोषित प्रधानमंत्री उम्मीदवार बना कर एक बार फिर चमत्कार होने की उम्मीद में बैठी कांग्रेस ने राहुल गाँधी के नेतृत्व में अपना सर्वस्व लुटा दिया। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत की उम्मीद तो किसी ने नहीं की थी लेकिन कभी 404 सीटें जीतने वाली पार्टी महज 44 सीटों तक सिमट जाएगी ऐसी कल्पना भी उसके धुर विरोधियों को नहीं थी। लेकिन यह तो राहुल गाँधी का ही चमत्कार था जो उन्होंने कर दिखाया। 2014 में ही राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस की हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू-कश्मीर में करारी हार हुई। लेकिन राहुल यहाँ रुके नहीं वे पूरी हिम्मत से आगे बढ़ते रहे और 2015 में बिहार में महागठबंधन में शामिल होकर उन्होंने जीत का स्वाद चखा वो भी खाने में अचार के बराबर लेकिन इसी साल उन्हें असली झटका दिल्ली में मिला जहां उन्हें एक भी सीट नहीं मिली।
मतलब चारों दिशाओं में राहुल की तूती बोल रही थी राहुल ऐसा कोई राज्य नहीं रखना चाहते थे जहाँ उनकी सरकार हो। 2016 में राहुल ने असम जैसा महत्वपूर्ण राज्य भी खो दिया। केरल में भी उनकी गठबंधन सरकार हार गई जबकि पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उनका सूपड़ा साफ हो गया। ये वो समय था कांग्रेस की हार करारी हार में बदलती गयी और कांग्रेस में राज्य दर राज्य अपने निम्नतम प्रदर्शन को प्राप्त होती चली गयी और इसका पूरा-पूरा श्रेय सिर्फ राहुल गाँधी की मेहनत और उनकी रणनीति को ही जाता है।
2017 के शुरुआत में ही राहुल ने एक बार फिर कमान संभाली और अपना परफॉरमेंस बरक़रार रखते हुए फिर 4 महत्वपूर्ण राज्यों में सत्ता गवाने में कोई चुक नहीं की। उत्तर प्रदेश में राहुल ने इस बार पिछली बार से ज्यादा मेहनत की और 403 सीट वाले विधानसभा में पार्टी को 7 सीट पर लाकर खड़ा कर दिया। कांग्रेस ने गोवा, उत्तराखंड, मणिपुर में भी सरकार बनाने का मौका गँवा दिया। राहुल के ही बलबूते आज स्थिति ये था कि पार्टी के पास लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल बनने लायक सांसद नहीं हैं।
2012 से लेकर अब तक राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने तमाम चुनाव लडे और इन सभी छोटे बड़े चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ हार का ही मुंह देखने पड़ा। पंचायत से लेकर संसद तक राहुल अनेको चुनाव में मुंह की खा चुके है और कांग्रेस के सारे किले गंवा चुके हैं लेकिन जो लोग यह मानते थे की राहुल में कोई करिश्मा नहीं था और राहुल कोई चुनाव जीत नहीं सकते उनके लिए ये हफ्ता एक बुरी खबर लेकर आया – राहुल ने एक ऐसा चुनाव लड़ा जिसमें शायद ही कोई उन्हें हरा सकता था। यह एक ऐसा चुनाव था जिसमें हमें राहुल गाँधी की लहर नहीं आंधी देखने को मिली और यहाँ मोदी-अमित शाह की जोड़ी के लिए उन्हें हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी था।
जी हाँ ! राहुल गाँधी ने अपने पुश्तैनी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव ‘अकेले’ लड़कर जीत लिया (वैसे औपचारिक घोषणा नहीं हुई है पर इस औपचारिकता की कोई आवश्यकता भी नहीं), इस चुनाव में दूर दूर तक उनका कोई विरोधी नहीं था, उन्होंने पूर्ण बहुमत से इस चुनाव में अपना परचम लहराकर पहली चुनावी जीत अपने नाम दर्ज की।
वैसे उनके अध्यक्ष बनने से जितनी ख़ुशी कांग्रेस के नेताओं को हुई, शायद उससे कहीं ज्यादा ख़ुशी विरोधी खेमा यानी बीजेपी के नेताओं में देखने को मिली क्योंकि राहुल हमेशा से बीजेपी के स्टार प्रचारक माने जाते रहे हैं। राहुल जहाँ भी जाते थे वहां बीजेपी की जीत सुनिश्चित ही करके आते थे ऐसे में उनके अध्यक्ष बन जाने से बीजेपी से ज्यादा ख़ुशी शायद किसी और पार्टी को हो सकती थी। अब शायद बीजेपी कार्यकर्ताओं को जमीनी लेवल पर कुछ कम मेहनत करनी पड़े क्योंकि उनका काफी हद तक बोझ राहुल संभाल लेंगे।
राहुल गाँधी शायद दुनिया के अकेले वो इंसान होंगे जिसे तमाम असफलता के बाद भी प्रमोशन दिया जाता था। उनके अध्यक्ष बनने पर उन्हें ढेरों बधाइयाँ और उम्मीद है वे अपने कार्यकुशलता और सूझबूझ से आगे भी ऐसा प्रदर्शन जारी रखेंगे और कांग्रेस को एक नए मुकाम पर पहुँचाने में मदद करेंगे, एक ऐसा मुकाम जहाँ से शायद कांग्रेस लौट ही ना पाए। एक बार फिर राहुल जी को अनेक अनेक बधाइयाँ!