पिछले सप्ताह एनडीटीवी ने घोषणा की कि वह मुख्य व्यवसाय पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए आंतरिक पुनर्गठन कार्यक्रम के अन्तर्गत कर्मचारियों की संख्या में 25 प्रतिशत तक की कमी करने पर विचार कर रहा है। एनडीटीवी अब गैर-प्रमुख बिजनेस कालम से भी बाहर निकल रहा है। सितम्बर में, एनडीटीवी के शेयर धारकों ने ऑटोमोबाइल ई-कॉमर्स फर्म ‘फिफ्थ गियर वेंचर्स टू ऑटोबॉइट प्राइवेट लिमिटेड’ की बिक्री के लिए अपनी मंजूरी भी दे दी थी। carandbike.com नामक ऑटोमोबाइल ई-कॉमर्स पोर्टल का स्वामित्व और संचालन फिफ्थ गियर के हाथ में था।
जून में, उन्होंने अपने इंडियन वियर ई-कॉमर्स फर्म ‘एनडीटीवी एथेनिक रिटेल लिमिटेड’ को ‘नम: होटल एंड रिसॉर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ के हाथों बेचने के लिए मंजूरी दे दी थी।
तो मुख्य व्यवसाय पर अचानक इतना ध्यान केंद्रित क्यों किया गया और एनडीटीवी के लिए ऐसा क्या बदल गया कि इसने अपने कई उपक्रमों में से सिर्फ मौजूदा उपक्रम के बारे में सोचना शुरु कर दिया?
सबसे पहले तो कंपनी बहुत ही ख़राब प्रदर्शन कर रही है। 30 जून, 2017 को, एनडीटीवी ने 22.01 करोड़ रुपये की शुद्ध हानि होने की सूचना दी।
इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि इसके दर्शकों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर, आइए समाचार चैनलों की नवीनतम रेटिंग पर एक नज़र डालते हैं। बीएआरसी (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ऑफ इंडिया) के अनुसार शनिवार 9 दिसंबर, 2017 से शुक्रवार 15 दिसंबर, 2017 तक शुरू होने वाले 50 वें सप्ताह के लिए, अंग्रेजी समाचार चैनल एनडीटीवी 24X7, 252 (000s) साप्ताहिक प्रभाव के साथ सूची में 5 वें स्थान पर है और रिपब्लिक टीवी इसी सूची में 982 (000s) साप्ताहिक प्रभाव के साथ पहले स्थान पर है। हिंदी समाचार चैनलों में NDTV शीर्ष के 5 चैनलों की सूची में भी शामिल नहीं है। एनडीटीवी जैसा एक न्यूज नेटवर्क जो काफी लंबे समय तक कारोबार में रहा है, यह अब तक की सबसे खराब रेटिंग और बुरा प्रदर्शन है।
दूसरी बात, जो इस चैनल के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है वह यह है कि ये चैनल भारत के राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे परिवर्तनों को पचाने में सक्षम नहीं है। कांग्रेस के प्रति एनडीटीवी के अत्यधिक रुझान के साथ-साथ, यह वर्तमान सरकार के प्रति निष्पक्ष राय विकसित करने में असमर्थ रहा है। यह चैनल लम्बे समय से सरकार के साथ कई वाद-विवादों में घिरा रहा है। एनडीटीवी के ऐन्कर्स जैसे कि रविश कुमार और निधि राजदान, इस चैनल के उन पोस्टर ब्वॉयज के रुप में जाने जाते हैं जो वामपंथी उदारवादियों के दल से संबंधित हैं और जिन्हें गैर-मुद्दों पर फालतू के बड़े-बड़े नाटक आयोजित करने के लिए जाना जाता है। चाहे वो कन्हैया कुमार जैसे देशविरोधी लोगों के महिमामंडन के लिए स्क्रीन काली करना हो या फिर उनके ऐंकर द्वारा सत्तारूढ़ पार्टी के प्रतिनिधियों से अपना स्टूडियो (निधि और संबित पात्रा की नोक-झोंक) छोड़ने के लिए कहना हो। इसी पक्षपात ने दर्शकों को विमुख कर दिया है और निष्पक्ष न्यूज देखने वाले दर्शकों के सामने उनके एजेंडे को उजागर भी किया है जो कि उनकी खराब रेटिंग में प्रदर्शित हो रहा है।
आखिरकार, यह न्यूज नेटवर्क अपनी गलत खबरों और अस्पष्ट नैतिक नीतियों के कारण खबरों में छाया रहता है। चाहे पठानकोट हमले की विवादास्पद कवरेज का मामला हो जिसकी वज़ह से इसे एक दिन के लिए लगभग प्रतिबंधित कर दिया गया था या फिर ए. राजा की नियुक्ति में इनकी भूमिका हो, जैसा कि राडिया के टेप्स में दिखता है, ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि NDTV के मालिकों के दिमाग में राष्ट्रीय हित है भी या नहीं। कुछ संदिग्ध गतिविधियों के साथ यह चैनल खबरों में तो छाया हुआ है लेकिन खबरों के व्यवसाय में नहीं छाया हुआ है।
तो क्या यह एनडीटीवी के अंत समय करीब है?
मेरा मानना है कि अभी नहीं और इसके ये कुछ निम्न कारण हैं।
सरकार की मीडिया के लिए गैर-सुसंगत नीतियां:
सरकार या भाजपा को अभी इसका सही अंदाजा लगाना है कि इन गैर मिलनसार मीडिया चैनलों से कैसे निपटा जाए। एनडीटीवी के मामले में, भाजपा पर लगाए गए आरोपों के बावजूद, इसके शीर्ष मंत्री नियमित रूप से उनकी चर्चाओं, कार्यक्रमों और सम्मेलनों में भाग लेते हुए दिखाई देते हैं। यहाँ पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया तंत्र नहीं है जो एनडीटीवी की नीतियों और पसंद का विरोध कर सके। एक संदिग्ध मामले में, जब सरकार ने एनडीटीवी को, पठानकोट हमलों पर इसकी संदिग्ध रिपोर्टिंग के कारण, एक दिन के लिए प्रतिबंधित करने का फैसला लिया लेकिन सरकार ने कोई भी विशेष कारण न होने की वजह से इस फैसले को वापस ले लिया। संभवतः एक विरोधी बहस से बचने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया। इन सभी चीजों ने एनडीटीवी के ऐजेंडे को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ भी नहीं किया।
क्या एनडीटीवी को कांग्रेस से संरक्षण मिलता रहा है?
हालांकि कांग्रेस की तरफ से जाहिर तौर पर कोई वित्त पोषण नहीं किया गया है लेकिन एनडीटीवी की रिपोर्टिंग से पता चलता है कि चैनल हमेशा ही कांग्रेस पार्टी के पक्ष में रिपोर्टिंग करता है। यह सोचना गलत नहीं होगा कि भले ही पार्टी लगभग एक दशक तक सत्ता में न आये लेकिन यह चैनल तब भी कांग्रेस पार्टी का पूरी तरह से समर्थन कर सकता है। इसलिए शायद कांग्रेस की तरफ से वित्तीय सहायता जीवित है और एनडीटीवी के लिए उपलब्ध है।
समर्थन की कोई कमी नहीं
हालाँकि देश का बड़ा वर्ग एनडीटीवी के साथ नहीं है लेकिन जो हैं वो जी जान से हैं, दरअसल में एनडीटीवी मोदी सरकार से नफरत करने वाले दर्शकों के लिए “स्वस्थ, निष्पक्ष और साहसी” पत्रकारिता” का दूसरा नाम है। “वर्तमान सरकार या भाजपा के आलोचकों को एनडीटीवी प्राइम-टाइम नाम का प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
एनडीटीवी पतन की राह पर है लेकिन इसकी कहानी अभी तक खत्म नहीं हुई है। सीबीआई 2014 से चैनल की जांच कर रही है और बैंक की धोखाधड़ी के आरोप में एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और राधिका रॉय के घर पर छापे मारे गए हैं। लेकिन सीबीआई के लचर रवैये और सरकार के विवाद से बचने वाले स्वभाव ने इस चैनल में जीवन फूंक रखा है।