लाभ के पद का मामला: आम आदमी पार्टी में उस वक्त जश्न का माहौल बन गया जब दिल्ली हाई कोर्ट ने लाभ के पद के मामले में अयोग्य ठहराए गए आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी। साथ ही हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस मामले में नए सिरे से सुनवाई करने के निर्देश दिए।
अरविंद केजरीवाल ने हाई कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद ट्वीट करते हुए इसे आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत बतायी। केजरीवाल ने अपने ट्वीट में कहा कि “सत्य की जीत हुई। दिल्ली के लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को ग़लत तरीक़े से बर्खास्त किया गया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के लोगों को न्याय दिया। दिल्ली के लोगों की बड़ी जीत। दिल्ली के लोगों को बधाई।“ कोर्ट का फैसला क्या वाकई में दिल्ली की जनता जीत है? (केजरीवाल ने जो ट्वीट करके बात कही है उसमें भी केजरीवाल का अपना मत है न की दिल्ली की जनता का क्योंकि दिल्ली की जनता क्या है चाहती ये बात आम आदमी पार्टी ने कभी समझने की कोशिश नहीं की)
सत्य की जीत हुई। दिल्ली के लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को ग़लत तरीक़े से बर्खास्त किया गया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के लोगों को न्याय दिया। दिल्ली के लोगों की बड़ी जीत। दिल्ली के लोगों को बधाई। https://t.co/eDayHziHSn
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) March 23, 2018
Delhi High Court ruling is a big relief for @ArvindKejriwal and a sad commentary on the institution of the Election Commission whose impartiality has come under a cloud for some time
— Nidhi Razdan (@Nidhi) March 23, 2018
So finally Congress pays heed to what I suggested more than a year ago! Our real impact will be when the EC finally reintroduces ballot papers. https://t.co/fFujULDzxz
— Rifat Jawaid (@RifatJawaid) March 17, 2018
हाई कोर्ट के फैसले के बाद आम आदमी पार्टी और उनके समर्थक मीडिया से बातचीत में इस जीत को बड़ी राजनीतिक जीत बता रहे हैं। हालांकि, सच्चाई तो कुछ और ही है क्योंकि लाभ के पद के मामले में आम आदमी पार्टी की मुश्किलें अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। अगर हाई कोर्ट के फैसले पर गौर करें तो कोर्ट ने इस मामले में याचिका को ख़ारिज कर मामले को वापस चुनाव आयोग के पास भेज दिया है। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस मामले में तथ्यों के आधार पर एक बार फिर से जांच करने के निर्देश दिए हैं। अगर लाभ के पद के मामले में जांच के बाद सभी अयोग्य ठहराए गए विधायक दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।
देखा जाए तो आम आदमी पार्टी के विधायकों ने संविधान के अनुच्छेद 1 9 1 का उल्लंघन कर संसदीय सचिव का पद संभाला था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 191(1) (a) में राज्य विधानसभा के किसी सदस्यों के लिये ऐसे लाभ के पद धारण करने पर रोक लगाई गयी है जिससे उस पद को धारण करने वाले को किसी भी प्रकार का वित्तीय लाभ मिलता हो। हालांकि, लाभ के पद को संविधान या किसी भी क़ानून में परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन, लाभ के पद के लिए जो परिभाषा और तर्क दिए गये हैं वो देश की न्यायपालिका द्वारा निर्धारित किये गए हैं।
1.क्या सरकार नियुक्ति करती है
2.क्या सरकार को ये अधिकार है कि वो किसी भी धारक को उसके पद से हटाये या पद को खारिज करे
3.सरकार पारिश्रमिक का भुगतान करती है या नहीं
4.धारक के क्या कार्य हैं
5.क्या सरकार सरकारी पद को धारण करने वाले धारक के प्रदर्शन पर कोई नियंत्रण करती है?
सुप्रीम कोर्ट ने लाभ के पद के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी के विधायकों को जिस आधार पर अयोग्य ठहराया गया था वो पूर्ण रूप से न्यायिक नहीं है। आम आदमी पार्टी शुरू से ही अपने बचाव में कहती आ रही है कि उनके किसी भी विधायक ने अपने पद का दुरूपयोग नहीं किया है, उन्हें फंसाया गया है। हालांकि, इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा जो प्रस्ताव और तर्क दिए गए वो पूर्ण रूप से सही साबित नहीं हुए।
क्या आप के विधायकों ने अपने पद का लाभ उठाया ? क्या आम आदमी पार्टी के विधायकों ने संविधान के नियमों का उल्लंघन कर संसदीय पद को धारण किया ? या फिर उन्हें इस मामले में निर्दोष होते हुए भी फंसाया गया है? इन सभी उठते सवालों के जवाब देखा जाए तो कोर्ट के फैसले ने जनता को दे दिया है। कोर्ट के फैसले ने आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी मुश्किल को भी हल कर दिया है। वैसे भी केजरीवाल सरकार पर न जाने कितने आरोप लगे हैं और वो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त पायी गयी है जिससे वो जनता की नजरों में अपनी पहले वाली छवि को खो चुके हैं।
आम आदमी पार्टी अक्सर ही ये कहती आ रही है कि मोदी सरकार अपनी ताकत का गलत उपयोग कर रही है और उनकी पार्टी के विधायकों को गलत तरीके से फंसा रही है। हालांकि, चुनाव आयोग एक स्वतंत्र निकाय है ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा आम आदमी पार्टी के सदस्यों को अयोग्य ठहराए जाने के गलत निर्णय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार का चुनाव आयोग पर कोई नियंत्रण नहीं होता है वह एक स्वतंत्र निकाय है। लाभ के पद का मामला चुनाव आयोग और आम आदमी पार्टी के बीच का है इसमें मोदी सरकार और बीजेपी की कोई भूमिका को लेकर उठते सवाल भी व्यर्थ हैं।
आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री चुनाव आयोग के फैसले पर कुछ वक्त के लिए शांत जरुर थे लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से खुलकर बोल रहे हैं। हालांकि, आम आदमी पार्टी पर से आम जनता का भरोसा उठ चुका है जिससे अब पार्टी जनता को अपनी बनावटी बातों से बहका नहीं पायेगी। लाभ के पद के विवाद को देखा जाए तो लगता नहीं है कि, इस मामले में आम आदमी पार्टी अपने विधायकों को लम्बे समय तक बचा पायेगी।