बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के फिर से एनडीए में शामिल होने के बाद से उन्होंने एक नयी शुरुआत की है। कुछ विवादास्पद निर्णयों के बाद एक बार फिर से अपनी मशहूर ‘सुशासन बाबु’ की छवि में लौट आये हैं। पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को सलाखों के पीछे डाल कर उन्होंने कानून तोड़ने वाले को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। भले ही राजद, जेडीयू और कांग्रेस की महागठबंधन सरकार थी लेकिन इसके बावजूद उन्होंने खुलकर कई जगह एनडीए द्वारा स्थापित कार्यों का समर्थन किया था।
महागठबंधन से अलग होने के कई महीनों के बाद नितीश कुमार ने शासन में बड़े बदलाव की शुरुआत की है, जिसमें अलग अलग प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति शामिल है। ऐसे ही एक मामले में बिहार सरकार ने डीजीपी पीके ठाकुर के सेवानिवृत्त होने के बाद के एस द्विवेदी को राज्य का नया डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस (डीजीपी) नियुक्त किया है।
गृह विभाग के प्रधान सचिव श्री आमिर सुभानी ने कहा, ‘द्विवेदी को उनके साफ़ कार्य के रिकॉर्ड और वरिष्ठता के आधार पर बिहार का नया डीजीपी नियुक्त किया गया है। राज्य में डीजीपी पद के लिए कुल चार अधिकारी थे जिनमें से द्विवेदी सबसे वरिष्ठ थे।
हालांकि, इस इमानदार अधिकारी की नियुक्ति ने कई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। आरजेडी के प्रवक्ता मनोज झा ने इस नियुक्ति का विरोध करते हुए कहा कि नीतीश कुमार बीजेपी के इशारे पर चल रही है और मुस्लिम विरोधी भावना को बढ़ावा दे रही है । यह फैसला जरुर नागपुर में लिया गया है और पटना पर थोपा गया है। एनडीए का साथ छोड़ राजद-कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने द्विवेदी की नियुक्ति पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
यहां तक की बुद्धिजीवी भी इस नियुक्ति के कड़े विरोध में पीछे नहीं है, नीतीश कुमार सरकार पर मुस्लिम समुदाय के प्रति पक्षपात करने का आरोप लगाया। वामपंथी मीडिया पोर्टल द वायर ने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें नितीश कुमार द्वारा डीजीपी नियुक्त करने का विरोध किया है और नितीश कुमार को कम विश्वसनीयता वाला व्यक्ति कहा था।
लेकिन क्यों केएस द्विवेदी की नियुक्ति का विरोध किया जा रहा है ? और उनपर कैसे आरोप लगाये जा रहे हैं ? इसके पीछे की असली वजह जानने के लिए तीन दशक पीछे जाना पड़ेगा, जब राम जन्मभूमि आंदोलन के समर्थन में एक शांतिपूर्ण जुलूस पर हमले के बाद बिहार का भागलपुर शहर जानलेवा हिंसा से झुलस रहा था, इस हमले के बाद भागलपुर में एक महीने तक चली अराजकता में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
जिस केएस द्विवेदी पर आज सवाल किये जा रहे हैं वह उस दौरान जिले के एसपी थे, उन्हें वहां हिंसा के बाद राज्य में सुरक्षा व्यवस्था को कायम करने के लिए नियुक्त किया गया था। अगर तब उन्होंने सही फैसले और तेजी से कार्रवाई नहीं किये होते तो बिहार के भागलपुर में दूसरे कश्मीर का उदय की स्थिति बन जाती।
हालांकि, द्विवेदी को उनके कार्रवाई के लिए पुरस्कृत किये जाने की जगह मुस्लिम समुदाय में हत्याओं को रोकने की उनकी निष्क्रियता के लिए दोषी ठहराया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री एस एन सिन्हा के इशारे पर उनका तबादला कर दिया गया था जो कि तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सलाह का पालन कर रहे थे लेकिन मीडिया और जनता के दबाव में उन्हें अपने आदेश पर रोक लगानी पड़ी थी।
बिहार में डीजीपी के तौर पर केएस द्विवेदी की नियुक्ति ने बुद्धिजीवीवर्ग में विरोध की भावना पैदा की है जो डरते हैं कि कहीं उत्तर प्रदेश के ओपी सिंह की तरह उनका कोई कदम बिहार में एक बार फिर से कानून व्यवस्था बहाल न कर दे और कभी भारत में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध बिहार को उत्पाती राज्य बनाने के उनके मकसद को विफल ना कर दे। वैसे अगर सच कहें तो केएस द्विवेदी की नियुक्ति जब भारत विरोधी तत्वों में डर की ऐसी लहर पैदा कर सकता है तो सोचने वाली बात है कि उनके ज़मीनी कार्य से क्या हो सकता है। हाँ हम एक आश्वासन दे सकते हैं कि बंगाल में न सही लेकिन बिहार में ‘अच्छे दिन’ जरुर आयेंगे।