राज्यसभा चुनाव को लेकर पहले लोगों में उत्सुकता नहीं दिखाई देती थी लेकिन हम ये जरुर कह सकते हैं पीएम मोदी के राज में कुछ भी संभव है। अभी हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। राज्यसभा में 59 सीटों के लिए हाल ही में हुआ चुनाव चर्चा का विषय भी बन गया क्योंकि इस चुनाव को भाजपा की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा था। दिलचस्प बात ये रही कि यह चुनाव ड्रामा, एक्शन से भरपूर था।
हालांकि, जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो विपक्षी पार्टी उप-चुनाव जीतने और एक नए गठबंधन की कहानी को लिखने की तैयारी में था जिसे ‘महागठबंधन’ के नाम से जाना जाता। पर विपक्ष को करार झटका तब लगा जब वोटों की गिनती खत्म हुई। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा उप-चुनाव में बीजेपी ने न सिर्फ ज्यादातर लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की बल्कि सपा और बसपा के बीच गठबंधन की नीव में खट्टास भी भर दी। राजसभा के 26 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा 16 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही और इस जीत के साथ भारतीय जनता पार्टी ने अपने विपक्षी दलों से एक मीठा बदला लिया।
आइए हम कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं। राज्यसभा की कुल 59 सीटों में से 10 राज्यों के 33 उम्मीदवारों को 15 मार्च को निर्विरोध विजेता घोषित किया गया था जिनमें से 16 उम्मीदवार भाजपा के ही थे। बाकी बची सीट भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष के लिए छोड़ दिया।
हालांकि, भारतीय मीडिया जोकि अक्सर ही ख़बरों को मसाला लगाकर दिखाने में संकोच नहीं करती, उसी मीडिया ने बाकि बची 26 सीटों पर हुए चुनाव को भाजपा की प्रतिष्ठा से जोड़कर दिखाया। ये हैं वो राज्य जहां हाल ही में उपचुनाव हुए:
बिहार – 6 सीटें
छत्तीसगढ़ – 1 सीट
झारखंड – 2 सीट
कर्नाटक – 4 सीटें
केरल – 1 सीटओडिशा – 3 सीटें
राजस्थान – 3 सीटें
तेलंगाना – 3 सीटें
उत्तर प्रदेश – 3 सीटें
पश्चिम बंगाल – 5 सीटें
पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और केरल ऐसे राज्य थे जहां भाजपा ने अपना एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा था। बाकी राज्य खासकर उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा था। यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दोनों ने मिलकर अपनी राजनैतिक शैली से जीत दर्ज की। दोनों ने ही ‘नेवर से नेवर’ की रणनीति के तहत बड़ी ही चतुराई के साथ चुनाव में जीत दर्ज कर विपक्ष को हार का मुंह दिखाया। विपक्ष को अभी तक समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर उनकी हार हुई कैसे।बिहार में भारतीय जनता पार्टी की एक सीट पर जीत ने एनडीए गठबंधन को और मजबूत बनाया है। वहीं, कर्नाटक में, कांग्रेस अपनी नाक बचाने में जरुर कामयाब हुई है क्योंकि उन्होंने राज्यसभा की चार में से 3 सीटों पर जीत दर्ज की है। वहीं भारतीय जनता पार्टी व चंद्रशेखर ने एक सीट पर जीत दर्ज की है। सिर्फ ओडिशा एक ऐसा राज्य है जहां भाजपा की हार हुई है। यहां राज्यसभा की तीन सीटों पर बीजू जनता दल ने जीत दर्ज की है। हाँ, इस हार से एक बात तो साफ़ हुई है कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में ओडिशा से भाजपा को थोड़ी निराशा मिल सकती है। हालांकि, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भाजपा ने अपनी जीत से विपक्ष को झटका जरुर दिया है। छत्तीसगढ़ में, भाजपा उम्मीदवार सरोज पांडे ने कांग्रेस के एम.साहू को 15 वोटों से हराकर कांग्रेस की एकमात्र सीट छीन ली। राजस्थान में, भारतीय जनता पार्टी ने तीनों राज्यसभा सीटों पर जीत दर्ज की है। वहीं, मध्यप्रदेश में भाजपा ने 5 में से 4 राजसभा सीटों पर जीत दर्ज की है। इस जीत से भाजपा पार्टी का मनोबल जरुर बढ़ा है जिसके बाद से अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर भाजपा ने अपनी तैयारी और तेज कर दी है। सबसे ख़ास रहा उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव क्योंकि यहां हुए 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने नौं सीटों पर जीत दर्ज कर बुआ-भतीजे की जोड़ी को बड़ा झटका दिया है। 10 में से 8 राजसभा सीट तो भाजपा आसानी से जीत जाती भाजपा की लड़ाई 9वीं और दसवीं सीट को लेकर थोड़ी कठिन थी क्योंकि इन दोनों ही सीटों पर सपा और बसपा के साथ भाजपा की कड़ी टक्कर थी। राजनीति के खेल में कब क्या हो कोई नहीं जानता क्योंकि यहां अक्सर नतीजे उम्मीदों के विपरीत होते हैं। या यूं कहें राजनीति में बाजी कभी भी पलट सकती है। हुआ भी कुछ ऐसा ही क्रॉस वोटिंग में भाजपा को फायदा हुआ और इस तरह से 10 में से 9 सीटों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया।
नौवीं सीट पर बसपा के उम्मीदवार अनिल अग्रवाल ने खुल्लेआम कहा कि उन्होंने भाजपा के पक्ष में वोट किया है। उन्होंने कहा, मैं महाराज (योगी आदित्यनाथ) के पक्ष में हूँ’। चुनाव आयोग ने इसे अमान्य घोषित कर कुछ समय के वोटों की गिनती रोक दी थी लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ? भाजपा 9वीं सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही इसके बाद सपा और बसपा हाथ मलते रह गए। अब इस जीत को आप जो भी कहें लेकिन हम इसे योगी आदित्यनाथ की आखिरी हंसी कहेंगे। बासपा के समर्थन के बिना सपा के खाते में एक सीट आई। इस हार से मायावती की संसदीय पारी पर खतरा जरुर मंडराने लगा है या कह सकते हैं शायद ये हार मायावती के संसदीय पारी के खात्मे की शुरुवात हो।