ट्विटर पर आमने-सामने शबाना आजमी-कोएना मित्रा, इनकी हुई जीत

कोएना मित्रा शबाना आजमी

हाल ही में पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे वर्तमान समय में इस्लामिक आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है और लाखों रिफ्यूजीयों को आतंकी गतिविधियों के चलते म्यांमार और श्रीलंका से बाहर का रास्ता दिखाया गया। लाखों लोग बिना कोई उम्मीद के विस्थापित हो गए और दुनिया के बाकी देशों ने भी उनके लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए। इनमें से कई रिफ्यूजीयों पर आतंक फैलाने का दोष भी मढ़ा गया। हालांकि, एक मनुष्य दुसरे मनुष्य के दुःख को देखकर भी अनदेखा नहीं कर सकता और यही वजह है कि मौत के दो साल बाद भी ऐलन कुर्दी का निर्जीव शरीर हमें डराता है।

पड़ोसी देश में रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ हुए बर्ताव पर कोई भी सेलेब्रिटी खुलकर नहीं बोलना चाहता और यदि कोई बोलता भी है तो उनकी बातें रोहिंग्या शरणार्थियों के पक्ष में ही होती हैं। कोई भी देश अपने देश के लिए खतरा साबित होने वाले तत्वों से दूरी बनाकर रखता है लेकिन भारत की ये पुरानी परंपरा है कि वो जरुरतमंदों के लिए हमेशा ही अपने द्वार खोल देता है जो कभी कभी उसी के लिए खतरा बन जाते हैं।

अभिनेत्री और मॉडल कोएना मित्रा ने अभी हाल ही में ट्विटर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए रोंहिग्याओं को शरण देने को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, ‘रोहिंग्या को आतंकी गतिविधियों के चलते म्यांमार और श्रीलंका से बाहर कर दिया गया लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में उन्हें जमीन दे रही है और रहने का स्थान दे रही है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।’

अपने अगले ट्वीट में कोएना ने कहा कि उन्हें पता है रोहिंग्या देश के और भी कई हिस्सों में बसे हैं लेकिन वह अपनी जन्मभूमि पश्चिम बंगाल से काफी जुड़ी हैं और इसी वजह से वो इसको लेकर थोड़ी चिंतित हैं क्योंकि पहले और आज के हालात में बहुत अंतर है।

कोएना मित्रा के इस ट्वीट पर शबाना आजमी ने पलटवार किया। शबाना आजमी ने जवाब में लिखा, ‘संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार के रखाइन में किए गए सैन्य आक्रमण को जाति नरसंहार का एक उदाहरण बताया है जिसकी वजह से आधे से ज्यादा रोहिंग्याओं को पलायन करना पड़ रहा है। क्या सभी आतंकवादी हैं? दोबारा देखिए और सोचिए।’

यदि कोई शबाना आजमी की बातों से पूरी तरह सहमत भी है तो वो इस बात को नकार भी नहीं सकता कि, शरणार्थियों को आश्रय देना भारत के लिए महंगा ही साबित हुआ है और इन्हीं तत्वों ने देश में आतंक को बढ़ावा दिया है।

यूरोप में आईएसआईएस के हमलों ने साफ़ कर दिया कि, कैसे ज्यादा बड़ा ह्रदय खतरा बन सकता हैं और सिर्फ मोमबतियां जलाने से और प्रदर्शन का तरीका बदलने से और एक हैशटैग लिखकर आतंक के खिलाफ मुहीम चलाने से आतंक खत्म नहीं हो सकता।

शबाना के ट्वीट के बाद कोएना मित्रा ने जवाब देते हुए लिखा, ‘सभी आतंकवादियों के माता-पिता होते हैं। मैं मानती हूं कि वे अच्छे इंसान होंगे। हर कोई बुरा नहीं होता लेकिन जब हमारा देश बाहरी लोगों और घुसपैठियों की वजह से पीड़ित है तो हमें एक साथ खड़े होकर उनका बहिष्कार करना चाहिए। मेरे लिए यह अंधा कानून है।’ कोएना मित्रा ने अपने ट्वीट के जरिए शबाना आजमी को पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा और रामनवमी में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ हो रहे बर्ताव को भी याद दिलाया।

बंगाल और पूर्वोत्तर राज्य पहले से ही अवैध तरीके से रहने वाले बंगलादेशी के दबाव में हैं, भले ही मौजूदा सरकार ने इस मामले में ठोस कदम उठाने का वादा किया हो लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। कट्टरवादी युवा आज का सच है और एक सच ये भी है कि जनसंख्या बहुत है लेकिन संसाधन सीमित हैं। इसके बावजूद बाहरी मुल्कों के नागरिकों को देश में आश्रय दिया जाता है। जब हम रोहिंग्या के लिए देश के दरवाजे खोलते हैं तो सबसे पहले अपने नागरिकों को संसाधन प्रदान करना होगा।

हालांकि, हम भारत की मानवता और उदारता के बारे में बात कर सकते है लेकिन हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान और बांग्लादेश द्वारा सताए गए हिंदुओं के लिए कुछ कर पाने में हम असफल रहे हैं। वहीं कुछ उदारवादी लोगों ने कोएना मित्रा के इस ट्वीट को पब्लिसिटी स्टंट बताया तो दूसरी ओर दुसरे विचार के लोगों ने कहा कि कोएना बीजेपी के लिए एक उचित लोकसभा उम्मीदवार थीं। आगे जोड़ते हुए लोगों ने कहा कि कोई ये क्यों नहीं पूछता कि आखिर प्रतिवाद की सोच रखने वाले लोग बीजेपी से ही क्यों जुड़ते हैं? कोई ये नहीं बताता कि महाराष्ट्र में रहने वाला मित्रा का परिवार और रोहिंग्या एक ही पृष्ट का हिस्सा हैं। कोई ये नहीं कहता कि महाराष्ट्र और बंगाल दोनों ही राज्य भारत का हिस्सा हैं और एक बंगाली महाराष्ट्र में रह सकता है क्योंकि भारत का सविंधान उसे ये हक़ देता है कि वो भारत के किसी भी कोने में रह सकता है। अभिनेत्री पर किये गए ये व्यक्तिगत हमले यही दर्शातें हैं कि कैसे भारत के उदारवादियों ने दुसरे अर्थात अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाले विकल्प को चुना है।

Exit mobile version