राहुल गांधी और उनके मंदिर दर्शन की सनक जोकि गुजरात चुनावों के दौरान शुरू हुई वह अब कर्नाटक के चुनाव में भी जारी है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और विभाजन की कोशिशों के साथ राहुल का अनोखा नया हिन्दू प्रेम इस चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी का नया मंत्र है। 1985 से ही कोई भी विपक्ष कर्नाटक में सत्ता विरोधी शक्ति को नहीं हरा पाया। इन सबके बीच पार्टी में कलह और चुनाव को लेकर झगडे अपने चरमोत्कर्ष पर हैं।
कुछ एक्जिट पोल और सर्वे ने हाल ही में इस चुनाव के परिणाम की एक तस्वीर सामने रखी है, जो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए एक बुरी खबर है। सीएचएस के सर्वे रिपोर्ट ने हंग असेम्बली जैसी स्थिति बनती दिखाई वहीं कांग्रेस के खुद के सर्वे में उन्हें एक सामान्य बहुमत मिलता दिख रहा है। इस मिश्रित और दुविधाभरे परिदृश्य में मात्र एक प्रतिशत वोट का इधर-उधर होना इस चुनाव के नतीजों का फैसला कर सकता है। यही वजह है कि बीजेपी ने कर्नाटक चुनावों में अपना ब्रह्मास्त्र लांच करने की पूरी तयारी कर ली है। जी हाँ! और वो ब्रह्मास्त्र और कोई नहीं बल्कि स्वयं पीएम मोदी हैं। पीएम मोदी को मैदान में उतारने का फैसला किया है और एक तरह से यह महत्वाकांक्षी योजना इस चुनाव में निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
उम्मीद की जा रही है कि कर्नाटक में 12 मई को होने वाले चुनावों से पहले पीएम मोदी कर्नाटक में 25 रैलियां करेंगे। कहा जा रहा है कि वह राज्य के हर छोटे बड़े कोने का दौरा करेंगे और वह जब राज्य में होंगे तब हर दिन कम से कम एक रैली को संबोधित करेंगे। अगर हम उनके बैंगलोर और मैसूर में की गयी रैलियों पर गौर करें तो यहां वह बेहद सफल रही थीं, यहां तक कि पीएम मोदी को सुनने के लिए रविवार को भी लोगों की भीड़ उमड़ जाती थी। । कांटे की टक्कर वाली स्थिति में पीएम मोदी की उपस्थिति चुनावी नतीजों पर इस तरह एक गहरा प्रभाव डालेगी।
पहला, भारत में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का असर कर्नाटक के चुनावों पर भी होगा। यह कर्नाटक के एक या दो प्रतिशत वोटों में बड़ा बदलाव ला सकता है। गौर हो कि लिंगायत के संबंध में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा विभाजन की राजनीति मतदाताओं को बांट सकती है और उन्हें बीजेपी से भी दूर कर सकती है। ऐसे में यहां पीएम मोदी का हस्तक्षेप इन सभी मतदाताओं को एकत्रित कर सकता है और हो सकता है कि उनका प्रभाव उन निष्पक्ष वोटरों पर भी पड़े, जो अभी तक अपना कोई मन नहीं बना पाए हैं। बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा एक ऐसी स्थिति में हैं जहां दोनों तरफ की लड़ाई में किसका पलड़ा भारी है कुछ नहीं कहा जा सकता या यूं कहें कि वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के साथ ये एक तरह से उनके व्यक्तित्व की लड़ाई भी है। पीएम मोदी का प्रभाव इस लड़ाई में उन्हें जीत की ओर ले जा सकता है।
दूसरा, इस तरह एक स्टार प्रचारक का इस्तेमाल करने से बीजेपी को फायदा ही हुआ है। अभी हाल ही के दो अवसरों पर ऐसा देखा भी गया। चुनाव-राज्य गुजरात में पीएम मोदी की रैलियों और उनके आक्रामक तेवर ने ने एक बार फिर से राज्य में बीजेपी को स्थापित किया । हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी की मदद से बनाये हुए जातिवादी समीकरण भी बीजेपी के रथ को रोक नहीं सकी। पीएम मोदी की आखिरी क्षणों में की गयी रैलियों की मदद से बीजेपी अपने घर में जीत दर्ज करने में कामयाब रही। एक ऐसी ही रणनीति त्रिपुरा में भी देखी गयी जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी रैलियों से मतदाताओं को खासकर वो मतदाता जो नाथ समुदाय के थे उन्हें अपनी ओर करने में सफल रहे थे। योगी एक बड़े कारण रहे जिनकी वजह से पहली बार राज्य में बीजेपी की सरकार बन पायी।
पीएम मोदी अपने प्रशासन की उपलब्धियों और राज्य में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निराशजनक प्रदर्शन पर सटीक प्रकाश डालने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। बढ़ते भ्रष्टाचार के आरोप, आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या से लेकर पीएफआई के कार्यकर्ता की रिहाई, गरीबों के प्रति कानून व्यवस्था की लचर स्थिति जैसे अनेकानेक मामले लगातार कर्नाटक में उजागर हुए हैं। सांप्रदायिक लड़ाई और विभाजन एजेंडे को पीएम मोदी विकास का चोला पहना सकते हैं और यहां तक कि दबाव बना सकते हैं कि राज्य में बेहतर समन्वय के लिए बीजेपी राज्य और केंद्र दोनों में बेहतर है।
कर्नाटक चुनाव में कई चुनावी दांव हैं क्योंकि पंजाब के बाद यह कांग्रेस सरकार के लिए एकमात्र बड़ा राज्य है। यदि कांग्रेस यहां हार जाती है तो बीजेपी के कांग्रेस-मुक्त भारत मिशन को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही वर्ष 2019 की तैयारियों को भी गति मिलेगी। राज्य में बीजेपी की जीत उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में मिली हार से कम हुई पार्टी की उम्मीदों को भी बढ़ाएगा। कर्नाटक बीजेपी के लिए दक्षिण मिशन का प्रवेश द्वार भी साबित हो सकता है। इस चुनाव के नतीजों की महत्व को समझते हुए पीएम मोदी का कर्नाटका दौरा चुनाव के समीकरण को बदल सकता है।