इस साल की शुरुआत में ही लाइवमिंट की एक रिपोर्ट ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में लंबित मामले एक गंभीर समस्या है। अदालतों में लंबित मुकदमों का बोझ हर साला बढ़ रहा है।
पिछले वर्ष आयी इस रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक भारत की अदालतों व पुलिस में यह लंबित दरें इक्कीसवीं सदी के 2016 के शुरुवात में ही अपने उच्चतम स्तर पर थीं। लंबित दर का मतलब है वो मुकदमे जिनकी सुनवाई पूरी नहीं हुई है या जिनका न्याय होना अभी बाकि है उन्हें साल के अंत में कुल मुकदमों में गिना जाता है। यह आंकड़े लगातार बढ़ ही रहे हैं।
देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों की दरों में बढ़ोतरी के पीछे कई कारण हैं। कभी-कभी कई मामलों में न्याय न देना, बिना पूरी जांच के ट्रायल के लिए भेजना। लंबित मामलों में अब पुलिस व अदालत की प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है। भारत पुलिसकर्मी व जजों दोनों की ही कमी से जूझ रहा है। भारत की पुलिस व जजों की प्रति व्यक्ति संख्यां अन्य जी-20 देशों की तुलना में कहीं ज्यादा कम है।
देश की विभिन्न अदालतों में लगभग 27-30 लाख मामले लंबित हैं। निचली स्तरीय अदालतों में अपराधिक लंबित मुकदमे यही दर्शाते हैं कि एक पीड़ित गरीब व्यक्ति किस तरह से इस धीमी व्यवस्था का शिकार हो रहा है।
पिछले तीन दशकों में न्यायपालिका में जजों की संख्या में भारी कमी आयी है। हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन दशकों में जजों की संख्या में 6 गुना बढ़ोतरी तो हुई है वहीं 12 गुना लंबित मुकदमो में भी बढ़ोतरी हुई है।
अब केंद्र सरकार ने न्यायिक प्रक्रिया की खामियों को संज्ञान में लिया है और इसीलिए जल्द ही केंद्र सरकार देश ने सभी 24 हाईकोर्ट में ‘जस्टिस क्लॉक’ (न्याय घड़ी) लगवाने का निर्णय लिया गया है जिसमें LED स्क्रीन बोर्ड पर हाईकोर्ट में निपटाए जाने वाले मामलों का हर दिन का अपडेट और लंबित स्थिति व मामलों के निपटारे के आधार पर उनकी रैंकिंग तय की जाएगी।
‘जस्टिस क्लॉक’ का ये अनोखा विचार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है जिन्होंने पिछले वर्ष सभी जनता को न्यायिक प्रक्रिया के प्रति जागरूक करने के मकसद से अदालतों में ‘जस्टिस क्लॉक’ (न्याय घड़ी) लगवाने की बात कही थी।
कानून राज्य मंत्री पी पी चौधरी के मुताबिक ‘जस्टिस क्लॉक’ लगवाने का मुख्य लक्ष्य है सभी अदालतों में प्रतिस्पर्धा की भावना को जागृत करना ताकि न्याय प्रक्रिया में तेजी आये और उनके द्वारा मामले के निपटारे के आधार पर उनकी रैंकिंग तय की जाएगी। इस व्यवस्था से न्यायपालिका की प्रक्रिया में काफी सुधार आएगा और वह अपने कार्यों के प्रति जवाबदेह भी बनेगी।
पिछले साल ‘जस्टिस क्लॉक’ का एक मॉडल सबसे पहले दिल्ली के जैसलमेर हाउस स्थित न्याय विभाग में लगाया गया जोकि कानून मंत्रालय के अंतर्गत आता है। हाईकोर्ट में प्रतिस्पर्धा का भाव पैदा करने के अलावा सरकार को अदालतों में जजों की नियुक्ति मामले में भी कोई नई रणनीति तैयार करनी चाहिए। कर्नाटक हाई कोर्ट में 5 जजों की नियुक्ति इस वर्ष पूरी हो जाएगी। न्याय विभाग मंत्रालय द्वारा जारी किये गए 1 फ़रवरी तक के आंकलन के मुताबिक न्यायाधीशों की कुल 1,079 पदों में से 403 पद खाली थे।
सरकार ने कर्नाटक हाई कोर्ट में 5 अतिरिक्त जजों की नियुक्ति को अधिसूचित किया है। वहीं इस मामले में सरकार अधिक नियुक्तियों के लिए विभिन्न स्तरों की मंजूरी का इंतजार कर रही है। ‘जस्टिस क्लॉक’ न्यायिक प्रक्रिया में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुवात है।
हालांकि, मामलों के निष्कासन में देरी की वजह जजों की कमी भी है और अब सरकार को रिक्त पदों पर जजों की नियुक्ति के लिए कोई ठोस कदम उठाने चाहिए। लंबित मामलों में ‘जस्टिस क्लॉक’ एक बड़े सकारात्मक बदलाव की शुरुवात है।