मुजफ्फरनगर दंगा तत्कालीन सपा सरकार के कार्यकाल पर एक बड़ा धब्बा रहा है। इस दंगे से पूर्व सरकार के शासन के कानून व्यवस्था में कमियां तो उजागर होती ही हैं साथ ही दंगे के दौरान लिए गए कुछ फैसले भी विवादित रहे। अब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों में दर्ज 131 मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया है जिसके बाद से विपक्ष योगी सरकार के इस फैसले की आलोचना कर रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह निर्णय हाल ही में बीजेपी एमपी संजीव बालियान के नेतृत्व में आए तीन खाप प्रतिनिधिमंडलों के बीच मुलाकात के बाद लिया है। दरअसल, बीजेपी एमपी संजीव और पार्टी के विधायक उमेश मलिक ने मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात कर कुछ मुकदमे वापस लेने का आग्रह किया था। जिसके बाद योगी आदित्यनाथ ने खाप प्रतिनिधिमंडलों की एक बैठक में मुजफ्फरनगर दंगों में दर्ज 131 मामलों को वापस लेने का फैसला लिया साथ ही इस सम्बन्ध में जिलाधिकारियों से रिपोर्ट भी मांगी है।
भले ही मीडिया योगी आदित्यनाथ के इस कदम को गलत बताये लेकिन अगर हम पिछली धर्म निरपेक्ष सरकारों के कार्यों पर गौर करें तो पाएंगे सभी ने धर्म की राजनीति में अपनी रोटियां सेंकी हैं और सांप्रदायिक दंगों को बढ़ावा दिया है। ऐसे में वर्तमान सरकार तत्कालीन सरकारों की तुलना में कहीं बेहतर ही नजर आती है। तत्कालीन अखिलेश सरकार पर वर्ष 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों को बढ़ावा देने के गंभीर आरोप भी लगे थे साथ ही ये तक कहा गया था कि अखिलेश यादव ने दंगों का फायदा अपनी राजनीति के लिए भी किया था। पूर्व अखिलेश सरकार पर एक ख़ास समुदाय को फायदा पहुँचाने के भी आरोप लगे थे। कहा जाता है कि अखिलेश ने अल्पसंख्यकों को अपनी ओर करने के लिए कथित रूप से हिन्दुओं पर आतंक को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। वही अखिलेश यादव आज योगी सरकार के इस फैसले पर एक बार फिर से जनता का ध्यान आकर्षित कर अपने कार्यकाल की असफलताओं को भुनाने की कोशिश जरुर करेंगे।
मुजफ्फरनगर दंगे मामले में न्यूज़ चैनल इंडिया टुडे ने पूर्व सपा सरकार के खिलाफ एक स्टिंग ऑपरेशन भी किया था जिसके बाद कैबिनेट मंत्री आजम खान पर दंगे में लिप्त आरोपी मुस्लिमों को रिहा करवाने का आरोप लगा था। हालांकि, आजम खान ने मुजफ्फरनगर दंगे मामले में अपने दोहरे रवैये के लिए लग रहे आरोपों का खंडन किया था। जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मुजफ्फरनगर दंगे के पीछे के कारणों का जिक्र किया है जिसके मुताबिक कवाल गांव में गौरव, सचिन और शाहनवाज नाम के युवकों की मौत के बाद ही वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगे भड़के थे। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है तत्कालीन सरकार ने एक ख़ास समुदाय का समर्थन किया साथ ही गौरव और सचिन की मौत के आरोपी 14 मुस्लिम युवकों को रिहा कर दिया था और एफआईआर में भी आरोपियों का नाम दर्ज नहीं किया था। पूर्व सरकार के इस दोहरे रवैये से लोगों में और आक्रोश पैदा हो गया था जिसने दंगों के दौरान आग में घी डालने का काम किया।
मुजफ्फरनगर दंगों के लिए आखिर कौन जिम्मेदार था ? इसी सवाल के जवाब के लिए जांच शुरू कर दिए गए। इस मामले की गहनता से जांच के बाद वरिष्ट पत्रकार विवेक सिन्हा ने ‘मुजफ्फरनगर, आखिर क्यों?’ नाम से एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई थी जिसे उन्होंने प्रतिष्ठित वुडपैकर डाक्यूमेंट्री फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया था। इस डाक्यूमेंट्री द्वारा उन्होंने मुज़फ्फरनगर दंगे के दौरान तत्कालीन सपा सरकार के उदासीन रवैये और हालातों पर काबू न कर पाने में पूर्व सरकार की असफलताओं पर प्रकाश डाला है। इस डाक्यूमेंट्री में ये भी दिखाया गया है कि कैसे पूर्व राज्य सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगे का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए किया था, कैसे उस समय निर्दोष हिन्दू युवाओं के साथ अन्याय हुआ था। अगर हम उस दौरान सपा सरकार के दंगों के प्रति रवैये को देखें तो पाएंगे कि वर्तमान की योगी सरकार का मुजफ्फरनगर दंगों में दर्ज मुकदमों को वापिस लेने का फैसला सही है।
वर्ष 2015 में चुनाव के दौरान सपा सरकार के प्रति जनता का गुस्सा नजर आया और शायद यही वजह है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी सत्ता कायम करने में कामयाब रही। उत्तर प्रदेश की बागडोर हाथ में लेते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बड़े फैसले लिए और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को एक बार फिर से दुरुस्त करने की कोशिशों में जुट गए। योगी ने कई अराजक तत्वों और माफियाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाये। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए अभी भी उनके प्रयास जारी है। जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने बाकि मामलों में निष्पक्ष और न्याय को तवज्जो दी है उम्मीद की जा रही है कि वो मुजफ्फरनगर दंगे मामले में भी न्याय करंगे। भले ही मीडिया योगी आदित्यनाथ के इस फैसले की आलोचना करे लेकिन योगी आदित्यनाथ ने मुकदमों को वापिस लेने का जो फैसला किया है वो एक निष्पक्ष और न्यायिक कदम है।