ये सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं थी बल्कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और अपनी साख खो रही कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के बीच की व्यक्तिगत लड़ाई थी। अहमद पटेल अपनी योजना के तहत बड़े ही सहज रूप से अमित शाह को चुनाव में मात देने में कामयाब हुए थे लेकिन अब लगता है बाजी पूरी पलट गयी है।
गुजरात हाई कोर्ट ने कांग्रेस को एक बड़ा झटका दिया है। दरअसल, गुजरात हाई कोर्ट ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अहमद पटेल की उस मांग को नामंजूर कर दिया है जिसमें उन्होंने वर्ष 2017 में राज्यसभा में उनके चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका को ख़ारिज करने की मांग की थी। अहमद पटेल के वकील पीएस चंपानेरी और पार्टी के वरिष्ठ नेता, वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में अपील की थी कि तकनीकी कमी की वजह से इस याचिका को ख़ारिज कर दिया जाए। उन्होंने बीजेपी नेता बलवंत सिंह राजपूत की याचिका को ख़ारिज करने की मांग करते हुए कहा था कि, कानून के तहत प्रतिवादियों को याचिका की सत्यापित प्रति मुहैया नहीं करवाई गयी थी इसलिए इसे ख़ारिज कर दिया जाए। हालांकि, बलवंत सिंह राजपूत के वकील निरुपम नानावती ने सही ढंग से इस मामले में तर्क देते हुए कहा कि ऐसा सिर्फ तकनीकी खामियों की वजह हुआ है जोकि सुधारा जा सकता है। याचिका में खामी इतनी भी बड़ी नहीं है कि इसे ख़ारिज कर दिया जाए। याचिकाकर्ता ने जो तर्क दिए उससे अदालत संतुष्ट थी। जस्टिस बेला त्रिवेदी पटेल जो अहमद पटेल की याचिका की सुनवाई कर रही हैं उन्होंने याचिकाकर्ता के तर्कों को सुनने के बाद बलवंत सिंह राजपूत की याचिका को ख़ारिज करने की अपील को नामंजूर कर दिया।
याचिका में गंभीर आरोप लगाये गये हैं जो यदि साबित हो जाते हैं तो राज्य सभा में अहमद पटेल की सदस्यता के साथ कांग्रेस के भाग्य पर भी इसका असर पड़ेगा। इस याचिका में गुजरात राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस के दो विधायकों के वोट को अमान्य करार देने के चुनाव आयोग के निर्णय को चुनौती दी गयी है। चुनाव आयोग ने कांग्रेस के दो विधायकों राघवजी पटेल और भोलाभाई गोहेल के वोट को खारिज कर दिया था जिन्होंने बीजेपी उम्मीदवार को वोट दिया था। चुनाव आयोग द्वारा वोटों की अमान्यता की घोषणा के बाद कांग्रेस के अहमद पटेल राज्य सभा चुनाव के आखिरी मिनट में जीत गये थे।
हालांकि, बलवंत सिंह राजपूत की याचिका से अहमद पटेल की जीत के पीछे की असली वजह सामने आ गयी। बलवंत सिंह ने अपनी याचिका में चुनाव आयोग द्वारा अनुचित तरीके से वोट को ख़ारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी। उन्होंने ये भी तर्क दिया था कि अगर ये दोनों वोट गिने जाते तो अहमद पटेल चुनाव हार जाते। ये तर्क बिना किसी क़ानूनी आधार के नहीं दिया गया था। वास्तव में, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 100 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि हाई कोर्ट की राय में चुनाव के नतीजे किसी भी वोट के अनुचित तरीके से रद्द किये जाने से प्रभावित हुए हैं तब चुनाव के नतीजों की घोषणा बेकार है। याचिका में मतदाताओं (गुजरात में कांग्रेस के दोनों विधायक, जिन्होंने राज्यसभा चुनावों के लिए मतदान किया) पर प्रभाव डालने और उन्हें रिश्वत देने के आधार पर अहमद पटेल के चुनाव को भी चुनौती दी गयी है। आरोप लगाया गया था कि अहमद पटेल भ्रष्टाचार में लिप्त थे उन्होंने कांग्रेस के 44 विधायकों को बेंगलुरु रिज़ॉर्ट में कैद रखा था और उनपर भारी खर्च किया था।
सभी जानते हैं कि कांग्रेस के लिए अहमद पटेल कितने जरुरी हैं। वो न सिर्फ पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं बल्कि गांधी परिवार के काफी करीब भी हैं, जो कांग्रेस के शाही परिवार का एक तरह से हिस्सा ही हैं। यही कारण है कि कांग्रेस निम्न स्तर की राजनीति में शामिल हुई थी और इस जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगा दी थी जिसके बाद अहमद पटेल ने राज्य सभा चुनावों में जीत दर्ज की थी।
तथ्य ये है कि गुजरात हाई कोर्ट में जब उनके चुनाव के खिलाफ याचिका दायर की गयी तब कांग्रेस के भीतर हलचल मच गयी। अहमद पटेल की जीत या हार का असर सीधा कांग्रेस की छवि पर पड़ेगा, वो छवि जो राहुल गांधी ने खुद के लिए बनाई है। याचिका का आधार मजबूत है और इस मामले में कोर्ट का फैसला अगर एक ही दिशा में बढ़ा तो शायद कांग्रेस को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
अमित शाह जरुर ही इस मामले को बड़े उत्साह से देख रहे होंगे और अगर चीजें इसी तरह जारी रहीं तो शायद ये अमित शाह की आखिरी चाल अहमद पटेल के लिए शह और मात साबित होगी।