कर्नाटक चुनाव की घोषणा के बाद से कांग्रेस और बीजेपी पार्टी अब तक चर्चा में रही हैं। हाल के दिनों में राज्य के बाहरी लोग दोनों ही राष्ट्रीय पार्टी और उनके उम्मीदवारों को समर्थन दे रहे हैं। हालांकि, अब एक और तीसरी पार्टी जनता दल सेकुलर (जेडीएस) चर्चा में आई है जो कर्नाटक में सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। जेडीएस पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की राजनीतिक पार्टी है जो राज्य के आगामी चुनाव में किंगमेकर साबित हो सकती है। 2013 में कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में जेडीएस ने बीजेपी के बराबर ही कुल 224 में से 40 सीटें जीती थीं। वोट शेयर में जेडीएस को बीजेपी के मुकाबले थोड़ा ज्यादा फायदा हुआ था। पहले बीजेपी को 19.9% और जेडीएस को 20.2% वोट मिले थे। यदि पिछले कुछ महीनों में किए गए सभी सर्वेक्षणों और चुनावों के परिणामों के साथ इन तथ्यों और आंकड़ों को जोड़कर देखें तो संभव है कि जेडीएस आगामी सरकार में किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है।
मौजूदा कांग्रेस के सीएम सिद्धारमैया ने अपने पूर्व गुरुदेव देवगौड़ा का साथ कई बार छोड़ा है। सिद्धारमैया ने जेडीएस और उसके नेताओं के प्रति अपने गुस्से को प्रदर्शित करने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। देवगौड़ा भी सिद्धारमैया के खिलाफ कई बार अपने विरोधी तेवर दिखा चुके हैं। जब पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के अध्यक्ष एचडी देवगौड़ा ने शुक्रवार को सिद्धारमैया पर हमला करते हुए कहा था कि “मुख्यमंत्री (सिद्धारमैया) जो इस पार्टी से उभरे हैं वो इस हद तक गिर चुके हैं। क्या वे मुख्यमंत्री हैं? कब तक रहने वाले हैं? मैं देख लूंगा। मैंने एक शपथ ली है। मैं आज ऐसे अनैतिक राजनेता को तैयार करने के लिए कर्नाटक के लोगों से माफ़ी मांगना चाहता हूँ, ऐसे मुख्यमंत्री को तैयार करना मेरी सबसे बड़ी गलती है। मैं बार-बार कहूंगा कि वे इस पद पर विराजमान होने के लिए सही उम्मीदवार नहीं है।”
वहीं देवगौड़ा के बेटे और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने इसी साल मार्च में कहा था कि, मैं सिद्धारमैया और कांग्रेस को चुनौती देता हूं, यदि हम बीजेपी के साथ हुए तो कांग्रेस पार्टी कर्नाटक की राजनीति में बुरी तरह से हार जाएगी। यह उल्लेखनीय है कि बीजेपी और जेडीएस ने पहले भी 2006-07 में गठबंधन सरकार बनाई थी। 2006 में राज्य में कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी जबकि राज्य के बीजेपी प्रमुख बी. एस. येदियुरप्पा उपमुख्यमंत्री बने थे।
पिछले कुछ महीनों में किए गए सभी ओपिनियन पोल्स और सर्वेक्षणों ने इस ओर इशारा किया है कि 2018 के चुनावों में कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत पाने में सफल नहीं हो पायेगी। ओपिनियन पोल्स में त्रिशंकु विधानसभा (हंग असेंबली) का सबसे ज्यादा अनुमान लगाया गया है। राज्य में सरकार बनाने के लिए जरुरी आंकड़ा 112 सीटों का है, ऐसे में गठबंधन सरकार बनने से ये आंकड़ा आसानी से हासिल हो सकता है। संभावना है कि चुनाव के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी जबकि बीजेपी के बाद कांग्रेस और जेडीएस दूसरे और तीसरे स्थान पर होंगे। जेडीएस और कांग्रेस के बीच मौजूदा तनाव को देखते हुए दोनों पार्टियों के गठबंधन की संभावना नजर नहीं आती। जेडीएस अगर कांग्रेस के साथ सरकार बनाती भी है तो उसे राज्य में उपमुख्यमंत्री पद से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। कांग्रेस केंद्र में नहीं है और कर्नाटक राज्य कैबिनेट के पदों के अलावा और पदों की पेशकश नहीं कर सकती। बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (नगर निगम) में कांग्रेस-जेडीएस का मौजूदा गठबंधन उतना महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि राज्य की राजनीति का खेल तो निगम स्तर पर पूरी तरह से अलग है।
बीजेपी के साथ गठबंधन जेडीएस के लिए नए रास्ते खोल देगा। बीजेपी के साथ गठबंधन से जेडीएस के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में प्रवेश मिल सकता है। जेडीएस मंत्रियों के लिए कैबिनेट पदों की संभावना के साथ राष्ट्रीय राजनीतिक दृश्य में फिर से प्रवेश के लिए ये एक बड़ा मौका होगा। निश्चित रूप से राज्य में उपमुख्यमंत्री पद बिना किसी अड़चन के जेडीएस को मिल जाएगा। हाल ही में चंद्र बाबू नायडू के तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और शिवसेना से बीजेपी की साख को जो क्षति हुई है उसे फिर से मजबूत करने के लिए बीजेपी को क्षेत्रीय पार्टियों की बहुत जरुरत है। जेडीएस राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर उस अंतर और मांग को पूरा कर सकता है जो अभी बीजेपी की जरूरत है।
बीजेपी और जेडीएस के इस संभावित गठबंधन से दोनों ही पार्टियों को कर्नाटक राज्य स्तर पर काफी फायदा होगा। अगर कर्नाटक चुनावों की भविष्यवाणी सही साबित होती है और बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तब राज्य में दोनों का गठबंधन इनकी आपसी जरूरतों को पूरा कर सकता है और अगर ऐसा हुआ तो यह निश्चित है कि राज्य में लगभग कांग्रेस का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा।