सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेंकडरी एजुकेशन (सीबीएसई) पेपर लीक विवाद तेजी से बढ़ रहा है। न्यूज़ चैनल्स इसे एक बड़े घोटाले के तौर पर लगातार दिखा रहे हैं, वैसे यह पहली बार हुआ है जब सीबीएसई के पेपर लीक की वजह से दुबारा परीक्षा करवाई जा रही है।
हमारी परीक्षा प्रणाली काफी पुरानी है जो एक असुरक्षित तंत्र द्वारा संचालित है, जहां पर कुछ विश्वविद्यालय और स्कूली शिक्षकों को परीक्षा के प्रश्नपत्रों का निर्धारण और मूल्यांकन करने की ज़िम्मेदारी मिलती हैं। जिसके कारण कभी कभी यह ज़िम्मेदारी आत्मसंतुष्टि और शक्ति के रास्ते से होते हुए लापरवाही और घोटालेबाज़ी की मंजिल तक पहुच जाती है। कुछ अफवाहों की मानें तो कई स्कूल के प्रधानाचार्य ही स्कूल के शिक्षकों को परीक्षा से पहले सील प्रश्नपत्र खोलने के लिए कहते हैं ताकि उनके स्कूल के बच्चों को परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिल सके। ऐसा करने से उनके स्कूल का परिणाम तो बढ़िया होगा ही और स्कूल की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।
स्कूली शिक्षक जो कोचिंग संस्थान चलाते हैं उनमे से कई वो होते हैं जो परीक्षाओं के प्रश्नपत्र को बनाते हैं और वह इस तरह के प्रश्नपत्र अपने बच्चों से अक्सर ‘मौक टेस्ट’ के नाम पर हल करवाते हैं जो कि कभी कभी वही पेपर होते हैं जो बोर्ड में आने वाले होते हैं! स्कूल और कॉलेज के शिक्षक जो कोचिंग इंस्टिट्यूट में काम करते हैं उनके ऊपर कोचिंग बंद करने के कानून को सख्ती से लागू करने की जरुरत है। सीबीएसई बोर्ड के ऊपर कई प्रतियोगी परीक्षाओं का भार होता है जिससे सभी की गोपिनियता को बनाए रखना शायद हमारे ‘चलता है’ व्यवस्था में फिट नहीं बैठता। हमें सिर्फ एक नहीं बल्कि सीबीएसई जैसी कई निकायों की जरुरत है जो अलग अलग परीक्षाओं में छात्रों की संख्या को देखते हुए परीक्षाओं का आयोजन करा सकें।
अब इस सवाल पर आते हैं कि लीक हुए प्रशनपत्र न सिर्फ व्हाट्सएप पर शेयर किया गया बल्कि सीबीएसई को भी गुपचुप तरीके से भेजा गया था, इससे यही लगता है कि इसके पीछे कोई बड़ी साजिश रची गयी थी। ऐसा लगता है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को सयुंक्त कोशिशों से जानबूझकर अंजाम दिया गया हो।
वामपंथी गुटों द्वारा प्रायोजित #MarchForEducation आंदोलन के साथ ही #CBSELeakGate का मामला सामने आया है जहां विपक्ष के नेता खुलेआम विद्यार्थियों को यह कहकर उकसा रहे हैं कि बीजेपी सरकार शिक्षा का निजीकरण करने की कोशिश कर रही है।
सोचने वाली बात है कि मार्च के महीने में ही जेएनयू में अनिवार्य उपस्थिति और अन्य मुद्दों को लेकर विवाद हुआ था जिसके बाद सरकार के खिलाफ #MarchForEducation आंदोलन को शुरू किया गया जिसका मकसद था सरकार द्वारा उत्कृष्ट संस्थानों को एक ऑटोनोमस बॉडी बनाने का विरोध करना, और अब सीबीएसई पपेर लीक मामले का विरोध! देश की राजधानी की सड़कों पर छात्रों का इन तीनों ही मामलों में विरोध प्रदर्शन करते हुए देखा गया जो सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे और जाहिर है कि यह विपक्ष का मोदी जी के खिलाफ पसंदीदा नारा है।
जरा सोचिये कि दिल्ली के सड़कों पर गुस्साए युवा जो मोदी जी के खिलाफ नारे लगा रहे हैं उससे किसे सबसे ज्यादा फायदा होगा? क्या इसके पीछे आपको कोई गड़बड़ी नजर नहीं आती? क्या आपके दिमाग में षड्यंत्र जैसे शब्द नहीं आते? जाहिर है कि सभी छात्र युवा मतदाता हैं, इनमें से कुछ ऐसे भी होंगे जो वर्ष 2019 के चुनाव में पहली बार वोट देंगे। इसिलए देश के नागरिकों को इस नए मोड़ की गहराई में जाना चाहिए और समझना चाहिए कि कैसे वर्ष 2019 के चुनाव को देखते हुए चीजों को उलझाया जा रहा है। ये दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए देश के छात्रों के भविष्य के साथ ऐसे विवादों के जरिये खिलवाड़ कर रही हैं।