उत्तर प्रदेश के शामली जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर कैराना हाल के वर्षों में हिंदुओं के पलायन की वजह से चर्चा में रहा है। बहुसंख्यक जनसंख्या के गुंडों द्वारा दी जा रही यातनाओं की वजह से बड़ी संख्या में कैराना से हिंदुओं का पलायन उत्तर प्रदेश राज्य चुनाव से पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बन गया था।
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संसद सदस्य स्वर्गीय हुकुम सिंह ने पहली बार बड़े पैमाने पर पलायन का मुद्दा उठाया था तब उन्होंने दो सूची जारी की थी जिसमें 346 और 68 परिवारों के विवरण शामिल थे जो कैराना और कांधला से पलायन कर चुके थे। हुकुम सिंह कैराना के बीजेपी सांसद थे जिन्होंने 2014 में हुए चुनाव में जीत हासिल की थी, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र की भलाई के लिए काम किया था और अपने निर्वाचन क्षेत्र की स्थिति पर खुलकर बात करने में कभी नहीं हिचकिचाए। श्वास संबंधित परेशानी से जूझ रहे हुकुम सिंह का इसी साल नॉएडा के एक अस्पताल में निधन हो गया। इसमें कोई शक नहीं है कि हुकुम सिंह के जाने से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ, लेकिन उनके जाने के बाद भी बीजेपी ने कैराना में हिंदुओं के लिए नर्क की स्थिति बनाने वाले बदमाशों का पीछा नहीं छोड़ा।
योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने डीजीपी से कहा है कि वो इस मामले में सभी जिलों के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधिक्षकों को निर्देश दें कि 28 फरवरी 2017 से पहले कथित तौर पर पलायन करने वालों की कारणों के साथ जानकारी उपलब्ध कराएं। इस रिपोर्ट को उपलब्ध करने के लिए एक सप्ताह की अवधि दी गयी है। ये दूसरी बार है जब बीजेपी सरकार ने इस घटना से जुड़े निर्देश जारी किए हैं। इस घटना से जुड़ा पहला निर्देश 20 जून, 2017 को जारी किया था लेकिन इस निर्देश के जवाब में जो जानकारी उपलब्ध करायी गयी थी उसका विवरण पर्याप्त नहीं था, इसी को देखते हुए सरकार ने 29 मार्च को नए निर्देश जारी किये थे।
राज्य में चुनाव आयोग द्वारा 2018 में होने वाले उप-चुनावों की तारीख घोषित करने से पहले वो कैराना में बड़े पैमाने पर पलायन के मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहे हैं। शायद मामला ये भी नहीं है, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कैराना में हिंदुओं के पलायन से जुड़ी एक रिपोर्ट में बताया है कि अब तक 250 परिवार कैराना से पलायन कर चुके हैं। कहा जाता है कि डेमोग्राफी में जो बदलाव हुए हैं वो 2013 में मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के 25,000 से अधिक लोगों के पुनर्वास की वजह से हुए हैं। एनएचआरसी की रिपोर्ट ने कुख्यात मुकीम के बढ़ते आतंक की पुष्टि की है जिसपर 2010-2015 के बीच लूट, हत्या, डकैती, आर्म्स एक्ट का उल्लंघन जैस 47 अपराधिक मामले दर्ज हैं। एनएचआरसी की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया था कि किसी विशेष समुदाय (जोकि बहुमत हैं) के सदस्यों के डर के चलते हिंदुओं ने पलायन किया है।
भारत ने हमेशा ही दुनिया भर के लोगों का स्वागत किया है लेकिन अपने ही गांवों और कस्बों से स्थानीय आबादी का प्रवास बीजेपी की अगुवाई वाली राज्य की सरकार और लोगों के लिए चिंता का विषय है। बीजेपी के शासनकाल में कैराना हिंदू की स्थिति में सुधार हुआ है, अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जा रहा है और न्यायपालिका में एक बार फिर से लोगों के विश्वास को बहाल किया जा रहा है। हालांकि, बीजेपी सभी दोषियों को चाहे वो कितने भी बड़े क्यों न हो सभी को पकड़ने की कोशिश कर रही है। कैराना मुद्दे के प्रति कुशल दृष्टिकोण निश्चित रूप से कैराना के हिंदुओं के जीवन को आसान बनाने में अहम भूमिका निभाएगा जिससे उन्हें भी सुरक्षा और शांति का स्वाद चखने को मिलेगा।