कठुआ में सलमा (बदला हुआ नाम) नाम की बच्ची के रेप का मामला सामने आने के बाद से देश का माहौल ही बदल गया है। हर जगह सलमा को इंसाफ देने की मांग उठ रही है। पूरा देश मृतक सलमा के परिवार के साथ खड़ा है। इस मामले में कुछ सवाल ऐसे हैं जो अभी भी नहीं सुलझे। जिस तरह से जांच की गयी है उसे देख कर लगता है कि इस मामले के पीछे कोई बड़ा खेल खेला जा रहा है।
पहला बिंदु ये है कि जम्मू कश्मीर पुलिस और मुख्यधारा की मीडिया द्वारा बार एसोसिएशन और उसके सदस्यों पर निशाना साधना। बार एसोसिएशन और उसके सदस्यों पर आरोप लगाया गया था कि वो कथित तौर पर आरोपियों के पक्ष में है और उनकी रिहाई की मांग भी कर रहे थे। यहां तक की बार एसोसिएशन के खिलाफ आरोपियों का पक्ष लेने पर जुलूस भी निकाला गया था, जबकि असली कहानी तो कुछ और ही है, जम्मू बार एसोसिएशन ने हड़ताल की मांग की थी जब हीरानगर के डोगराओं को निशाना बनाया गया था। दरअसल, बार एसोसिएशन चाहता था कि इस मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया जाए, जिससे पड़ोसी गांवों की हिंदू आबादी को परेशान किए बिना ही मामले में सटीक न्याय हो सके। वे जम्मू-कश्मीर क्राइम ब्रांच के जांचकर्ताओं की टीम द्वारा उत्पीड़न का शिकार होकर अपना घर छोड़ प्रस्थान कर रहे लोगों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
दूसरा बिंदू ये है कि कश्मीर सरकार सलमा हत्या मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो को स्थानांतरित करने से बचती नजर आई। कठुआ रेप मामले की जांच 3 अलग अलग प्रमुखों के अंतर्गत की जा रही थी। पहली टीम का गठन करने वाली टीम में ऐसे व्यक्ति शामिल थे जिनपर पहले से ही रिश्वत लेने का आरोप है। तब इस मामले को क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया था जिसमें पहले से ही कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिनपर अपराध के कुछ रिकॉर्ड दर्ज हैं। क्राइम ब्रांच के अधिकारी इरफ़ान वानी जो स्वयं 2007 में एक हिन्दू युवक की थाने में हत्या और उस युवक की बहन के बलात्कार का आरोपी रह चुका है। वो इस मामले में एक साल की सजा भी काट चुके हैं। इस मामले की जांच के लिए एक नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। रमेश कुमार जल्ला, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (क्राइम ब्रांच) को अंततः जांच दल का प्रमुख बनाया गया, इन्होने अपनी टीम के साथ, सलमा के बलात्कार और हत्या के मामले में दिए गये समय के अंदर ही कठुआ की जांच पूरी की। जम्मू और कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का इस मामले को कई विवादों के बाद भी सीबीआई को न सौंपना और मामले के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रुख अपनाना भी कई सवाल खड़े करता है।
तीसरा बिंदु है कठुआ मामले का जुडाव मुख्यधारा की मीडिया से जिसने इस पूरे मामले को एक सांप्रदायिक कोण दिया। मीडिया ने जम्मू क्षेत्र में आरोपियों का पोस्टर लगाया जिसमें जम्मू के हिन्दू समुदाय को इंगित किया था। मीडिया ने दिखाया कि हिन्दू समुदाय का बक्करवाल समुदाय के साथ अच्छे रिश्ते नहीं है और हिंदू उन्हें लक्षित करते हैं, जबकि सच ये है कि बक्करवाल का हिन्दू समुदाय के लोगों एक साथ अच्छे रिश्ते हैं। इसके अलावा एक सवाल और था जो मीडिया ने नहीं उठाया, वो ये कि मामले को बीजेपी और कई मंत्रियों की मांग के बावजूद भी सीबीआई को क्यों नहीं सौंपा गया।
मामले में इस तरह के सवेंदनशील बिन्दुओं पर मीडिया में आक्रोश की कमी गले से नहीं उतरती। उन्नाव मामले को जितनी जल्दी हो सके सीबीआई को सौंपने की बात कही गयी लेकिन पीडीपी क्यों खुद मामलों को अपने हाथों में रखना चाहती है?
आरोपी उनकी पृष्ठभूमि या विचारधाराओं के पक्ष में नहीं है तो उसे दण्डित किया जाना चाहिए। दोषी को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए लेकिन मीडिया का खुद किसी भी तर्क पर पहुँच कर फैसला सुनाना सही नहीं है, मीडिया को न्यायधीश नहीं बनना चाहिए। इस मामले को इमानदारी से और बिना किसी हस्तक्षेप के कुशल हाथो में सौंप देना चाहिए ताकि मामले में सही न्याय हो सके और सलमा को इंसाफ मिल सके।