गुजरात के नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में माया कोडनानी को गुजरात हाईकोर्ट ने निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया है। स्त्री रोग विशेषज्ञ से राजनेता बनीं माया कोडनानी गुजरात सरकार में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री थीं। 1998 से वह लगातार नरोदा की सीट जीत रही थीं। बीजेपी टिकट पर लगातार तीसरी बार नरोदा निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाने के बाद वो गुजरात की 12 वीं विधानसभा में शामिल हुई थीं। साल 2009 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष टीम से पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था जिसके बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इस मामले में बाबू बजरंगी और सुरेश लांगड़ा जैसे अन्य आरोपी के साथ सूची में उनका नाम प्रमुख रूप से शामिल हो गया।
27 फ़रवरी 2002 गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन में आग लगाए जाने के बाद ही 2002 में ही नरोदा पाटिया में नरसंहार हुआ था। साबरमती एक्सप्रेस के चार कोच जिनमें तीर्थयात्रियों और अयोध्या से लौटने वाले करसेवक सवार थे उसपर पत्थरबाजी हुई थी। बाद में इन चारों कोच में आग लगा दी गयी जिसमें 59 लोगों की मौत हो गयी जबकि 48 से ज्यादा लोग घायल हो गये थे। जब ट्रेन गोधरा स्टेशन से आगे बढ़ी थी तब 2000 लोगों की एक भीड़ ने ट्रेन पर हमला किया था। गोधरा ट्रेन जलाए जाने के प्रतिशोध में 28 फरवरी 2002 को गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगे शुरू हुए थे।
पुलिस की जांच भी कथित तौर पर दंगाइयों के पक्ष में थी और इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के लिए 2009 में एसआईटी जांच की स्थापना की थी। एसआईटी ने 2012 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी और फिर विशेष अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई। अगस्त 2012 में नरोदा पाटिया नरसंहार मामले का पहला फैसला जज ज्योत्सना याज्ञनिक ने सुनाया था। स्पेशल ट्रायल कोर्ट ने बीजेपी की मौजूदा विधायक माया कोडनानी को आपराधिक षड्यंत्र और हत्या के लिए मामले में दोषी ठहराया था। उन्हें 31 लोगों के साथ दोषी पाया गया, जिन्हें हत्या, आपराधिक साजिश और अन्य आरोपों का दोषी पाया गया था। वह गुजरात दंगे में दोषी होने वाली पहली महिला विधायक और मंत्री थीं। 31 अगस्त 2012 को उन्हें 28 साल की सजा सुनाई गयी, पहले 10 साल आईपीसी 326 (जानबूझकर खतरनाक हथियारों अथवा साधनों से गंभीर चोट पहुँचाने के लिए) और दूसरे में धारा 302 (हत्या) के तहत 18 साल की सजा सुनाई गयी थी। कोर्ट के फैसले के अनुसार दोनों सजा अलग-अलग चलनी थी जिससे दोनों को मिलाकर उनकी सजा की कुल अवधि 28 साल की हुई थी।
सुनवाई की प्रक्रिया के दौरान माया कोडनानी नरोदा पाटिया नरसंहार में अपनी भागीदारी से इंकार करती रहीं और दावा किया कि वो ‘राजनीति का शिकार’ हुई हैं। उनकी ओर से और पीड़ितों की ओर से भी अपील दायर की गयी थी। जस्टिस हर्ष देवानी की अध्यक्षता वाली पीठ ने एसआईटी टीम की दलीलें सुनी और 8 महीनों तक कभी दोषी तो कभी निर्दोष ठहराया। इस मामले में 19 दिसंबर 2016 को सुनवाई फिर से शुरू की गयी। जस्टिस आर.आर त्रिपाठी ने कोडनानी की अपील को सुनकर और इस अपील को अन्य अपीलों के साथ जोड़कर सुनवाई का फैसला किया। जस्टिस त्रिपाठी की सेवानिवृत्ति के बाद सुनवाई फिर से शुरू की गई।
जस्टिस हर्ष देवानी और जस्टिस एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने विपक्षी दलों की दलीलें सुनने के बाद पिछले साल अगस्त में आदेश को सुरक्षित रखा था। माया कोडनानी और उनके व्यक्तिगत सहायक किरपाल सिंह चौबड़ को गुजरात हाई कोर्ट ने आज बड़ी राहत दी, उन्हें निर्दोष करार देते हुए सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। हाई कोर्ट के आदेश में बाबु बजरंगी, सुरेश लंगड़ा और अन्य आरोपियों को मामले में दोषी करार दिया गया और उनकी सजा को बरकरार रखा गया।
पूर्व बीजेपी विधायक और उनके समर्थकों के लिए ये बड़ी जीत है। नरसंहार में शामिल अन्य आरोपियों को दोषी करार देते हुए उन्हें सजा देकर हाई कोर्ट ने तथ्यों के आधार पर निष्पक्ष फैसला किया है। ये फैसला कांग्रेस पार्टी और उनके समर्थकों के लिए एक और झटका होगा। झूठी खबरें फ़ैलाने वाली कांग्रेस पार्टी को एक नहीं दो नहीं बल्कि 5 झटके लगातार लगे हैं। मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में एनआईए अदालत द्वारा 11 आरोपियों के बरी से, जज लोया मौत मामले का फैसला, सीमन से भरा गुब्बारे वाली झूठी खबर का पर्दाफाश होना, कथित गोमांस की घटना तक के मामलों में कांग्रेस पार्टी को एक के बाद एक झटका लगा और अब गुजरात हाई कोर्ट का फैसला कांग्रेस के लिए पांचवा झटका होगा।