सरकार और सुरक्षा बल का नक्सल के खिलाफ रुख सख्त है। इसी का नतीजा है कि 29 मार्च को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में 16 महिला नक्सली समेत 59 नक्सलियों ने पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सुकमा जिले के पुलिस अधीक्षक अभिषेक मीना ने कहा, आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में से नौ के खिलाफ स्थाई वारंट लंबित थे और ये सभी इरबोर पुलिस स्टेशन की सीमा के तहत गांवों के रहने वाले हैं। सुकमा और अन्य इलाकों के नक्सलियों को इससे पहले कई परेशानी हुई थी। ऐसा लगता है कि सरकार और सुरक्षा बलों द्वारा नक्सल प्रभावित इलाकों में सक्रीय दृष्टिकोण के नतीजे अब सामने आ रहे हैं और कई क्षेत्रों में नक्सली अपने प्रभुत्व को खो रहे हैं।
पिछला एक सप्ताह पुलिस और सुरक्षा बलों के समक्ष नक्सलियों के आत्मसमर्पण से भरा था। 29 मार्च को छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में इंडो-तिब्बती सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के समक्ष तीन नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था।
Three Naxals surrender before #ITBP in Kondagaon in #Chhatisgarh pic.twitter.com/ogZ2HYrmEr
— ITBP (@ITBP_official) March 29, 2018
इसी तरह, 28 मार्च को पांच नक्सलियों ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।
Five naxals surrendered before police in Maharashtra's Gadchiroli pic.twitter.com/InvLkmnQbP
— ANI (@ANI) March 28, 2018
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एसटीएफ, डीआरजी, डीएफ और सीआरपीएफ की सयुंक्त टीम ने दो इनामी नक्सली समेत 14 नक्सलियों को गिरफ्तार कर बड़ी सफलता हासिल की थी।
A joint team of STF, DRG, DF and CRPF nabbed 14 ultras, including two women Naxals from Bhejji region in Sukma district. Two Naxals carrying cash rewards were also arrested@SukmaDist @sri9011https://t.co/HCYC5IxbyO
— Bastar Police (@bastar_police) March 27, 2018
इसके बाद कुछ दिनों के अंदर ही सीआरपीएफ के सामने 59 गोरिल्ला के नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। यही वजह हो सकती है कि 29 मार्च को नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया हो। नक्सलियों की ये हार सिर्फ सेना और सुरक्षा बलों की सक्रीय मुठभेड़ और गिरफ्तारी की वजह तक सीमित नहीं है बल्कि सरकार और सुरक्षा बलों द्वारा उनके वित्तपोषण में कमी भी है। यह प्रकाश में तब आया जब वर्ष 2017-18 एसएसबी ने 550 करोड़ रूपए के अफीम के कारोबार (नक्सल के वित्तपोषण का मुख्य स्त्रोत) को नष्ट कर दिया था। इसीलिए अब यह कोशिश की जा रही है कि नक्सल के साम्राज्य को हर तरफ से कमजोर कर दिया जाये।
सरकार और सुरक्षा बलों की एक के बाद एक सफलता के पीछे मोदी सरकार और गृह मंत्रालय की सुनियोजित रणनीति है। आंकड़ों के अनुसार, नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कमी आयी है। पिछले वर्ष 90 प्रतिशत नक्सली हमले मुख्यतौर पर 4 नक्सली प्रभावित राज्यों (बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा) में हुए थे।
अधिकारियों ने इस सफलता का श्रेय सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर नक्सली कट्टरपंथियों के खिलाफ जवाबी रणनीतियों को दिया है। इस रणनीति में शीर्ष स्तर के कमांडर और उनके मुखबिर शामिल हैं। इनके ऊपर सही रणनीतियों के तहत नक्सलियों को लक्षित करने का दबाव था। राज्य में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ते जंगल को भी खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। स्थानीय सरकारों ने विकास दर के कार्यों को बढ़ा दिया है। सड़कों के निर्माण, मोबाइल टावर्स और अलग क्षेत्रों में पुलिस स्टेशनों के निर्माण को बढ़ा दिया गया है। इससे नक्सल की कमर टूटी है और वह कमज़ोर पड़ रहे हैं। नक्सली अपने इलाकों में पहले की तरह आसानी से स्थानांतरित नहीं हो पा रहे और न ही गोल्लाबरुद और वित्त का आदान-प्रदान कर पा रहे हैं।
सरकार राज्य में कम प्रभावित नक्सली इलाकों से नक्सल तत्वों को बाहर निकालने में सक्षम रही है। हालांकि, नक्सल प्रभावित राज्यों में, खासकर सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक सुकमा से पता चलता है कि नक्सलियों के खिलाफ सरकार और सुरक्षा बलों की कार्रवाई तेज हुई है। सरकार की रणनीति न सिर्फ नक्सलियों की नाक में दम करना है बल्कि उन्हें उनके बिल से निकालना भी है। कुछ क्षेत्रों में नक्सल प्रभुत्व को प्रतिबंधित करने के बाद सुरक्षा बल खासकर सीआरपीएफ के पास नक्सल आतंकवादियों के खिलाफ पूरी उर्जा के साथ सख्त कार्यवाही करने का विकल्प भी है। इसके अलावा हाल ही में नक्सलियों के आत्मसमर्पण से पता चलता है कि अत्यंत प्रभावित क्षेत्र में सक्रिय नक्सलियों का अब नक्सलवाद से भरोसा उठ रहा है और आत्मसमर्पण को अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। नक्सलियों के साथ रणनीतिक लड़ाई में सरकार पहले से ही उनसे कई कदम आगे निकल चुकी है लेकिन नक्सलवादियों द्वारा आत्मसमर्पण करने वालों के साथ सरकार के रवैये से ऐसा लगता है कि सरकार वैचारिक लड़ाई भी लड़ रही है। जिस तरह से सरकार नक्सलवाद के खिलाफ कार्य कर रही है उससे यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब नक्सल देश से पूरी तरह खत्म हो जायेगा।