एफसीआरए नियमों ने अनदेखी के बाद NGO’s के लाइसेंस हुए रद्द, राष्ट्रीय विरोधी गतिविधियों का हुआ पर्दाफाश

एफसीआरए एनजीओ

बीजेपी सरकार के एफसीआरए नियमों ने राष्ट्र हित के लिए हानिकारक कई ऐसी संस्थाओं की नाक में दम कर दिया है जो विदेशों से वित्तीय सहयोग या अनुदान लेती हैं। पूरे विश्व में भारत सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, इसके विकास में इतनी तेजी पहले कभी नहीं देखी गयी। आमतौर पर सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों में सीमित संसाधनों का बराबर का वितरण करना मुश्किल हो जाता है। मांग और आपूर्ति के बीच इस अंतर ने देश में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की आवश्यकता को बढ़ाया है। आम तौर पर गैर-लाभकारी आधार पर काम कर रहे एनजीओ भारत में बहुत समय से बिना ज्यादा कानून और नियंत्रण के कार्य कर रही थीैं। देश के ग्रामीण और उपनगरीय क्षेत्रों में व्यापक तौर पहुंच चुकी गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियां अभी तक अनियंत्रित थी।

कई अज्ञात स्रोतों से वित्तीय सहयोग प्राप्त करने वाली स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) सक्रिय रूप से विकास-विरोधी और भारत विरोधी कार्यों में इसका उपयोग कर रही हैं। आत्मनिर्भरता तक पहुंचने के लिए भारत के लक्ष्य को ताक पर रखकर इन एनजीओ का लक्ष्य विदेशी दाताओं के निहित स्वार्थों की सेवा करना था।

ये तब बदला जब वर्ष 2014 में चुनाव जीतकर बीजेपी सत्ता में आयी जिसने कांग्रेस द्वारा गैर-सरकारी संगठनों को दी गयी स्वतंत्रता पर रोक लगायी। बीजेपी सरकार को यह एहसास हो गया था कि कांग्रेस केंद्र में अपने लंबे शासनकाल के दौरान क्या नहीं कर पायी थी। विदेशी वित्त पोषित गैर-सरकारी संगठनों में से अधिकांश गैरकानूनी स्रोतों से प्राप्त धन का उपयोग देश की नकारात्मक छवि को बाहर की दुनिया में प्रदर्शित करने के लिए कर रही थी।

धर्मान्तरण गिरोह अक्सर एनजीओ का सहारा लेके गरीबों का धर्मांतरण करवाते हैं और कभी उन्हें देश की विकास में बाधा डालने के लिए भी इस्तेमाल भी करते हैं. कुडनकुलम परमाणु संयंत्र व ओडिशा में पोस्को परियोजना का विरोध इसके प्रमुख उदाहरण हैं। भारत के ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में काम करने वाली ईसाई मिशनरी व इस्लामिक प्रोपेगेंडा मिशनरी जैसे जाकिर नाइक की इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन उन कार्यों से जुडी है जो भारत के राष्ट्रीय हितों और उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है।

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को संबोधित करते हुए बताया कि बीते चार सालों में लगभग 14,000 एनजीओ के लाइसेंस को रद्द किया गया है। इन एनजीओ ने विदेशी धन प्राप्त तो किया लेकिन सरकार द्वारा अनुरोध करने के बावजूद बीते वर्षों में प्राप्त धन के स्रोतों का खुलासा नहीं कर सकीं।

एफसीआरए अधिनियम इस्तेमाल सरकार ने उन संगठनों के खिलाफ किया जो विदेशी वित्तीय सहयोग का प्रयोग भारतीय विरोधी गतिविधियों में करती थीं। प्रसिद्ध एनजीओ एफसीआरए लाइसेंस रद्द किए जाने के कुछ उदाहरणों में 2015 में’ ग्रीनपीस इंडिया’ शामिल है, जो कि “जनता के हित और राज्य के आर्थिक हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।” ऐसी ही एक और एनजीओ ‘कम्पैशन इंटरनेशनल’ है जिसे एफसीआरए अधिनियम के तहत दंडित किया गया। इन एनजीओ पर उन गतिविधियों में शामिल होने का संदेह था जो देश के विकास के हित में नहीं था। एनजीओ से जुड़े ऐसे कई मामले हैं जो विदेश में स्थित चर्चो के साथ मिली हुई हैं, जोकि जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के लिए जानी जाती हैं, झारखंड जैसे राज्य इसके उदाहरण हैं।

वर्तमान केंद्र सरकार जबसे सत्ता में आयी है तबसे इस मामले को लेकर सरकार का रुख साफ़ है। नियमों का पालन करते हुए भारत की प्रगति में रुकावट न बने। यदि ऐसा नहीं करते तो आपका संगठन बंद हो जायेगा। इस तरह की कड़ाई पहले कभी नहीं देखी गयी शायद इसके पीछे की वजह विपक्ष और ऐसे संगठनों की मिलीभगत हो। सरकार के इस तरह के क़दमों से और एनजीओ के लिए एफसीआर अधिनियम से यह तो साफ़ हो गया है कि देश जरुर विकास करेगा लेकिन अपने स्वयं के नियमों और फंडों पर। सगठनों द्वारा लोगों को दान और मुफ्त की सेवा का लालच देकर उन्हें भ्रमित करने नहीं दिया जायेगा। विकास के लक्ष्य को बाहरी उपनिवेशों के बिना ही प्राप्त किया जायेगा, जो भारतीय जनता की स्वतंत्र इच्छा पर हावी होना चाहते हैं और अपने स्वामित्व के लिए हालात को अपने अनुरूप बनाने की कोशिश करते हैं।

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