ऐसी फिल्म हम बहुत कम ही देखतें हैं जिसकी अपनी खामियां हो और तब भी सामान्य फिल्मों के मुकाबले कहीं ज्यादा बेहतर लगती है। किसी भी व्यक्ति से वास्तविकता से जुड़ी फिल्म को पूरे समय तक देखने के लिए अपनी सीट पर बैठा रहे। लेकिन शूजित सरकार ने अपनी नयी फिल्म ‘अक्टूबर’ में जनता को कुछ ऐसा ही परोसा है। ये फिल्म खामियों से रहित तो नहीं है लेकिन हां हम ये जरुर कह सके हैं कि ये फिल्म खामियों के बावजूद बड़ी ही खूबसूरती से पेश की गई है, तो ये रहा फिल्म ‘अक्टूबर’ को लेकर मेरी समीक्षा।
‘अक्टूबर’ रिव्यु: फिल्म का आधार
फिल्म अक्टूबर होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले दो छात्रों पर आधारित है, दानिश उर्फ डैन (वरुण धवन) और शिवली डैन (बनिता संधू) जो एक घटना के बाद से एक दूसरे से असामान्य तरीके से जुड़ जातें हैं (ज्यादा अधिक गहराई में जाना शायद किसी को पसंद न आये, माफ करना)। डैन जो अच्छा तो है लेकिन अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं है और परेशान है, उसे शिवली से लगाव हो जाता है जिसके बिना वो अपनी जिंदगी के बारे में नहीं सोच सकता, इनका रिश्ता कैसे और बढ़ता जाता है यही इस फिल्म में दिखाया गया है।
शूजित की ‘विक्की डोनर और पिकू जैसी पिछली हिट फिल्मों की तरह ही इस फिल्म में भी सहायक कलाकरों ने अपनी अदाकारी की छाप छोड़ी है। अस्पताल में जहां दुर्घटना के बाद शिवली भर्ती है वहां के चिकित्सा स्टाफ से लेकर शिवली की सिंगल माँ का किरदार करने वाली गीतांजलि राव ने बेहतरीन अभिनय किया है। शिवली की सिंगल माँ का किरदार निभा रहीं गीतांजलि राव इस फिल्म में अकेले ही सभी मुश्किलों से लड़ती हुई नजर आ रही हैं, उन्होंने अपने अभिनय से एक ऐसी छाप छोड़ी है जो किसी के भी दिमाग से नहीं जा।
फिल्म अक्टूबर का म्यूजिक इसे और भी शानदार बनाता है, फिल्म के ट्रेलर में जैसा दिखाया गया था कोई गाना नहीं है लेकिन इसके बावजूद फ़िल्म के बैकग्राउंड स्कोर ने दर्शकों को उनके सीट से बांधे रखा। इसका श्रेय शांतनु मोइत्रा को जाता है जिन्होंने इस फिल्म के म्यूजिक को एक अलग ही स्तर पर पहुंचाया है और फिल्म की मासूमियत को भी अपने बेहतरीन कम्पोजीशन से बरकरार रखा है। ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई फिल्म अपने संगीत की वजह से उबाऊ नहीं लगती।
अक्टूबर रिव्यु: क्या है ख़ास:-
वरुण धवन और बनिता संधू की साल 2018 की ये पहली फिल्म है। बदलापुर के बाद पहली बार वरुण धवन एक आम बॉलीवुड हीरो की छवि से उपर उठकर एक नए अवतार में नजर आ रहे हैं जो शायद दर्शकों के लिए वाकई चौंकाने वाला है। इस फिल्म में डैन एक ऐसा लड़का है जो अच्छा है लेकिन काफी चिडचिडा भी है, इस तरह का किरदार हमें स्कूल और कॉलेज में अक्सर ही देखने को मिलते हैं।
जिस तरीके से शिवली के साथ हुई दुर्घटना के बाद वो समझदारी दिखाता है और उसे अकेला छोड़ने से भी मना कर देता है वो बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया गया है। शिवली के साथ हुई दुर्घटना के बाद डैन का उसका साथ देना जबकि वो अच्छे दोस्त भी नहीं है कुछ समय के लिए अटपटा सा लगता है लेकिन जैसे जैसे आप कहानी की गहरायी में जायेंगे वैसे ही आपको ये किरदार खामियों के बावजूद आकर्षक लगेगा। वास्तव में इस फिल्म में वास्तविक जीवन को उकेरने की कोशिश की गयी है।
फिल्म अक्टूबर से बनिता संधू के रूप में बॉलीवुड को एक क्यूट और बेहतरीन अभिनेत्री मिल गयी है। शायद कई सालों बाद मैंने किसी अभिनेत्री को देखा है जिसने अपनी भावनाओं को बड़ी ही खूबसूरती से पेश किया है, खासकर अपनी आंखों के हाव-भावों से बनिता संधू ने शिवली के किरदार को असरदार बना दिया है। एक ऐसी लड़की जिसका किरदार सीमित है, जो ज्यादातर बिस्तर या व्हीलचेयर तक ही सीमित रह जाती है, ऐसे किरदार को बनिता संधू ने बड़ी ही खूबसूरती से निभाया है, ये उन अभिनेत्रियों के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ होगा जो एक्टिंग कम दिखावा ज्यादा करती हैं। अपनी सीमित किरदार में भी बनिता संधू ने अनुष्का शर्मा और कैटरीना कैफ से भी बेहतर प्रदर्शन किया है।
‘विक्की डोनर’ और ‘पिक्कू’ जैसी फिल्मों की कहानी लिखने वाली जूही चतुर्वेदी ने फिल्म ‘अक्टूबर’ के साथ एक और बेहतरीन काम किया है। हालांकि, हमारे पास पिछली फिल्मों की तरह कोई कॉमेडी नहीं है, लेकिन फिल्म की ‘सही समीक्षा जरुर करते हैं, और इस फिल्म को देखने के बाद आपके चेहरे पर निश्चित रूप से एक मुस्कान जरुर आयेगी और आप फिल्म देखने के बाद एक अलग ही व्यक्ति बनकर हॉल से बाहर निकलेंगे।
अक्टूबर रिव्यु: क्या है कमी ?
फिल्म अक्टूबर में भी खामियां हैं इसके बावजूद जूही चतुर्वेदी ने पूरी कोशिश की है फिल्म की कहानी को आकर्षक बनाने की , प्लाट को बनाने में समय तो लगता ही है और कई दर्शक शायद फिल्म को पूरा देखने के लिए अपना धैर्य ज्यादा देर तक बनाकर न रख पाएं। वैसे फिल्म ‘रॉय’ की तुलना में अक्टूबर कहीं ज्यादा बेहतर है अगर जूही की कोशिश न शामिल होती तो ये भी एक असफल फिल्मों की सूची में शामिल हो जाती, ऐसे में हमें इस बात का शुक्रिया तो करना चाहिए कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
इस फिल्म से जुडी एक दूसरी समस्या है डार्क थीम का होना, भारतीय दर्शकों से अच्छे से परिचित होने के बावजूद भी ये थीम रखना हजम नहीं होता। अक्टूबर आपको उदास करता है जो शायद कई दर्शको को पसंद न भी आये। मनाली में जाने का दृश्य, जैसा कि ट्रेलर में दिखाया गया है, कुछ पूरी तरह से सही नहीं लगता, फिल्म की कहानी का जो आधार है उसपर ये दृश्य थोड़ा अटपटा सा लगता है जिससे शायद दर्शक फिल्म को आधे रस्ते में ही छोड़कर जाना पसंद कर सकतें हैं।
हाँ, अगर पूरी फिल्म की बात करें तो ये फिल्म अपने आप में काफी अलग है और उतनी उबाऊ भी नहीं है जो शायद कुछ लोगों को लग भी सकती है। भारतीय सिनेमा के लिए अक्टूबर एक नया मोड़ जरुर हो सकता है, फिलहाल हम तो यही कहंगे कि ये ऐसी फिल्म है जिसे आपको एक बार तो जरुर देखना चाहिए।