बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी एक बार फिर से अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के बचाव के लिए आगे आये हैं। इस बार उन्होंने अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि पर पूजा के अपने ‘मूल अधिकार’ को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है और इस मामले में कोर्ट से जल्द ही सुनवाई करने के लिए भी कहा है। पहले, सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल और अभिनेत्री अर्पाना सेन सहित इस मामले में हस्तक्षेप की 32 याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था, और तर्क दिए था कि भूमि का धार्मिक उपयोगों की जगह ‘धर्मनिरपेक्ष उपयोग’ किया जाना चाहिए। एक स्पेशल सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने तब ये स्पष्ट कर दिया था कि भूमि विवाद के लिए केवल मूल पार्टियों के तर्कों को ही आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाएगी। हालांकि, उस सुनवाई से सुब्रमण्यम स्वामी को एक बार फिर से मौका मिल गया है। कोर्ट ने पहले की एक याचिका पर फिर से सुनवाई का आदेश दिया था जिसमें सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या के विवादित स्थल राम जन्मभूमि पर पूजा करने के अधिकार का दावा किया था।
सुब्रमण्यम स्वामी ने समय-समय पर हिंदू-विरोधी तत्वों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्होंने एक बार फिर से हिंदू विरोधियों के खिलाफ हमले शुरू कर दिए हैं। असल में ये सुब्रमण्यम स्वामी ही थे जिन्होंने राम सेतु को कांग्रेस-डीएमके जोड़ी द्वारा खंडित करने से रोका था। तत्कालीन यूपीए सरकार ने लाखों हिंदुओं की भावनाओं को ताक पर रख कर राम सेतु को हटाने की योजना बनाई थी जिसके तहत तत्कालीन सरकार ने 2005 में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट (SSCP) का ऐलान किया था। हालांकि, सुब्रमण्यम स्वामी ने तब इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन सरकार की इस योजना को फेल कर मामले में विजयी हुए थे। इस पूरी प्रक्रिया में कांग्रेस की गंदी साजिश को सफल होने से उन्होंने रोका था और एक बड़ी न्यायिक लड़ाई होने से भी रोका था।
जैसा की पहले बताया गया, कई राम जन्मभूमि मामले में हस्तक्षेप करने वाली कई याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फिर से सुनवाई का आदेश दिया था जिसमें सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या के विवादित स्थल राम मंदिर में पूजा करने के अधिकार का दावा किया था। गौर हो कि, ये याचिका भूमि पर चल रहे विवाद से अलग एक स्वतंत्र याचिका है। ये कोई हस्तक्षेप नहीं बल्कि एक अनुरोध है जिसके तहत मंदिर में पूजा करने के मौलिक अधिकारों में प्रवर्तन की मांग की गयी है। सुब्रमण्यम स्वामी ने सही तरीके से कहा कि मंदिर में पूजा करने का अधिकार भूमि विवाद मामले से अलग है। मंदिर में पूजा करने की मांग केवल एक नागरिक अधिकार है जो जटिल सिविल प्रक्रिया में शामिल है, प्रार्थना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जो विभिन्न प्रकार के अधिकारों से कहीं उपर है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 में इस अधिकार को लेकर स्पष्ट लिखा गया है कि अगर इस अधिकार का हनन होता है तो सुप्रीम कोर्ट में मामले को उठाया जा सकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में पूजा करने के मूल अधिकार का जिक्र है जो हर नागरिक को स्वतंत्र रूप से अभ्यास, प्रचार और धर्म का प्रचार करने का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलों को स्वीकारते हुए कहा था कि जो याचिका स्वामी द्वारा दायर की गयी है उसपर फिर से अम्ल किया जाएगा और इसे उचित बेंच के समक्ष पेश किया जायेगा।
अयोध्या मामले के फैसले में देरी ने भारत में रहने वाले हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को काफी आहत किया है। भगवान राम हिंदू धर्म की मूल धारणा का केंद्र हैं और हिंदुओं के लिए ये आहत करने वाला है कि उन्हें भगवन की जन्मभूमि पर मंदिर बनाने से रोका गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार इस मामले की सुनवाई में तेजी से कार्रवाई करने का फैसला किया और अनावश्यक लोगों को इस मामले में हस्तक्षेप करने से रोक दिया है, अनावश्यक लोगों के हस्तक्षेप से इस लड़ाई में हिंदुओं की उम्मीदें कमजोर होने लगी थी। हालांकि, इस याचिका से हिंदुओं में एक नयी उम्मीद की किरण जगी है, चूंकि ये याचिका पूजा करने के मूल अधिकारों से जुड़ी है तो ऐसा लगता है इससे हिंदुओं को जल्द ही राहत मिलेगी। पूजा करने के अधिकार को जल्द ही लागु किया जा सकता है चूंकि ये भूमि विवाद मामले से अलग है। यदि स्वामी अपनी इस याचिका द्वारा कोर्ट को अपनी बात से सहमत करवाने में कामयाब हो जाते हैं तो इसका मतलब ये है कि भूमि विवाद के बावजूद भी हिंदू अपने मौलिक अधिकारों के तहत मंदिर में पूजा कर सकेंगे।