रमन सिंह ने सयुंक्त विपक्ष के विचार पर किया जोरदार हमला

संयुक्त विपक्ष

2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष की एकजुटता कुछ समय से काफी चर्चा में है। विपक्ष के संयुक्त होने के कारण बीजेपी को कई उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा और हर उपचुनाव में हार को विपक्ष और विपक्ष पोषित मीडिया द्वारा मोदी युग के अंत के तौर पर देखा जाने लगा। वहीं बड़े चुनावों की बात की जाए तो 2014 के बाद से लगभग सभी राज्यों के चुनावों में बीजेपी और सहयोगी दलों ने जीत हासिल की है। इसलिए महात्वाकांक्षी ‘महागठबंधन परियोजना’ ही विपक्षी दलों का एकमात्र जरिया है जो अपनी अलग अलग विचारधाराओं की पार्टी को संयुक्त कर देश में मोदी लहर को रोकना चाहते हैं। वही लहर जिस वजह से 2014 में उन्हें हार का मुंह दिखाया था। उन्हें अपनी हार और उससे हुए नुकसान आज भी याद हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019  के चुनाव में जीत दर्ज कर फिर से सरकार बनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

उन्होंने राज्य स्तर पर एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले दलों के राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये हैं। उनका मानना है कि छोटे क्षेत्रीय समूह राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के समान कोई दूसरा विकल्प खड़ा नहीं कर पाएंगे।

हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा उपचुनाव में मिली हार पर रमन सिंह जी ने कहा कि ये हार कोई गंभीर मुद्दा नहीं और न ही इसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों पड़ेगा। रमन सिंह 2013 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद के लिए तीसरी बार चुने गए थे। उनके गृह राज्य में अनुसूचित जनजाति और जाति की स्थिति में सुधार के लिए उनके संगठनात्मक क्षमताओं को सराहा भी गया है। वह 2003  से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं और बीजेपी के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्री भी हैं। अपने कार्यों के लिए मशहूर रमन सिंह वह व्यक्ति हैं जिसे छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी सलवा-जुडूम आंदोलन को शुरू करने पर विपक्ष ने भी सराहा था।

रामन सिंह ने इंदिरा गांधी के शासनकाल में संयुक्त विपक्ष की तुलना वर्तमान समय से करते हुए आगे कहा, ” “एक समय इंदिरा (गांधी) बनाम सभी थे, और अब मोदीजी बनाम सभी हैं। यह मोदीजी की बढ़ती लोकप्रियता का नतीजा है कि कुछ छोटी पार्टियां उन्हें रोकने के प्रयास में ध्रुवीकरण कर सकती हैं, लेकिन वे सफल नहीं हो पाएंगी। वे मोदीजी की लोकप्रियता के खिलाफ विजयी नहीं हो सकते।”

उन्होंने कांग्रेस के 2019 में सत्ता में आने के सपने पर सवाल उठाया है कि जिन्हें हर राज्य के चुनावों में लगातार हार मिली हो वो सत्ता में वापस आने का सपना कैसे देख रहे हैं। क्षेत्रीय पार्टियां मोदी के डर से संयुक्त हुई हैं। समान हितों की कमी और हर दल का अपना एक अलग एजेंडा और मतदाता आधारों के बीच मतभेद ही 2019 के चुनावों से पहले संयुक्त विपक्षी पार्टियों के पतन का कारण होगा। पश्चिम बंगाल की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की दोस्त और राज्य स्तर पर दुश्मन कैसे हो सकती है। यह नहीं चलने वाला”

2014 में मोदी लहर और राज्यों के आगामी चुनाव में एनडीए की बड़ी जीत ने देश की कई पार्टियों के दिमाग पर ऐसा असर डाला है कि उनके सोचने समझने की शक्ति कम हो गयी। 2014 के बाद से ये पार्टियां भारतीय राजनीति में खत्म होने के कगार पर हैं। जनता ने बीजेपी युग में “सुशासन” और पिछली सरकारों के खोखले वादों में अंतर को देखा है। संयुक्त विपक्ष की पार्टियों के चिंता का मुख्य कारण यही है जो अब 2019 के चुनावों के लिए एक जाल बुनने की कोशिश में हैं जिसमें वो जनता को आकर्षक लेकिन झूठे वादों में फंसा सकें।

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