भारत के सर्वोच्च्य न्यायलय (सुप्रीम कोर्ट) की छवि एक ऐसी संस्था की है जो देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है और संविधान को कायम रखती है। सुप्रीम कोर्ट तथ्यों के आधार पर ही फैसले देता है। मुस्लिम कानून द्वारा मान्यता प्राप्त ऐसी संपत्ति जो धार्मिक और चैरिटी से जुडी हो उसे बनाए रखने व उसकी देखरेख के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड की स्थापना की गयी थी।
वक्फ बोर्ड की ‘दक्षता’ को अगर समझाये तो कह सकते हैं वो बोर्ड अपनी चल या अचल संपत्ति का इस्तेमाल राजस्व को बढ़ाने के लिए करती है, जस्टिस शाश्वत कुमार की कमिटी की एक रिपोर्ट में सामने आय था कि, देशभर में वक्फ की कुल संपत्ति की कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये है और इस संपत्ति से होने वाली आय सिर्फ 163 करोड़ रुपये है, जबकि इसे वास्तव में 12 हजार करोड़ रुपये होना चाहिए था, शायद इसके पीछे की वजह कुप्रबंधन और वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यों में कमी की है।
इस कुप्रबंधन और कुल आय में हानि को देखते हुए, बार बार ये सुझाव दिए गये कि वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किया जाना चाहिए। हालांकि, वक्फ बोर्ड नहीं चाहता कि संपत्ति पर एएसआई का नियंत्रण हो।
अब वक्फ बोर्ड ने जो नयी मांग सामने रखी है वो ताज महल की संपत्ति पर मालिकाना हक को लेकर है और ये मांग कोई नयी बात नहीं है।
ताजमहल को वक्फ की संपत्ति बताकर जो पहली मांग की गयी थी वो 1998 में मोहम्मद इरफ़ान बेदर नामक व्यक्ति ने की थी जिसने वक्फ बोर्ड से वक्फ संपत्ति को प्राप्त करने के लिए कहा था। वो ये भी चाहता था कि बोर्ड उसे ताज महल की संपत्ति का कार्यवाहक घोषित कर दे। जब निर्णय में देरी हुई तो वो इस मामले को लेकर इलाहबाद उच्च न्यायलय पहुंच गया। इलाहबाद उच्च न्यायलय ने इरफ़ान को निर्देश दिए कि वो इस मामले में बोर्ड से संपर्क करे।
उत्तर प्रदेश के सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए एएसआई को नोटिस भेज कर ताज महल को वक्फ की संपत्ति के रूप में रजिस्टर करने को कहा। एएसआई ने बोर्ड के इस हास्यास्पद याचिका का विरोध किया लेकिन बोर्ड ने इस मामले में आगे बढ़कर स्मारक को वक्फ की संपत्ति के रूप में घोषित कर दिया।
इस आदेश से स्तब्ध एएसआई ने जुलाई 2005 में बोर्ड द्वारा ताज महल को वक्फ की संपत्ति घोषित किये जाने के निर्णय को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान वक्फ के दावे का ही मजाक बना दिया। सीजेआई ने सुनवाई के दौरान ऐतिहासिक स्मारक को लेकर वक्फ के बिना सिर-पैर के दावों को हास्यास्पद बताया।
देश के शीर्ष न्यायधीश ने बोर्ड से कहा, ‘भारत में कौन विश्वास करेगा कि ताज महल वक्फ बोर्ड का है? ऐसे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए।’
उन्होंने आगे कहा, शाहजहां ने वक्फनामे पर दस्तखत कैसे किए? वह तो जेल में बंद थे। वह हिरासत से ही ताज महल देखते थे।’
कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों आधारहीन बताया और उनसे कहा कि शाहजहां द्वारा ताज महल को स्थानांतरित करने से संबंधित दस्तखत वाले दस्तावेज कोर्ट में पेश करने के लिए भी कहा। जब बोर्ड ने इस मामले के लिए और समय चाहा तो सीजीआई ने जवाब दिया, “शाहजहां के हस्ताक्षर दिखायें।”
कोर्ट की सुनवाई से सार्वजनिक उपहास का पात्र बने उत्तर प्रदेश के सुन्नी वक्फ बोर्ड को झटका जरुर लगा होगा जो ताज महल पर अपना मालिकाना हक चाहते हैं। बोर्ड के आधारहीन और हास्यास्पद दावों पर सुप्रीम कोर्ट का मजाक न्यायसंगत था। हां अब इस मजाक से उम्मीद कर सकते हैं कि शायद बोर्ड को सही सीख जरुर मिली होगी जिससे वो भविष्य में फिर ऐसे बेतुके दावे करने से पहले सोचेगा।