पीएम मोदी ने यशवंत सिन्हा के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नही छोड़ा

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पीएम मोदी के लिए एक और राजनीतिक जीत हुई है जिसमें बागी नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। पटना में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यशवंत सिन्हा ने कहा कि वो पार्टी पॉलिटिक्स से संन्यास ले रहे हैं और बीजेपी के साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त कर रहे हैं। सिन्हा पार्टी से नाराज थे और कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी के साथ मंच साझा करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने खुद को पार्टी पॉलिटिक्स से अलग कर लिया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी इस दौरान वहां उपस्थित थे। ऐसा लगता है कि सिन्हा तटस्थ राजनीतिक खेल खेल रहे हैं लेकिन हालात कुछ और ही इशारा कर रहे थे। इसके साथ ही, उन्होंने देश में एनडीए सरकार पर आधारहीन राजनीतिक आरोप लगाते हुए कहा कि एनडीए की वजह से लोकतंत्र कमजोर हुआ और संसद बाधित हुआ। वे संसद बाधित होने पर भाजपा को दोषी ठहरा रहे हैं, जबकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने संसदीय कार्यवाही को बाधित किया था!

यशवंत सिन्हा खुद को हारा हुआ दिखा रहे हैं और हमेशा से ही वो जनता की नजरों में बने रहने के लिए ऐसा करते आये हैं। यहां तक कि इसी साल 30 जनवरी को उन्होंने ‘राष्ट्र मंच’ भी बनाया था। उन्होंने दावा किया कि ये मंच पार्टी की राजनीति से मुक्त होगा और केवल केंद्र की गलत नीतियों को इस मंच से उजागर करने का लक्ष्य होगा। हालांकि, कई कांग्रेस नेता और अन्य प्रमुख विपक्षी नेता मंच के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे। दरअसल, इस मंच को एक सार्वजानिक मंच के रूप में पेश किया गया था जिसमें टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी भी शामिल थे। यशवंत सिन्हा वास्तव में इस आमंत्रण के जरिये अपनी तटस्थ राजनीति की आड़ में विपक्षी नेताओं से अपनी साठ-गाठ को स्थापित किया था! इससे पता चलता है कि वास्तव में वो तटस्थ राजनीतिक के रूप में अपनी स्वार्थ की राजनीति का पोषण कर रहे थे।

दरअसल, सच तो ये है कि वो सक्रीय राजनीति के लिए सक्षम नहीं थे, उन्होंने अपनी ओर सभी का ध्यान आकर्षित करने के लिए पीएम मोदी पर लगातार हमले शुरू कर दिए। फिर भी पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उनपर ध्यान नहीं दिया। इसके बावजूद सिन्हा लगातार बीजेपी पर हमले करते रहे, इसके बावजूद दोनों प्रमुखों ने उनपर कोई कार्रवाई नहीं की और न ही उनकी ओर कोई ध्यान दिया। नतीजा ये था कि यशवंत सिन्हा जो जनता की सहानुभूति के भूखे थे वो पीड़ित कार्ड खेलने में असमर्थ साबित हुए। वो बीजेपी के खिलाफ मात्र एक ऐसे स्त्रोत बनकर रह गये जिनपर कोई आपत्तिजनक कार्रवाई या न्यायसंगत कार्रवाई नहीं की गई। विपक्षी नेताओं से समर्थन लेने और बीजेपी के दुश्मनों से हाथ मिलाने की कोशिश में वो खुद का ही बड़ा नुकसान कर बैठे। किसी ने भी उन्हें पीड़ित होने के लिए सहानुभूति नहीं जताई लेकिन हां अवसरवादी गद्दार होने के लिए उन्हें जनता की नफरतों का जरुर सामना करना पड़ा।

बीजेपी ने यशवंत सिन्हा को एक ऐसी मजबूर स्थिति में पहुंचा दिया जहां उनके पास पार्टी से इस्तीफा देने का रास्ता ही शेष रह गया था। वह अमित शाह और पीएम मोदी को उत्तेजित करने में सफल नहीं हो पाए। आखिरकार, उन्होंने हार मान ली और पार्टी से इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी सबके सामने रख दिया। इस्तीफा देने के बाद भी उन्होंने पीएम मोदी को अजीब तरीके से दोषी ठहराते हुए कहा कि पीएम ने उन्हें बर्खास्त नहीं किया क्योंकि वो डर गये थे (इस प्रकार सिन्हा को पीड़ित कार्ड खेलने के लिए इस्तीफा देना पड़ा था)। विपक्ष और कुछ दुश्मन हमेशा से ही पीएम मोदी और अमित शाह को तुच्छ राजनीतिक मुद्दों पर बोलने और गलतियां करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी और अमित शाह अनुभवी राजनेता हैं और दोनों ने ऐसे नेताओं की ओर ध्यान न देकर अलग-थलग कर दिया जिससे उनके दुश्मन अपने ही खेल में हार जाते हैं और यशवंत सिन्हा का मामला भी कुछ ऐसा ही है जिसके बाद उनके पास पार्टी से इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

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