हमें ये कहने की जरुरत नहीं है कि जाति के आधार पर आरक्षण स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े प्रतिबंधों में से एक रहा है। जाति के आधार पर आरक्षण ने हमारे देश में प्रतिस्पर्धात्मकता की भावना को मार दिया है, यही वजह है कि देश मेधावी प्रतिभा से वंचित हुआ है क्योंकि मेधावी छात्र देश से बाहर जाकर अपना करियर बना रहे हैं। इससे भी बुरा तो ये है कि जो भी इस दुर्भावना से लाभान्वित हुआ है वो इस व्यवस्था से जितना हो सकता है उतना फायदा उठाना चाहता है और अगर ऐसा नहीं होता है तो वो देश में उत्पात मचाने की धमकी देते हैं, जैसे उन्होंने अप्रैल माह के शुरुआत में भारत बंद का ऐलान किया था और हिंसा को बढ़ावा दिया था।
आरक्षण के इस खतरे ने अपने पंख इस हद तक फैला लिए हैं कि जाट और पाटीदार जैसे समृद्ध और सम्मानित समुदायों को ‘कुलीन समूह’ में शामिल करने की मांग की जाने लगी है, जब भी सरकार उनकी मांगों को ख़ारिज करती है इनके अंदर अफरा-तफरी मच जाती है। तो क्या होता यदि ऐसा कोई समुदाय स्वयंसेवक इस आरक्षण से मिलने वाले अधिकार को छोड़ देता है? क्या होगा यदि पिछड़ी जाति आरक्षण को खत्म करने का फैसला करे? इसका सच होना काफी आदर्शवादी लगता है, है न ?
एक ऐसा ही कदम तमिलनाडु के एक समुदाय ने उठाया है जिसने देश को चौंका दिया है और राजनीतिक समीकरणों को दुखी कर दिया है। तमिलनाडु के देवेंद्र कुला वेल्लार के सदस्य के पास अनुसूचित जाति का स्टेटस है। अब उन्होंने इस अनुसूचित जाति के स्टेटस को छोड़ने का मन बना लिया है। हां, वेल्लार सभी विशेषाधिकारों को छोड़ने के लिए तैयार हैं जो केंद्र और तमिलनाडु (जहां से वो हैं) सरकार द्वारा उन्हें आरक्षण प्रणाली के तहत प्रदान की गयी है।
ये कुछ भी नहीं बल्कि जल्दबाजी में लिया गया फैसला है। इसके पीछे का उद्देश्य तो कुछ और ही है। दरअसल, उनके इस संघर्ष में लाखों तर्कसंगत भारतीय शामिल हो रहे हैं ताकि वर्षों से चली आ रही आरक्षण प्रणाली से वो खुद को अलग कर सकें।
मुख्य नेताओं में से एक पुठिया तमिलगाम पार्टी के नेता, श्री के. कृष्णास्वामी ने कहा, “देवेंद्र कुला वेल्लालर के सदस्यों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है क्योंकि वो अनुसूचित जाति सूची का हिस्सा हैं।”
उन्होंने कहा कि, “इस समुदाय को सिर्फ एक वोट बैंक की नजर से देखा जाता है। और जैसा कि हम गतिशीलता और प्रगति को बढ़ावा देना चाहते हैं इसलिए इस समूह ने अनुसूचित जाति की सूची से बाहर निकलने का फैसला किया है।”
इस समूह के अनुसार, आरक्षण ने उन्हें अपने आप में कलंकित कर दिया है जिसकी वजह से इस समूह के लोगों के साथ समाज में अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है। इस विरोध का नेतृत्व पुठिया तमिलगाम पार्टी करेगी और 6 मई को सभी देवेंद्र कुला वेल्लार के सदस्य विरुधुनगर में इकट्ठा होंगे, सभी यहां अनुसूचित जाति से बहिष्कार की मांग करेंगे। दरअसल, तमिलनाडु में पारंपरिक त्योहार पोंगल के दौरान खेले जाने वाले जल्लीकट्टू खेल पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी जिसके बाद जल्लीकाट्टू प्रतिबंध के खिलाफ आंदोलन चलाया गया था जो सफल भी हुआ था। इसी आंदोलन के तर्ज पर देवेंद्र कुला वेल्लार के सदस्य अनुसूचित जाति की सूची से खुद को अलग करने के लिए आंदोलन शुरू करेंगे। के.कृष्णास्वामी ने ये भी कहा कि ये आंदोलन तमिलनाडु पार्टियों जैसे एडीएमकेऔर एआईएडीएमके के लिए एक जोरदार तमाचा साबित होगा जो बार-बार अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस सूची के अंतर्गत आने वाले लोगों को दबाने और उनका शोषण करने की कोशिश करती हैं।
देश में जहां आरक्षण का उपयोग सशक्तिकरण के साधनों की बजाय राजनीतिक उपकरण के लिए किया जाता है। इसी आरक्षण का इस्तेमाल कर नेता अपने स्वार्थ के लिए अपने मनमाने निर्णयों को बढ़ावा देते हैं। ऐसे में वेल्लार समुदाय द्वारा खुद को आरक्षण की जंजीर से बाहर करने का फैसला किसी क्रांतिकारी फैसले से कम नहीं है। स्वतंत्र भारत बनाने के लिए हमारे संस्थापक पिता द्वारा की गयी गलतियों को सुधारने की दिशा में ये पहला कदम होगा।
सच कहूँ तो ये जानकार बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है कि एक समुदाय जिसे जाति के आधार पर आरक्षण प्राप्त है उन्हें इससे मिलने वाले फायदे की परवाह नहीं है और न ही वो अपनी आजीविका आरक्षण से होने वाले फायदे से चलाना चाहते हैं।