उपमुख्यमंत्री पद के लिए इनकार के बाद डीके शिवकुमार की आगे की योजना क्या है ?

शिवकुमार

PC: india.com

जहां कांग्रेस अपने अध्यक्ष राहुल गांधी को कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का श्रेय दे रही है वहीं, सच्चाई ये है कि इसके पीछे एक स्थानीय मजबूत नेता का हाथ है जिसने अपनी रणनीति से ये सुनिश्चित किया कि बीजेपी कर्नाटक में आधे से अधिक सीट जीतने के बाद भी सरकार बनाने नाकाम रहे।

ये पहली बार नहीं है जब डीके शिवकुमार ने कांग्रेस को मुश्किल घड़ी से निकाला है। डीके शिवकुमार ने कांग्रेस को एक नहीं बल्कि कई बार शर्मिंदा होने से बचाया है। संकट की स्थिति को संभालने की उनकी क्षमता 2002 में पहली बार सामने आई थी। तब महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख की सरकार खतरे में थी। हार के डर से देशमुख ने अपने विधायकों को तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा द्वारा शासित राज्य कर्नाटक में भेजा था। उस दौरान कृष्णा ने स्थिति को संभालने के लिए तत्कालीन शहरी विकास मंत्री डीके शिवकुमार को विश्वासयोग्य चुना था। विधायकों को एक हफ्ते के लिए डीके शिवकुमार की देखरेख में बेंगलुरु के ईगलटन रिसॉर्ट में रखा गया था। इसके बाद शिवकुमार विधायकों को ट्रस्ट वोट के लिए महाराष्ट्र में ले गये थे तभी तो विलासराव की सरकार गिरने से बच गयी थी तब डीके शिवकुमार काफी चर्चा में थे।

पिछले साल अगस्त में शिवकुमार लगातार खबरों में बने रहे थे तब लाभार्थी गांधी परिवार के वफादार अहमद पटेल थे। दरअसल, राज्यसभा चुनाव के वक्त बीजेपी ने कांग्रेस के लिए ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी जिससे कांग्रेस के लिए अपने विधायकों की चिंता सताने लगी थी तब कांग्रेस ने विधायकों की सुरक्षा का जिम्मा डी के शिवकुमार को सौंपा गया था। जिसके बाद ही कांग्रेस जीत पाई थी और कांग्रेस के वफादार अपनी राज्यसभा सीट बरकरार रखने में सक्षम रहे थे।

हालांकि, शिवकुमार जिन्होंने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को बचाया, कांग्रेस को संकट की स्थिति से बचाया तब भी कांग्रेस ने एक बार फिर से उन्हें वो महत्व नहीं दिया जिसके वो हकदार हैं। ऐसे में बुरी स्थिति से गुजर रही पार्टी के विधायकों को एकसाथ रखने का कोई मतलब नहीं है। विधायकों को नजरबंद रखना निंदाजनक और अपमानजनक दोनों हो सकता है लेकिन तथ्य ये है कि उन्होंने कांग्रेस के हाथों से कर्नाटक को फिसलने से बचाया है। शिवकुमार पहले भी ऐसा कर चुके हैं लेकिन इस बार उन्होंने जो किया वो बहुत बड़ा कार्य था क्योंकि इस बार चुनौती और दांव दोनों कठिन थे। इस लड़ाई में बीजेपी ताकतवर और घातक नजर आ रही थी और उम्मीद जताई जा रही थी कि कांग्रेस शायद ही इस बार अपनी साख बचा पाने में सक्षम हो पायेगी। हालांकि, शिवकुमार इसमें बराबरी पर थे। उन्होंने गठबंधन से जुड़े 116 विधायकों मजबूती से बनाये रखा और सुनिश्चित किया कि वे सभी गठबंधन में साथ बने रहे। शायद ये उनका प्रभाव ही था कि गठबंधन में सभी निर्दलीय पार्टी के विधायक भी साथ आ गये । शुरू में सभी विधायकों को ईगलटन रिज़ॉर्ट में में रखा गया था। बाद में, शिवकुमार ने अफवाह फैलाई कि विधायकों को केरल ले जाया जा रहा है, हालांकि, आखिरी क्षणों में बदलाव कर ये घोषणा की गई कि उन्हें हैदराबाद में स्थानांतरित कर दिया गया है। उनकी एक ऐसी चाल जो सभी को आश्चर्यचकित करती है।

कोई भी शिवकुमार के प्रति सहानुभूति जता सकता है क्योंकि पार्टी में उनके कार्य को वो महत्व नहीं दिया जिसके वो हकदार हैं। कांग्रेस किसी नेता के राजनीतिक कौशल की परवाह नहीं करती है, ये पूरी तरह से पारिवारिक रिश्तों और चापलूसी के आधार पर काम करती है। शिवकुमार न केवल एक मास्टर रणनीतिकार बल्कि कांग्रेस के लिए एक ख़ास संपत्ति भी हैं। दरअसल, 2013 के चुनावों में 251 करोड़ रुपये की घोषित संपत्ति के साथ वो भारत के दूसरे सबसे अमीर मंत्री बन गये थे। इस बार उन्होंने घोषणा की कि उनकी घोषित संपत्ति 730 करोड़ रुपए है जोकि उनकी कुल संपत्ति में तीन गुना बढ़ोतरी को दर्शाता है। हालांकि, कांग्रेस द्वारा उन्हें बार बार दरकिनार कर दिया जाता है। यहां तक कि इस बार भी कांग्रेस ने निर्दयी तरीके से शिवकुमार की आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया और रिपोर्ट के अनुसार जी परमेश्वर अगले उपमुख्यमंत्री बनेंगे जबकि एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री होंगे। वहीं, पिछले साल भी शिवकुमार को मुख्य रूप से केपीसीसी का अध्यक्ष नहीं बनाया गया था तब शायद उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा था।

इंडियन एक्सप्रेस रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में कांग्रेस के संकटमोचन शिवकुमार की नजर अब ‘बड़े पद’ पर है। हम सभी जानते हैं कि वो बड़ा पद क्या है। हालांकि, कांग्रेस अभी भी उनके प्रयासों और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को नजरअंदाज कर रही है। शिवकुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं, उनकी संपत्ति और राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस शायद एक और प्रभावी नेता खो सकती है। लगता है कांग्रेस एक और बड़ी गलती कर रही है क्योंकि शिवकुमार शायद कोई और विकल्प की तलाश कर सकते हैं यदि कांग्रेस लगातार उनके प्रयासों की ऐसे ही अनदेखा करती रही।

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