सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में एक बड़ा फैसला लिया था जिसमें कोर्ट ने अखिलेश यादव के शासनकाल के दौरान उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा किए गए एक संशोधन को रद्द कर दिया था। अखिलेश यादव ने अपने शासनकाल में पूर्व मुख्यमंत्रीयों को स्थायी आवास की अनुमति दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के समाप्त होने के बाद सरकारी आवास के हकदार नहीं हैं। अगर वो सरकारी आवास को अपने कार्यकाल के समाप्त होने के बाद नहीं छोड़ते हैं तो ये कानून का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस तरह का कानून, “मनमाना, पक्षपात और संविधान द्वारा असमर्थित है।” सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि, “प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक भूमि और सार्वजनिक वस्तु जैसे सरकारी बंगले/आधिकारिक निवास सार्वजनिक संपत्ति है, जो देश के लोगों से संबंधित हैं और ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री ताउम्र सरकारी आवास में नहीं रह सकता है।” कोर्ट ने इस संशोधन को अवैध बताते हुए कहा कि अधिनियम में प्रावधान, पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र सरकारी खर्च पर सरकारी बंगला देना जनता के समानता के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। ये अवैध और अनुशासित है और किसी भी संवैधानिक सिद्धांतों द्वारा इसका समर्थन नहीं किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन, भत्ता और अन्य प्रावधान) अधिनियम की धारा 4 (3) में अखिलेश यादव द्वारा किये गये संशोधन को ख़ारिज कर दिया है।
दरअसल, उत्तरप्रदेश के गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की ओर से 2016 में याचिका दायर की गई थी। एनजीओ ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन, भत्ता और अन्य प्रावधान) अधिनियम, 1981 की धारा 4 (3) में 2016 में किये गये संशोधन को चुनौती दी थी। इस धारा के तहत राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास का हक मिल गया था। बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रीयों को लखनऊ में अपने सरकारी आवंटित बंगलों को खाली करने का निर्देश दिया था लेकिन इस आदेश के तीन सप्ताह बाद, 2016 के अगस्त के अंत में तत्कालीन यूपी सरकार एक बिल लाये थे ताकि वो सरकारी आवास पर अपने कब्जे को वैध दिखा सकें।
जब सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में इसे खारिज कर दिया था तब अखिलेश सरकार ने विधानसभा में एक बिल पारित किया था जिससे वो सरकारी आवास पर कब्जे को बनाये रखने में कामयाब हो सकें। ये न केवल अनैतिक बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन था।
कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए योगी सरकार ने 6 पूर्व मुख्यमंत्रीयों, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, मायावती, राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव को 15 दिनों के अंदर सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस दिया है। वर्तमान समय में ये सभी पूर्व मुख्यमंत्री राज्य की राजधानी लखनऊ में उच्च सुरक्षा वाले वीवीआईपी क्षेत्र में स्थित सरकारी संपत्ति पर कब्जा किये हुए हैं। अब, सभी पूर्व मुख्यमंत्री नए घर की तलाश में व्यस्त हैं। राजनाथ सिंह ने संपत्ति विभाग को लिखकर कहा कि वो गोमती नगर में अपने घर 3/206 विपुल खंड में स्थानांतरित हो जाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात की थी और उन्हें एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने 4 और 5 विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित अपने और अखिलेश यादव के सरकारी बंगलों को नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी और नेता विधान परिषद अहमद हसन के नाम पर एलॉट करने का अनुरोध किया। ये दोनों ही समाजवादी पार्टी के वफादार और भरोसेमंद सदस्य रहे हैं। इससे साफ़ जाहिर होता है कि मुलायम सिंह यादव आधिकारिक बंगले को हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं और इसलिए वो इस तरह की कोशिशें कर रहे हैं। हालांकि, मुलायम सिंह यादव ने अपने लिए आवास की तलाश शुरू कर दी है और उनकी पार्टी के सांसद संजय सेठ इसमें उनकी मदद कर रहे हैं। संजय ने उन्हें गोमतीनगर में विपुल खंड में एक जमीन भी दिखाई है। वहीं, उनके बेटे अखिलेश यादव ने अपना बंगला खाली करने के लिए दो साल के समय की मांग की है।
After BSP Chief Mayawati disregards SC order, SP Chief Akhilesh Yadav demands two years to vacate the government bungalow citing ‘non-availability of suitable accommodation’. @Amir_Haque with the details #MemorialMaya pic.twitter.com/WEuxNZfvlH
— TIMES NOW (@TimesNow) May 21, 2018
बीजेपी के सूत्रों के अनुसार, कल्याण सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में राजधानी में मिला सरकारी बंगला खाली करना शुरू कर दिया है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी दिल्ली में इलाज करा रहे हैं, इसलिए उन्हें नोटिस नहीं दिया जा सका है। हालांकि, उन्हें 15 दिनों के भीतर ही आधिकारिक सरकारी बंगला खाली करना होगा।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने सरकारी बंगला खाली करने के आदेश के बाद अपने बंगले को बचाने की कवायद शुरू कर दी है। राजनीतिक चाल चलते हुए उन्होंने अपने सरकारी आवास 13ए माल एवेन्यू पर ‘कांशीराम यादगार विश्राम स्थल’ का बोर्ड लगवा दिया है। ये बोर्ड मायावती द्वारा कब्ज़ा किये हुए सरकारी आवास पर लगाया गया है। राज्य सम्पत्ति अधिकारी योगेश शुक्ला ने कहा कि,” वो किसी और चीज के लिए बंगला नंबर 13 ए पंजीकृत नहीं कर सकती हैं। वो उस बंगले को गेस्ट हाउस या संग्रहालय में परिवर्तित नहीं कर सकती हैं। एक घर घर ही होता है। अगर पुराने दस्तावेजों में ये बंगला गेस्ट हाउस या और किसी नाम से है तो मैं इसकी फिर से जांच करूंगा। हालांकि, जहां तक मुझे पता है, ऐसा कुछ नहीं है। अन्यथा, ये नेमप्लेट बहुत पहले सामने आया होता।” उन्होंने आगे कहा,” 13ए बंगले को पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को आवंटित किया गया था और अब इस संपत्ति का कोई अन्य उपयोग नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, इसका (नेमप्लेट) नोटिस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट है कि पूर्व मुख्यमंत्रीयों को जो सरकारी आवास आवंटित किये गये थे उन्हें वो खाली करना होगा।”
दूसरी तरफ, बसपा पदाधिकारी कह रहे हैं कि बंगले से कांशीराम जी की भावनात्मक यादें जुड़ी हैं। बंगले में काशीराम की एक मूर्ति भी है। वो वहीं रहते थे। इसे एक राजनीतिक चाल के रूप में भी देखा जा सकता है। मायावती कांशीराम के नाम का सहारा ले रही हैं ताकि सीएम योगी दलित आइकन कांशीराम के नाम के बंगले की ओर कोई कठिन रुख लेने से पहले विचार करें। संसदीय चुनाव भी पास आ रहे हैं। ऐसे में ये एक राजनीतिक रूप से प्रेरित चाल की तरह लगता है और मायावती कांशीराम की यादों को संरक्षित करने के नाम पर राजनीतिक खेल खेलने की कोशिश में हैं। हालांकि, मायावती अपने बंगले 9 माल एवेन्यू में स्थानांतरित होने जा रही है।
सभी पूर्व मुख्यमंत्रीजन को कोर्ट के आदेश का सम्मान करना चाहिए और सरकारी आवास पर से अपने कब्जे को हटाकर एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री के पास कोई विशिष्ट विशेषाधिकार नहीं है और वो सभी आम लोगों की तरह ही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम में हुए संशोधन को ख़ारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “निस्संदेह, में 1981 अधिनियम की धारा 4 (3) में संशोधन भूतपूर्व नेताओं को पूर्व पदों के आधार पर सरकारी सुविधाएं देना एक ऐसे वर्ग का निर्माण करने जैसा है जो सेवानिवृत्ति के बाद भी सार्वजनिक संपत्ति पर पूर्णतया भार होगा। प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक भूमि और सार्वजनिक वस्तु जैसे सरकारी बंगले/आधिकारिक निवास सार्वजनिक संपत्ति है, जो देश के लोगों से संबंधित हैं और ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री ताउम्र सरकारी आवास में नहीं रह सकता है।”