हताश कांग्रेस कर्नाटक में ले रही है सांप्रदायिक तरीके का सहारा

गुलाम नबी आजाद मुस्लिम

गुलाम नबी आजाद ने फिर कांग्रेस की नर्म इस्लामवादी विचारधारा का आह्वान किया है। इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलबर्ग दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार अल्लामा प्रभु पाटिल के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे थे। चुनाव प्रचार के दौरान सांप्रदायिक हितों और धार्मिक भावनाओं के आधार अपील की कोशिश करते हुए आजाद ने कहा, “बीजेपी को किसी भी कीमत पर सत्ता में नहीं आने देना चाहिए। मुस्लिम लोगों को अपना वोट कांग्रेस को ही देना चाहिए।” ये सांप्रदायिक सोच के साथ चुनाव लड़ने की स्पष्ट कोशिश है। खुले तौर पर ये ऐसा खतरा है जिसमें देश के धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देने और पूरे राजनीतिक माहौल को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है। गुलाम नबी आजाद यही नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, “यदि आप हिंदुओं की आलोचना करते हैं, तो बीजेपी सत्ता में आ जाएगी। हिंदुओं की आलोचना करने के बजाय, कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में अपना वोट डालें।” मुस्लिम को कांग्रेस के लोग और हिंदुओं को उनके प्रतिद्वंद्वियों के रूप में दिखाने की ये स्पष्ट कोशिश है। गुलाम नबी आजाद ने लगभग ये निर्देश दे दिया कि हिंदुओं को हराने के लिए मुसलमान कांग्रेस के लिए वोट डालें। इसके बाद वरिष्ठ नेता ने गुलबर्ग उत्तर के विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक कमर-उल-इस्लाम की पत्नी को सत्ता में लाने के लिए मतदाताओं को उनके योगदान के लिए आह्वान किया। गुलाम नबी आजाद ने अपना भाषण सांप्रदायिक टिप्पणी के साथ समाप्त किया। उन्होंने कहा कि इस्लाम के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कांग्रेस को वोट दें। ऐसा लगता है कि कांग्रेस मुस्लिम नेता का उपयोग हिंदुओं के खिलाफ जाकर मुस्लिम मतदाताओं लुभाने के लिए कर रही है।

गुलाम नबी आजाद द्वारा सांप्रदायिक भाषण न सिर्फ नैतिक और राजनीतिक स्तर पर गलत है बल्कि भारत में चुनाव से संबंधित कानून का उल्लंघन भी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में धर्म के नाम पर राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा वोट की मांग को अवैध करार दिया था। ये स्पष्ट है कि धर्म के नाम पर वोट मांगना अवैध है। सात जजों की संवैधानिक पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि चुनाव प्रचार के दौरान धर्म के आधार पर वोट की अपील करना कानून का उल्लंघन है। इससे ये स्पष्ट कर दिया गया था कि धर्म के नाम पर भारत में वोट मांगना अवैध है।  भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित आचरण संहिता द्वारा भी इसकी पुष्टि की जाती है कि जाति या सांप्रदायिक भावनाओं के आधार पर वोट के लिए अपील नहीं की जा सकती। हालांकि, ऐसा लगता है कि राज्य चुनाव आयोग इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। एक आदर्श दुनिया में, सांप्रदायिक भावनाओं को उकसाने और नफरत फैलाने के लिए गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस को इस तरह की अनुमति देने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना चाहिए। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कांग्रेस पर सांप्रदायिक कार्ड खेलने के लिए हमला बोला है और सवाल किया है कि आजाद कैसे वोट के लिए ये कह सकते हैं कि कांग्रेस के लिए वोट देना इस्लाम की असली सेवा है यहां तक की राज्य चुनाव आयोग भी मूक दर्शक बना हुआ है।

ये मुख्यधारा की मीडिया आउटलेट्स और लिबरल लॉबी पर भी सवाल उठाता है जो बीजेपी के जूनियर नेता या कोई और व्यक्ति जिसका बीजेपी से थोड़ा जुड़ाव हो अगर सांप्रदायिक टिप्पणी करते हैं तो तुरंत विरोध करते हुए नजर आते हैं। यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी किसी भी यूजर की पोस्ट को भी भारत के लिए हिंदू आंतकवाद घोषित करने के लिए तैयार रहते हैं। हालांकि, जब सबसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में से एक गुलाम नबी आजाद ने खुलेआम मुसलमानों से हिंदुओं को हराने के लिए कांग्रेस को वोट देने के लिए कहा तब देश का कोई भी धर्मनिरपेक्ष और लिबरल लॉबी नजर नहीं आये। पूरे भारत में धर्मनिरपेक्ष लॉबी के नाम पर सिर्फ हिंदू-विरोधी लॉबी ही सक्रिय रहती है। जबकि यही धर्मनिरपेक्ष लॉबी हमेशा हिंदुओं के खिलाफ किसी भी उत्तेजना पर चुप रहती है, यहां तक कि बीजेपी के जूनियर नेता के उत्तेजित बयान पर यही धर्मनिरपेक्ष की लॉबी चिल्लाती हुई नजर आती है।

ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस किसी विशेष समूह को लुभाने की कोशिश के लिए सामने आई है। पिछले साल यूपी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि बटला हाउस मुठभेड़ से सोनिया गांधी की आँखों में आंसू आ गये थे। ये बयान तब आया था जन दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में हुई मुठभेड़ की वास्तविकता की जांच की मांग को खारिज कर दिया था।

कर्नाटक में कांग्रेस अपने कार्यकाल में भी धार्मिक भावनाओं के तहत मुसलमानों से वोट अपील की कोशिश कर रही थी। इस घटनाक्रम का एक उदाहरण टीपू जयंती है जिसमें हिंदू से नफरत करने वाले शासक की जयंती उत्साह से मनाई जाती थी। हालांकि, गुलाम नबी आजाद का ये बयान इस्लामवाद का एक आक्रामक रूप है जो सीधे मुसलमानों को पूरी ताकत के साथ सामने आने और इस्लाम की सेवा करने के लिए कांग्रेस को वोट देने का आवाह्न कर रहा है। हिंदुओं को हराने के लिए मुसलमानों को इस्लामवाद का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित करने की कोशिश की जा रही है। आने वाले दिनों में भारत के लोकतंत्र के लिए ये एक गंभीर खतरा है।

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