जेएनयू के नीली आँखों वाले पोस्टर बॉय कन्हैया कुमार के लिए एक अच्छी खबर है। दिलचस्प बात ये है कि जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने जिस कम्युनिस्ट पार्टी को ‘कन्फ्यूज पार्टी ऑफ इंडिया’ कहा था अब उसी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राष्ट्रीय परिषद में शामिल हो गये हैं। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता सी दिवाकरन, सत्यम मोकेरी, सीएन चंद्रन और कमला सदानंदन जो अपनी बारी का इंतेजार कर रहे थे उन्हें राष्ट्रीय परिषद से हटा दिया गया है। सोमवार को केरल के कोल्लम में आयोजित सीपीआई (एम) की 23वीं सालाना बैठक में कन्हैया कुमार को राष्ट्रीय परिषद में शामिल करने का फैसला लिया गया।
उन्होंने पार्टी के महासचिव के रूप चुने जाने के बाद पार्टी का धन्यवाद किया, उन्होंने कहा, “मेरा कोई गॉडफादर नहीं है और मैं बिना किसी के सपोर्ट से परिषद में पद नहीं चाहते थे ।”
बंगाल और त्रिपुरा में पार्टी की साख छीन चुकी हैं, लुटियंस के प्रमाणित अभिजात वर्ग जिनका वास्तविकता कोई वास्ता नहीं है , पार्टी ने ऐसे वर्गों को शामिल कर भारतियों को बार बार धोखा दिया है। कांग्रेस के लिए ‘समाजवादी’ विकल्प के रूप में पार्टी ने जो भी किया है वो भी धूमिल हो चुका है।
हालांकि, कन्हैया के इस यू-टर्न से किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए क्योंकि वो गिरगिट की तरह रंग बदलने में देर नहीं लगाते, कांग्रेस के साथ सम्बन्ध बनाये रखने के लिए उन्होंने सीपीआई की आलोचना की और इसे ‘कन्फ्यूज पार्टी ऑफ इंडिया’ कहा था, उन्होंने कहा था,
“कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सीपीआई (एम) को खुद को मजबूत करना चाहिए और इस पार्टी को इस कदर तैयार करना चाहिए कि कांग्रेस को सीपीआई का सपोर्ट लेने के लिए आना पड़े।
…..सांप्रदायिकता के खिलाफ केरल मॉडल रक्षा संघ परिवार को हराने के लिए पूरे देश में फैलनी चाहिए। ”
फिर भी, जब सत्र समाप्त हो गया, तो वो राष्ट्रीय परिषद में शामिल हो गये। अंडा पहले आया या मुर्गी? इस सवाल से भी ज्यादा मुश्किल ये सवाल लग रहा है कि सबसे बड़ा झूठा कौन है : सीपीआई या कन्हैया कुमार?
हालांकि, ये भी गौर करने वाली बात है कि कन्हैया और सीपीआई (एम) दोनों में ज्यादा फर्क नहीं है। दोनों ही राज्य में दुश्मनों का बचाव करते आये हैं और गर्व से पाकिस्तान, चीन, नक्सलवाद और स्पष्ट “सामाजिक न्याय” जैसे मुद्दों पर अपने अलोकप्रिय और तर्कहीन विचारों को व्यक्त करते आये हैं।
ऐसा लगता है कि सीपीआई (एम) अब अपने मूल कार्य से हटकर उन छात्र नेताओं को शामिल कर रही है जो न सिर्फ असफल साबित हुए हैं बल्कि देश द्रोही गतिविधियों में भी शामिल रहे हैं। ऐसे नेताओं के लिए राजनीतिक होना भी फैशन है और ये राजनीति में नहीं बल्कि जेल की सलाखों के पीछे हैं। अब हमारे प्रिय छात्र नेता को नौकरी मिल गयी है अब कोई भी उसे बेरोजगार ओवर-एज छात्र नहीं कहेगा।