कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह विपक्ष के बीच मतभेद से हुआ प्रभावित

कुमारस्वामी विपक्ष

एचडी कुमारस्वामी ने कर्नाटक में चले नाटक के बाद बुधवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली। उनके शपथ समारोह में देश के बड़े बड़े राजनेताओं ने भाग लिया। उनके शपथ समारोह ने सभी तथाकथित विपक्ष की एकता को एक मंच प्रदान किया। इस पूरे समारोह में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष ने अपनी एकता का प्रदर्शन तो किया लेकिन इस दौरान एक नए राजनीतिक ड्रामे की शुरुआत हुई। दरअसल, इस शपथ समरोह से जुड़े दो वीडियो सामने आये हैं जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को परेशान और गुस्से में देखा जा सकता है। जाहिर है, वो कांग्रेस की सोनिया गांधी और राहुल गांधी से खुश नहीं हैं और वीडियो में इस दौरान उनकी असुविधा साफ़ नजर आ रही है। रिपब्लिक टीवी द्वारा साझा किए गए एक वीडियो में ममता बनर्जी एचडी कुमारस्वामी और उनके पिता व पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा से शिकायत करते हुए नजर आ रही हैं। उनके वार्तालाप की प्रतिलिपि इस तरह से है:

इसमें मेरी कोई गलती नहीं है… (स्पष्ट नहीं है)

सोनिया गांधी और राहुल गांधी.. (स्पष्ट नहीं है)

जो मुख्यमंत्री नहीं हैं… (स्पष्ट नहीं है)

आपको अनुमति नहीं है…. (स्पष्ट नहीं है

‘अपमान….’ (स्पष्ट नहीं है) ‘पार्टी….’

आखिरकार, ममता बनर्जी चिल्लाते हुए कहती हैं, “मैं जा रही हूँ। इस तरह जाने के लिए क्षमा करें।”

गांधी परिवार के खिलाफ ममता के रवैये को देखते हुए कुमारस्वामी और देवगौड़ा दोनों पिता-पुत्र दोनों ममता के पास हाथ जोड़कर क्षमा मांगने की मुद्रा में खड़े हैं।

इसके बाद जब सभी विपक्ष के नेता मंच पर फोटो के लिए साथ आये तब भी ममत बनर्जी राहुल गांधी को नजरअंदाज करती हुई दिखाई दी। दोनों ने एक दूसरे से हाथ भी नहीं मिलाया। दोनों ही एक-दूसरे की उपस्थिति को अनदेखा कर रहे थे। कांग्रेस का समर्थन करने को लेकर जब उनसे सवाल किया गया तो वो इस पर स्पष्ट जवाब देने में अनिच्छुक नजर आयीं। जब एक से ज्यादा पीएम उम्मीदवार एकसाथ मंच साझा करेंगे तो ऐसा होना लाजमी है। वो कांग्रेस को छोड़कर क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर बीजेपी विरोधी गठबंधन बनाने में ज्यादा रूचि रखती हैं।

बुधवार को कर्नाटक में कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री पद के शपथ समरोह से तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भी नदारद थे क्योंकि वो गांधी परिवार के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते हैं। वो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ हैं और कांग्रेस के बिना बीजेपी विरोधी तीसरे मोर्चे के गठन के विचार के समर्थन में हैं। कांग्रेस तेलंगाना में मुख्य विपक्षी दल है और अगले साल तेलंगाना में चुनाव होने हैं ऐसे में केसीआर कांग्रेस के साथ हाथ नहीं मिलाना चाहेगी। दरअसल, केसीआर ने बीजेपी विरोधी और कांग्रेस विरोधी संघीय मोर्चे का प्रस्ताव दिया था। दो बड़े क्षेत्रीय नेता का कांग्रेस के साथ आने की अनिच्छा से विपक्ष की एकता को झटका लगा है। ओडिशा के मुख्यमंत्री व बीजू जनता दल (बीजेडी) प्रमुख नवीन पटनायक भी बीजेपी विरोधी/ मोदी विरोधी पक्ष के साथ खड़े होने से बच रहे हैं और यही वजह है कि वो कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में नजर नहीं आये। एक और क्षेत्रीय पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित थे लेकिन जब सभी विपक्ष की एक साथ फोटो ली जा रही थी तब वो नजर नहीं आये। ऐसे में इसके दो मतलब हो सकते हैं या तो केजरीवाल इस ‘संयुक्त विपक्षी’ में कुछ नेताओं से जुड़े रहना नहीं चाहते हैं या बाकी नेताओं ने केजरीवाल से दूरी बनाने का फैसला किया है। केजरीवाल का जुड़ाव कितने भी विवादों से क्यों न हो तब भी विपक्ष के नेताओं ने ही केजरीवाल को नजरअंदाज किया होगा क्योंकि केजरीवाल की आदत है वो हर मोदी विरोधी तत्वों को गले लगाते हैं चाहे वो कितना भी अवैध हो।

आम चुनाव से पहले विपक्षी एकता का ये विचार भारत में कोई नई बात नहीं है। इससे पहले विभिन्न क्षेत्रीय दल एक विशेष व्यक्ति और एक विशेष पार्टी का विरोध करने के लिए साथ आ चुके हैं और इस तरह के गठबंधन का आखिरी परिणाम क्या हुआ किसी से छुपा नहीं है। 90 के दशक के दौरान, गठबंधन सरकारों की वजह से देश काफी सहन करना पड़ा था। विपक्षी एकता के पतन का सबसे हालिया उदाहरण बिहार में देखा गया था। दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पार्टियां किसी विशेष व्यक्ति या पार्टी के खिलाफ जब साथ आती हैं तब उनकी विचारधारा एकमत नहीं हो पाती है जिसके परिणामस्वरूप गठबंधन की सरकार जब बनती है वो अक्सर ही समय से पूर्व गिर जाती है।

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