सिद्धारमैया की चाल पड़ी उलटी, कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हुए लिंगायत

लिंगायत कर्नाटक कांग्रेस

धर्म और जाति के आधार पर लोगों को बांटने का कांग्रेस का इतिहास काफी लंबा रहा है। वे फूट डालों और राज करों की ब्रिटिश नीति में विश्वास रखते हैं। इस नीति की वजह से ही भारत जैसा बड़ा देश तीन भागों में विभाजित हो गया। जैसे ही ब्रिटिश का राज खत्म हुआ वैसे ही कांग्रेस भी अपने अंत के कगार पर है। आजकल कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए आग से खेल रही है। गुजरात चुनाव जीतने के लिए उन्होंने पटेल आंदोलन का कार्ड खेला था लेकिन उनका ये कार्ड असफल रहा। अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार हिंदुओं को बांटने के लिए लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देते हुए उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देने की कोशिश कर रहे हैं। लिंगायत परंपरागत रूप से बीजेपी के समर्थक रहे हैं, बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं और इसलिए सिद्धारमैया का ये कदम लिंगायत समुदाय को लुभाने के लिए मास्टरस्ट्रोक की तरह लग रहा था। हालांकि, बीजेपी ने इसे हिंदुओं को विभाजित करने का प्रयास बताते हुए सही तरीके से पेश किया था। केवल ‘मास्टरस्ट्रोक’ की वजह से ही कांग्रेस अब संसद में 44 सीटों पर आई है। कलबुर्गी जिले के सेदम विधानसभा क्षेत्र में बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने कहा, “लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने के नाम पर विभाजित करने की साजिश की जा रही है। पिछले चार सालों से सिद्धारमैया कहां थे ? बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए ये प्रयास किया जा रहा है।“

ऐसा लगता है कि ये कदम भी अब कांग्रेस के काम नहीं आ रहा है। कर्नाटक में कांग्रेस की राजनीतिक आत्महत्या शुरू हो गई है। अधिकतर लिंगायतों को ये बात समझ आ गयी है कि चुनाव से पहले कांग्रेस की ये राजनीतिक चाल है। 2013 में इसी कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग को खारिज कर दिया था।

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समुदाय के कई वर्गों ने इस कदम को ख़ारिज कर दिया है और गांव में ये सभी कांग्रेस के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं और कांग्रेस को वोट न देने की अपील कर रहे हैं। वीराशैवास कांग्रेस से काफी नाराज है और ऐसा लगता है कि वो कांग्रेस के खिलाफ वोट देंगे। सत्ताधारी पार्टी के नेता और विधायक इस प्रतिक्रिया से काफी चिंतित हैं। पार्टी के नेताओं ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया है कि, इस कदम के बाद से पार्टी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। उत्तर कर्नाटक के लिंगायत-प्रमुख इलाकों में काम कर रहे एक कांग्रेस पदाधिकारी ने ET से कहा, “हमारी पार्टी और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मतदाताओं को समझाने के लिए किसी भी तरह का विपरीत जवाब नहीं दिया है जिससे मतदाताओं को ये समझाने में कामयाबी होगी कि ये कदम उनके लिए अच्छा है। लिंगायत नेता और कुछ समूह के लोग जो हमारे पास अपनी मांगों के साथ आये थे वे बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं।“ उन्होंने आगे कहा, “अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो हमें कम से कम 50 सीटों पर समस्या का सामना करना पड़ सकता है।” सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेताओं ने राहुल गांधी को इस संबंध में एक पत्र भी लिखा है, जिसमें उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप करने और कैसे अल्पसंख्यक स्थिति लिंगायत समुदाय को लाभ पहुंचाएगी इसका प्रचार करने के लिए कहा है। राहुल गांधी जिन्होंने अपने आप को गुजरात में शिव भक्त बताया था वो चुपचाप उस समुदाय के विभाजन को देख रहे हैं जो शिव भक्ति के लिए जाने जाते हैं। शशि थरूर की तरह, राहुल गांधी को भी “अचानक क्यों मैं शिव भक्त बन गया” पर किताब लिखनी चाहिए।”

उत्तर और मध्य कर्नाटक के गांवों में कई लिंगायत मतदाताओं ने कांग्रेस के इस विभाजनकारी कदम पर अपना गुस्सा व्यक्त किया है। होलालकेरे असेंबली सेगमेंट में एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र बन्जगोंदानाहल्ली गांव के निवासी शंकराम्मा ने कहा, “सिद्धारमैया लिंगायत विरोधी हैं,  वो इस कदम के जरिये  समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे बच्चों को शुल्क, छात्रवृत्ति का लाभ नहीं मिलता है, लेकिन अन्य बच्चों को ये लाभ मिलता है।“ वहीं, गोजनुर गांव के दो लोगों ने कहा, “लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिया जा रहा है लेकिन वीराशैवास को नहीं जोकि अभी भी इसी समुदाय के अंतर्गत आते हैं, ये कुछ भी नहीं बल्कि सिद्धारमैया द्वारा फैलाया जा रहा जहर है।”

कांग्रेस के कार्यकर्ता गांव के लोगों के सवालों पर चुपी साधे हुए हैं और वो ये समझ नहीं पा रहे कि कैसे गांव वालों का सामना करें। जाहिर है, कांग्रेस की चाल उसपर ही भारी पड़ गयी है। ये एक सकारात्मक संकेत है कि लोगों को विभाजित करने के लिए उठाया गया कदम उनपर ही भारी पड़ गया है। ये नया  भारत है जहां लोगों को धर्म और जाति के आधार विभाजित करके मुर्ख नहीं बनाया जा सकता।

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