एमनेस्टी इंटरनेशनल: म्यांमार सेना की कार्रवाई से पहले रोहिंग्या द्वारा हिंदुओं का सामूहिक कत्लेआम

रोहिंग्या हिंदू

भारत में रोहिंग्याओं को पुनर्स्थापित करने की संभावनाओं के लिए बहस तेज हो गयी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुलकर सामने आयीं थीं कि रोहिंग्याओं को पश्चिम बंगाल में स्थापित किया जाए जबकि जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने विंटर कैपिटल जम्मू में रोहिंग्यों के रहने का समर्थन किया। भारत में रोहिंग्या के योजनाबद्ध पुनर्वास के खिलाफ कई कारणों का हवाला दिया गया है। रोहिंग्यों का भारत की आबादी के साथ सांस्कृतिक मतभेद है वहीं उनके भारत में आने से उस क्षेत्र की डेमोग्राफी में बदलाव की संभावना को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है, साथ ही उनके मजबूत चरमपंथी इस्लामी पहचान के खिलाफ सभी लोगों ने पुनर्वास के प्रस्ताव का विरोध किया है। ‘लिबरल’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ मीडिया ने रोहिंग्या की स्थिति को खूब दिखाया और इस मामले में केंद्र सरकार के ठंडे रवैये की खूब आलोचना भी की लेकिन अब एक और निराशा का कारण उभर कर सामने आया है। एक रिपोर्ट के अनुसार रोहिंग्या आतंकवाद 25 अगस्त, 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत के एक गांव में रहने वाले हिंदुओं के कत्लेआम के दोषी हैं।

एमनेस्टी रिपोर्ट ने अनुसार, अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) जोकि रोहिंग्या प्रतिरोध के केन्द्र की मुख्य शक्ति और ताक़त के रूप में जाना जाता है, इस संगठन ने रखाइन राज्य के उत्तरी हिस्से में करीब 99 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था। जिन हिंदुओं की सामूहिक हत्या की गयी उनमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे शामिल थे। दरअसल, ये उस समय की बात है जब म्यांमार सेना ने एआरएसए के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी जिससे रखाइन प्रांत के लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश की तरफ पलायन करना पड़ा था। म्यांमार के इस कदम की पूरे विश्व में आलोचना की गयी थी। यहां तक कि भारतीय सेना ने म्यांमार के इस कृत्य की निंदा की थी लेकिन अपने पश्चिम और इस्लामिक भाईयों की तरह वो पड़ोसी देश म्यांमार में रोहिंग्या द्वारा किये गये अत्याचार का आकलन करने में असफल रहे। रखाईन प्रांत में रोहिंग्यों द्वारा बौद्ध और हिंदुओं के नरसंहार को अक्सर लिबरल दुनिया और भारतीय मीडिया नजरअंदाज कर देते हैं। यहां तक कि इस मामले में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और म्यांमार की नेता आंग सान सू ची की चुपी पर भी आलोचना की गयी थी।

रोहिंग्या द्वारा म्यांमार में किये गये अत्याचार के कारण ही म्यांमार सेना उनकी गतिविधियों पर कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई थी लेकिन कभी भी रोहिंग्यों की क्रूरता पर किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया। एमनेस्टी इंटरनेशनल में प्रकाशित रिपोर्ट ने ‘पीड़ित’ रोहिंग्या आबादी के पीछे छुपे आतंक के चेहरे का खुलासा किया है। गौर किया जाना चाहिए कि जो रिपोर्ट एमनेस्टी में प्रकाशित की गयी है वो सिर्फ 2017 के अगस्त माह से जुड़ा है। एआरएसए और रोहिंग्या के अन्य गुटों पर उनके प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की योजनाबद्ध हत्याओं के कई आरोप लगाए गए हैं। सीरिया में आईएसआईएस द्वारा महिलाओं पर भयावह अत्याचार के समान ही रोहिंग्यों ने यहां महिलाओं के साथ क्रूरता दिखाई। कुछ हिंदू महिलाएं और बच्चे जो रूपांतरण के लिए राजी हुए थे और नरसंहार से बचने के लिए एआरएसए सेनानियों से शादी करने का विकल्प चुना था, उन्होंने रोहिंग्यों द्वारा किये गये अत्याचार की कहानी को बयां किया है। वहीं, पुरुषों और किशोर बच्चों को मार दिया गया था क्योंकि वो एक अलग धर्म से संबंधित थे और एआरएसए के मुताबिक ऐसे लोगों को रोहिंग्या की भूमि पर रहने का कोई अधिकार नहीं था। हिंदू महिलाओं को ‘इस्लाम’ धर्म स्वीकार करने और उन्हें उनके पति और बच्चों के हत्यारों के साथ शादी करने के लिए मजबूर किया गया था।

उस नरसंहार से बचने वाले कुछ हिंदू लोग यही कहानी बार बार बयां कर रहे हैं,जिसने भी उनकी दर्द भरी कहानी सुनी उनकी रूह कांप गयी। रोहिंग्या आबादी पर लगाए गए अतिवाद और नरसंहार के आरोपों को तथ्यों और समर्थन के साथ पेश किया जा रहा है। ये इस्लामिक रोहिंग्या आतंकवादियों के क्रूरता से बचने वाले लोगों की एक सच्ची  कहानी है। यदि हमें समझना है कि आखिर क्यों म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या के खिलाफ कार्रवाई की जिसने उन्हें पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था उसके लिए हमें रोहिंग्या के अत्याचार के चुंगल से बचे हिंदुओं की दर्द भरी कहानी पर जरुर ध्यान देना चाहिए। भारत और भारतीयों को देश में रोहिंग्या के पुनर्वास से संभावित खतरे से जरुर अवगत होना चाहिए । रोहिंग्या मुद्दे पर अपना रुख तय करने से पहले केंद्रीय और राज्य सरकारों को इस रिपोर्ट को ध्यान में रखना चाहिए। हिंदू और बौद्धों के हत्यारों को किसी भी कीमत पर भारतीय जमीन पर बसने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। देश पहले ही आतंकवाद, कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ रहा है और ऐसे में भारत कट्टरपंथी इस्लामी चरमपंथियों का एक और आयात बर्दाश्त नहीं कर सकता है जो  भविष्य में नागरिकों के साथ साथ राज्य के लिए गंभीर समस्या को उत्पन्न कर सकते हैं।

Exit mobile version