मोदी सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ अध्यादेश लाने को लेकर अपना रुख किया साफ

तीन तलाक अध्यादेश

बीजेपी सरकार ने एक साहसिक कदम उठाते हुए तीन  तलाक से मुस्लिम महिलाओं को आजादी दिलाने के लिए अपना रूख साफ कर दिया है। बीजेपी सरकार ने तीन तलाक पर अध्यादेश लाने का मन बना लिया है। रिपब्लिक टीवी के अनुसार, दो मंत्रियों ने इसकी पुष्टि की कि  बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस मामले पर विचार होना था, लेकिन किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाया, अब  मोदी सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ संसद के मानसून सत्र में अध्यादेश जारी  करने की घोषणा की है।

मोदी सरकार ने ये फैसला तब लिया है जब विपक्ष ने ट्रिपल तलाक विधेयक को राज्यसभा में पारित होने से रोक दिया गया था और इस विधेयक में संशोधन की मांग की गयी थी। विपक्ष ने इस विधेयक को पारित होने से रोकने की कोशिश में कई तरह के बेतुके कारण सामने रखे थे, विपक्ष का कहना था कि अगर पति को तीन तलाक के तहत सजा होगी तो जेल के बाहर उसकी पत्नी को गुजाराभत्ता कौन देगा। दरअसल, विपक्ष इस विधान को बाधित कर मुस्लिम कट्टरपंथी तत्वों को खुश करने की कोशिश कर रही है। सिर्फ विपक्ष ही नहीं बल्कि लिबरल भी ट्रिपल तलाक पर वकालत कर इसे मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ दुरूपयोग करना चाहते हैं।

12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार मामलों में फांसी की सजा के प्रावधान को लेकर अध्यादेश लाने के बाद मोदी सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ अध्यादेश लाने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अध्यादेश के तहत ये साफ़ कर दिया है कि 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार करने के लिए दोषी को फांसी की सजा दी जाएगी। बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी।

तीन तलाक विधेयक या मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2017 में दोषी को तुरंत सजा देने का प्रवधान है। यदि इस नियम का पालन नहीं किया गया तो तीन तलाक और तलाक-ए-बिद्द्त विधेयक के अंतर्गत ये अपराध होगा। विधेयक के सेक्शन-3 के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से या बोलकर या किसी भी तरीके से एकबार में तीन तलाक देता है तो वो मान्य नहीं होगा साथ ही ये कानून के तहत अवैध होगा। विधेयक के सेक्शन-4 के मुताबिक, ” सेक्शन 3 में जैसा कहा गया है यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देता है तो उसके लिए सजा का प्रवधान है, यहां तक कि पति को तीन साल के कारावास की सजा भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त, धारा 7 में कहा गया है, ” दंडनीय अपराध संहिता (आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973)  में इस अधिनियम के तहत कोई भी दंडनीय अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होगा।” लोकसभा में आरक्षण की मांग के साथ कांग्रेस सहित कई पार्टियों ने विधेयक का समर्थन किया था जिसके बाद इस विधेयक को पारित कर दिया गया था प्रमुखों।

बाद में विपक्ष ने इस विधेयक को राज्यसभा में पारित होने से रोक दिया जिस वजह से ये विधेयक संसद में अटका हुआ है। 4 जनवरी को सयुंक्त विपक्ष ने इस विधेयक को पारित होने से रोक दिया और इसे एक चुनिंदा गृह समिति के समक्ष पेश करने की मांग की। सरकार ने विपक्ष की इस मांग को ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि इससे विधेयक को पारित करने में और देरी होगी।

7 फरवरी को पीएम मोदी ने ऊपरी सदन में बाधा डालने और तीन तलाक विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए विपक्ष की आलोचना की थी। पीएम मोदी ने कहा था, “आप ओबीसी आयोग के लिए विधेयक को क्यों रोक रहे हैं? आप तीन तलाक विधेयक को पारित होने से क्यों रोक रहे हैं? क्या आप ओबीसी की आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील नहीं हैं? यदि आप तीन तलाक विधेयक में परिवर्तन लाने के लिए दृढ़ हैं तो आपको अपने कई वर्षों की सत्ता के दौरान ही इस मामले में कोई ठोस कदम उठाने चाहिए थे। महिला सशक्तिकरण को अपनी राजनीति से ऊपर रखें।“

राज्यसभा में विधेयक को पारित होने से रोकने की कोशिश करने वाली कांग्रेस ने महिलाओं के भले के लिए अपनी सोच को सामने रख दिया है। कांग्रेस प्रतिकूल, घृणास्पद और पुरानी महिला विरोधी मुद्दे पर राजनीतिक खेल खेल रही है।

विपक्ष अपने स्वार्थ के लिए हर पैंतरे अपना रहा है। हालांकि, पीएम मोदी बिल को पारित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ये अध्यादेश देश की लाखों मुस्लिम महिलाओं को राहत देगा और उनके हितों की रक्षा करेगा। ये कदम वास्तविक अर्थ में, महिला सशक्तिकरण की ओर एक अनुकरणीय कदम है।

Exit mobile version