अकाल तख्त ने गुरुद्वारों से कहा लाउडस्पीकरों की आवाज करें कम

अकाल तख्त लाउडस्पीकर

सिखों की श्रेष्ठ धार्मिक संस्था अकाल तख्त ने साहसिक और सराहनीय कदम उठाया है। अकाल तख्त ने सभी गुरुद्वारों को निर्देश दिया है कि वो अपने लाउडस्पीकर की आवाज कम रखें जिससे आसपास के लोगों को परेशानी न हो। अकाल तख्त ने कहा है कि दैनिक कथा (प्रवचन) और कीर्तन के दौरान लाउडस्पीकर की आवाज उच्च स्तर पर नहीं होनी चाहिए। अकाल तख्त ने ये भी स्पष्ट किया कि जो लोग दिए गये निर्देशों का पालन नहीं करेंगे उन लोगों को पवित्र ग्रंथ की प्रतियां नहीं दी जाएंगी और उन्हें धार्मिक दंड का भी सामना करना पड़ेगा। अकाल तख्त के इस कदम से अन्य धार्मिक संस्थानों को भी सीख लेनी चाहिए और उन्हें भी अपने धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन से प्रार्थना के दौरान लाउडस्पीकर की आवाज स्तर को कम रखने के लिए कहना चाहिए। ये न सिर्फ ध्वनि प्रदूषण को कम करेगा बल्कि देश के नागरिकों के दिमाग को शांत और सुरक्षित रखेगा। बिना लाउडस्पीकर के भजन कीर्तन और प्रार्थना करना ज्यादा उचित है क्योंकि लाउडस्पीकर सिर्फ शोर करता है। प्रार्थना को शांत वातावरण में किया जाता है, मूल रूप से ये ध्यान का एक प्रकार है और लाउडस्पीकर की आवाज ध्यान और एकाग्रता को प्रभावित करती है। इस तरह शोरगुल में भगवान का ध्यान करना संभव नहीं है।

ध्वनि प्रदूषण के अलावा कई ऐसे मामले भी देखें गये हैं जहां धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की वजह सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिला है। धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर का इस्तेमाल राजनीतिक दलों को तुष्टिकरण की राजनीति करने का मौका देता है। कुछ धार्मिक समूह दिन में कई बार अपनी धार्मिक श्रेष्ठता दिखाने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग करते हैं। ये सिर्फ एक धार्मिकता को थोपने के अलावा कुछ भी नहीं है। ऐसा करने से वो कोई दिव्य और आध्यात्मिक संदेश नहीं देते हैं लेकिन ये जरुर दर्शाते हैं कि उनके देव सर्वोच्च हैं। अकाल तख्त ने एक बढ़िया और उदाहरण स्थापित किया है और अन्य धर्मों को भी इसका पालन करना चाहिए। उन्होंने आसपास के लोगों की परेशानी को देखते हुए अपने अच्छे इरादों को दर्शाया है।

गायक सोनू निगम के मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अजान किये जाने पर जो  ट्वीट किया था उसके बाद हर तरफ लोगों में एक नई बहस छिड़ गई थी। । भारत में चर्च ऑफ गॉड बनाम के.के.आर मेजेस्टिक कॉलोनी वेल्फेयर एसोसिएशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “निर्विवाद रूप से कोई भी धर्म ये नहीं कहता कि आप प्रार्थना करके आसपास के लोगों को परेशान करें और न ही उच्च ध्वनि वाले उपकरण का इस्तेमाल करने के लिए कहता है। धर्म के नाम पर एक सभ्य सामाज में ऐसी गतिविधियां करना जिससे बुजुर्ग, बच्चे और छात्र की तड़के सुबह की नींद खराब हो या दिन के दौरान या अन्य गतिविधियों से अन्य लोगों को परेशान करने अनुमति नहीं दी जा सकती है।“ डीवाई चंद्रचूड़ ने प्राइवेसी पर अपने फैसले में कहा, “एक घर उसके लिए महल जैसा होता है। यदि लाउडस्पीकर से किसी घर में रहने वाले लोगों को परेशानी होती है तो ये उसके मौलिक अधिकारों का हनन है ऐसे में यदि आप किसी के अधिकारों में हस्तक्षेप कर रहे हैं तो मौलिक अधिकारों के क्या मायने रह जाते हैं? ये तो सिर्फ कागजी पन्नो तक ही सीमित रह जायेगा। इसीलिए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और बचाव करने के लिए उसे अकेला छोड़ दें क्योंकि मौलिक अधिकारों में मानसिक और शारीरिक शांति निहित है जो लाउडस्पीकर बजकर उसमें हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देता है।“

लाउडस्पीकर से लोगों को परेशानी होती है और ये अवैध है। योगी आदित्यनाथ से पहले किसी भी सरकार ने धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर बजाने के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी। सिर्फ योगी आदित्यनाथ ने इस मामले पर कार्रवाई करने का साहस दिखाया और धार्मिक स्थलों को लाउडस्पीकर न बजाने के लिए मजबूर किया। अकाल तख्त द्वारा उठाया गया ये कदम सराहनीय है और अन्य धर्मों को इसका पालन करना चाहिए।

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