बीजेपी गुजरात में पूरे जोश के साथ वापस आ गयी है। गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम अंतर से जीत मिली थी लेकिन बीजेपी ने एक बार फिर से यहां वापसी कर ली है। गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी 50 प्रतिशत वोट शेयर ही बचा पायी थी लेकिन ये पिछले चुनावों की तुलना में काफी कम था। हालांकि, बीते कुछ महीनों में बीजेपी ने राज्य में कड़ी मेहनत की जिससे वो राज्य में अपनी पकड़ को मजबूत कर सके और उन्हें इस दिशा में बड़ी सफलता मिली है। 2018 में गुजरात नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने 75 नगर पालिकाओं में से 47 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज की है। इससे स्पष्ट है कि शहरी क्षेत्र में बीजेपी पहली पसंद है।
कांग्रेस को एक और बड़ा झटका तब लगा जब हाल ही में संपन्न हुए तालुका और पंचायत चुनावों में बीजेपी ने पांच जिला पंचायत सीटों पर कांग्रेस को धूल चटा दी। बीजेपी 23 जिला पंचायतों में से 5 जिला पंचायत पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है जिसपर 2015 में सबसे पुरानी पार्टी ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी से 10 तालुका पंचायतों पर नियंत्रण को भी छीन लिया है। चुनाव से पहले कांग्रेस के पास 31 जिला पंचायतों में से 23 थीं लेकिन अब कांग्रेस के पास सिर्फ 18 जबकि बीजेपी के पास 13 जिला पंचायतें हैं। ऐसा लगता है कि बीजेपी ने अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर पर काम किया है वहीं कांग्रेस अपनी पुरानी नीति के साथ जुड़ी हुई है। 2015 में तालुका में कांग्रेस द्वारा जीती गयीं 129 सीटें अब घटकर 107 हो गयी हैं। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने आंकड़ों में पहले से सुधार किया है। बीजेपी के पास पहले तालुका की 85 पंचायत सीटों का नियंत्रण था जोकि अब बढ़कर 102 हो गया है।
तालुका और पंचायत चुनाव में हार के बाद आईएनसी ने वही किया जिसमें वो सबसे बेहतर हैं, अपनी हार का ठीकरा दूसरों पर मढ़ दिया। उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया कि बीजेपी ने चुनावों में पैसे और शक्ति का इस्तेमाल किया है और कांग्रेस ने अपने 32 सदस्यों को भी निलंबित कर दिया जो बीजेपी में शामिल हुए थे। आईएनसी ने दावा किया कि बीजेपी ने उनके जिला पंचायत सदस्यों को अपना पक्ष बदलने के लिए 25 लाख से 2 करोड़ रुपये बांटे हैं। गुजरात कांग्रेस प्रमुख अमित चावड़ा ने कहा, “बीजेपी ने तालुका और जिलों में सत्ता हासिल करने के लिए हमारे सदस्यों 25 लाख रुपये से लेकर 2 करोड़ रुपये दिए।” उन्होंने ये भी कहा, “हमने पहले ही अपने अहमदाबाद जिले से 6, दहाड़ से 9, पटल से 8 और महिसागर, भावनगर और वडोदरा से तीन तीन सदस्यों को निलंबित किया है। हालांकि, वडोदरा में कोई बदलाव नहीं आया है। सभी 32 सदस्यों को भी दल बदल विरोधी कानून के तहत कानूनी मामलों का सामना करना पड़ेगा।“ गुजरात प्रदेश अध्यक्ष जीतू वघानी ने कांग्रेस द्वारा लगाये गये बेतुके आरोपों का जवाब देते हुए कहा, “यदि बीजेपी ने सत्ता पाने के लिए अन्य साधनों का उपयोग किया होता तो हम सभी जिलों और तालुका पंचायतों में जीते होते। कांग्रेस अपनी नाकामी के लिए हमें दोषी ठहरा रही है।” कुछ हद तक वो सही भी हैं कांग्रेस अपने सदस्यों पर भरोसा नहीं करती है और यहां तक कि उन्होंने जिला पंचायतों के चुनाव में भी गंदी राजनीति का सहारा लिया है।
अपनी हार का आत्मनिरीक्षण करने की बजाय कांग्रेस फिर से दोष मढ़ने के खेल में शामिल हो गयी है। विधानसभा चुनावों में उनके अच्छे प्रदर्शन का असर अब फीका पड़ चुका है। ये चुनाव 2019 के आम चुनावों का मार्ग तैयार करेगा। बीजेपी इस दिशा में बेहतर ढंग से कार्य कर रही है जबकि कांग्रेस पार्टी दल बदल और आंतरिक मतभेदों से पीड़ित है। कांग्रेस की राज्य इकाई की स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसा लगता है कि 2019 के चुनावों के लिए कांग्रेस के हालात अच्छे नहीं हैं।