बीजेपी को जयनगर में मिली हार से सीख लेनी चाहिए

बीजेपी जयनगर

कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को हराकर जयनगर विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की है। कांग्रेस उम्मीदवार सौम्य रेड्डी ने बीजेपी के बी.एन प्रह्लाद को 2,889 वोटों के अंतर से हरा दिया है। कांग्रेस उम्मीदवार सौम्या को कुल 54,457 वोट जबकि बीजेपी उम्मीदवार को 50,270 वोट मिले। इस सीट पर 11 जून को मतदान हुए थे और कुल 55 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस सीट पर वोटिंग 12 मई को होनी थी लेकिन चार मई को बीजेपी उम्मीदवार बी.एन विजय कुमार के निधन के बाद चुनाव को कुछ समय के लिए टाल दिया गया था। बीजेपी के बी.एन विजय कुमार ने 2008  और 2013 में बड़े अंतर से इस सीट पर जीत दर्ज की थी। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जीत के बाद बड़े अभिमान में कहा कि, यदि मई में जयनगर में चुनाव होते तब भी कांग्रेस उम्मीदवार आसानी से सीट जीत जाते।” सिद्धारमैया के लिए 2,889 वोटों के छोटा सा अंतर बहुत आसान था।

जयनगर केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार के संसदीय क्षेत्र में पड़ता है और इसे भारतीय जनता पार्टी के एक अजेय गढ़ के रूप में जाना जाता है। अनंत कुमार 1996 से बेंगलुरू दक्षिण सीट जीतते आ रहे हैं। नतीजों के बाद अनंत कुमार ने नम्रतापूर्वक जनता के जनादेश को स्वीकार किया। उन्होंने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की जीत के पीछे वोटों के कम अंतर पर भी जोर डाला और कहा कि बीजेपी ने 2013 में हुए पिछले चुनाव की तुलना में अपना वोट बढ़ाया है।

निर्वाचन क्षेत्र पर भारतीय जनता पार्टीकी हार के पीछे की वजहों में से एक है गुराप्पना पल्य वार्ड में कांग्रेस के पक्ष में मुसलमानों का एकाकीकरण होना। 7 वार्डों में से बीजेपी 4 वार्डों में आसानी से जीत गयी और कांग्रेस ने 3 वार्डों पर जीत दर्ज की। लेकिन मुस्लिम बहुमत वाला गुराप्पना पल्य वार्ड कांग्रेस के लिए हवा का रुख बदलने वाला साबित हुआ। गुराप्पना पल्य वार्ड में कांग्रेस पार्टी को 88.2% वोट मिला है।

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कई आंतरिक मतभेदों की वजहों से भी बीजेपी की हार हुई है। बी.एन. प्रह्लाद दिवंगत विजयकुमार के भाई थे। बीजेपी ने उन्हें सहानुभूति वोट हासिल करने के मकसद से उतारा था लेकिन नतीजे विपरीत साबित हुए। स्थानीय पार्टी कार्यकर्ता चुने गये उम्मीदवार से खुश नहीं थे। कुछ असंतुष्ट रियल एस्टेट व्यवसायियों ने अन्य पार्टी का रुख कर लिया। कुल वोटिंग 55 % रही जोकि बहुत ही खराब थी।  बीजेपी को इसपर अधिक जोर देने की जरूरत है क्योंकि बीजेपी के समर्थक मध्यम वर्गीय मतदाता मतदान करने के लिए मतदाता केंद्र पर नहीं पहुंचे थे।

जयनगर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद तीन चीजों के लिए बीजेपी को चिंतित होने की आवश्यकता है:

पहली, भारतीय जनता पार्टीके पारंपरिक गढ़ पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी की चिंता का कारण बननी चाहिए। बेंगलुरू में सदानंद गौड़ा और अनंत कुमार जैसे हाई प्रोफाइल कैबिनेट मंत्रियों के बावजूद बीजेपी को अच्छे नतीजे नहीं मिले हैं। दूसरी तरफ, अनंत कुमार हेगड़े और नलिन कुमार जैसे प्रोफाइल वाले मंत्रियों के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पूरे तटीय कर्नाटक से कांग्रेस का सफाया कर दिया था। भारतीय जनता पार्टी को उन चीजों का आत्मनिरीक्षण सही तरीके से करना चाहिए जहां नतीजें उम्मीदों के विपरीत रहे हैं।

दूसरा, विपक्षी पार्टी जातिवाद और अन्य समीकरणों के जरिये नतीजों को अपने पक्ष में करने में कामयाब हुई है। गठबंधन के समझौते के अनुसार जेडीएस ने सीट के लिए अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था। गठबंधन में दोनों पार्टियों के बीच की समझदारी के नतीजे सकारात्मक रहे। जयनगर में कांग्रेस की जीत ने दक्षिण-बेंगलुरु लोकसभा सीट के दरवाजे भी खोल दिए हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में अन्य क्षेत्रीय दल भी इसी रणनीति का पालन करेंगे।

तीसरा और बीजेपी की हार का चिंताजनक पहलु है बेंगलुरु जैसे शहरी क्षेत्र में बीजेपी का खराब प्रदर्शन। जयनगर भी एक शहरी क्षेत्र है और ऐसा माना जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी को शहरी क्षेत्रों में हरा पाना लगभग नामुमकिन हैं। बेंगलुरु क्षेत्र में कांग्रेस के पास अब 28 में से 15 विधानसभा सीट है। बीजेपी के मतदान सर्वेक्षक और रणनीतिकारियों को अब शहरी मतदाता आधार के खोने पर चिंतित होना चाहिए।

2019 के आम चुनावों में कर्नाटक बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ये दक्षिण-भारतीय राजनीति में प्रवेश करने का द्वार है। पार्टी अपनी सभी शक्तियों का इस्तेमाल करने के बावजूद बहुमत पाने में असफल रही थी और अब बीजेपी की अपने गढ़ में हार हुई है। पार्टी को आत्मनिरीक्षण करने और पुनः नई रणनीति बनाने की जरूरत है क्योंकि अगर यही हाल रहा तो 2019 में आम चुनावों की राह आसान नहीं होगी।

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