कैराना उप-चुनाव 2018 में भाजपा के लिए उम्मीद की सुनहरी किरण

कैराना

यूपी की कैराना लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार के बाद संयुक्त विपक्ष के खिलाफ पार्टी कैसे लड़ेगी इस सवाल पर अभी भी संदेह है। 2014 में बीजेपी के दिवंगत सांसद हुकुम सिंह ने अकेले चुनाव लड़कर 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर हासिल किए थे जोकि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के संयुक्त वोटों से भी ज्यादा था, तब बीजेपी सांसद 2,36,988 वोटों के विशाल अंतर से जीते थे। 2017 में, यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान भी बीजेपी ने अपनी जीत बरकरार रखी और कैराना लोकसभा सीट के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर जीत दर्ज की। बीजेपी का वोट शेयर 38.2% था जबकि संयुक्त विपक्ष का वोट शेयर 19% के अंतर के साथ 57.2% था। हालांकि, हाल ही में संपन्न हुए कैराना उप-चुनावों में 19% का ये विशाल अंतर केवल 4.6% तक ही रह गया। संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार का वोट शेयर लगभग 51% है और बीजेपी उम्मीदवार का वोट शेयर लगभग 46% है। कुल पड़े 938742 मतों में से संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार को 481182 मत प्राप्त हुए और बीजेपी के उम्मीदवार को 436564 वोट मिले। 2014 में वोटर टर्नआउट 73.07 फीसदी था और 2018 में वोटर टर्नआउट सिर्फ 54 फीसदी है। कैराना उपचुनाव को सांप्रदायिक कोण देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गयी थी। मुस्लिम धार्मिक निकायों ने हस्तक्षेप कर बीजेपी की खूब आलोचना की। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना हसीब सिद्दीकी ने भी बीजेपी के लिए मतदान न करने की अपील की थी।

कैराना में मुस्लिम जनसंख्या 35 प्रतिशत है लेकिन वो बड़ी संख्या में उभर कर आये जिससे बीजेपी के खिलाफ उनका कुल शेयर 40 फीसदी रहा। 60 फीसदी मतदाता हिंदू थे। यही वजह है कि बीजेपी को 60 प्रतिशत हिंदू मतदाताओं से 46 फीसदी वोट मिले। कई हिंदुओं ने निर्दलीय हिंदू उम्मीदवारों या अन्य दलों के हिंदू उम्मीदवारों के लिए भी वोट किया। अन्य हिंदू उम्मीदवारों का कुल वोट 14940 है। इससे पता चलता है कि दलित,  जाटों, जाटवों, गुज्जर आदि जैसे कैराना के हिंदू समुदाय ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था, उनमें से बहुत कम ही होंगे जिन्होंने बीजेपी से खुद को अलग किया। ये निश्चित रूप से स्व घोषित चुनाव विशेषज्ञों के लिए बुरी खबर है जो न्यूज़रूम में ख़ुशी से नाच रहे हैं और न्यूज़पेपर के कॉलम में ख़ुशी से बीजेपी के खिलाफ लिख रहे हैं कि हिंदू बीजेपी से नाराज हैं और इसीलिए बीजेपी के खिलाफ वोट किया है। जबकि वास्तविकता तथाकथित विशेषज्ञों के विपरीत है। वास्तव में इससे संयुक्त विपक्षी को चिंता के संकेत मिलने चाहिए कि वो लाख कोशिशों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी से हिंदू मतदाताओं को विचलित नहीं कर पाए। असल में भारतीय जनता पार्टी के साथ हिंदु अभी भी दृढ़ता के साथ खड़े हैं और 2019 के आम चुनावों में भी इस तस्वीर में किसी बदलाव की संभावना नहीं है, जहां वोटर टर्नआउट ज्यादा होगा और नतीजे अलग हो सकतें हैं।

इससे ये स्पष्ट होता है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने वोट शेयर बढाए हैं और संयुक्त विपक्ष का संचयी वोट शेयर काफी हद तक कम हुआ है। वोट शेयर में अंतर कम हो रहा है और वो भी उस चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों के बीच टर्नआउट कम था और विपक्षी समर्थकों के बीच ज्यादा हुआ करता था। कैराना उप-चुनावों से ये भी संकेत मिलता है कि बहुसंख्यक समुदाय के दो तिहाई से अधिक भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करते हैं। ये बीजेपी के लिए अच्छे संकेत हैं, जबकि संयुक्त विपक्ष अभी भी अपने समर्थकों को वोट के लिए उनके घरों से उन्हें बाहर निकाल पाने में असमर्थ रहा है।

Exit mobile version