2019 की तैयारी हमारे दिल की धडकनें बढ़ाने के लिए तैयार है। हालांकि, पीएम मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है, उनकी पार्टी कई राज्यों में सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है। गौरतलब है कि मुख्य रूप से उत्तर और पश्चिम राज्य थे जिसने बीजेपी को 2014 के चुनावों में 272 अंकों के साथ सत्ता की बागडोर थमाई थी। दक्षिण और पूर्व में इसके आंकड़े निराशाजनक थे। असम को छोड़कर जहां पार्टी ने 14 में से 7 सीटें जीती थीं, पार्टी का प्रदर्शन पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अच्छा नहीं था, पश्चिम बंगाल में पार्टी ने 42 में 2 सीटें, ओडिशा में 21 में से 1 सीटें ही जीती थीं। इसी तरह दक्षिण में, कर्नाटक जहां पार्टी ने 28 में से 17 सीटें जीतीं थी उसे छोड़कर बीजेपी अन्य राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर पाई थी। हालांकि, हवा का रुख 2014 के बाद से बदला है। मिजोरम को छोड़कर आज बीजेपी और उसके सहयोगी अन्य उत्तर-पूर्व राज्य में सत्ता में है। हाल ही में लेफ्ट शासित राज्य त्रिपुरा में पार्टी अपने दमपर सत्ता में आयी है। कर्नाटक में हालांकि बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर थी लेकिन उसके आंकड़ों में काफी सुधार देखा गया। वहीं दूसरी तरफ, पार्टी की लोकप्रियता उत्तर और पश्चिम में कम हुई है। उत्तर प्रदेश के महतवपूर्ण उपचुनाव में पार्टी की हार हुई। पार्टी का प्रदर्शन गुजरात विधानसभा चुनाव में उतना ज्यादा संतोषजनक नहीं था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जहां जल्द ही चुनाव होने वाले हैं और ये 2019 में बीजेपी की संभावनाओं का शंखनाद होगा। जबकि सभी राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन, खासकर महागबंधबंधन की वजह से बड़ी उत्सुकता से देखा जायेगा इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में अमित शाह और उनकी टीम के प्रदर्शन पर सभी की निगाहें होंगी।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की उम्मीद के पीछे कई कारण हैं। 2014 के बाद से बीजेपी ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस के सामने मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी है। हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनावों में कम्युनिस्ट और कांग्रेस दोनों पार्टियों को पीछे छोड़कर बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। पार्टी के वोट शेयर में भी उल्लेखनीय सुधार देखा गया। ऐसे में इसे 2019 के चुनावों के सीटों के रूप में देखा जा सकता है।
वो कारक जो पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं-
1. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन कम्युनिस्ट पार्टी से ज्यादा अलग नहीं रहा है। दीदी लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी हैं। ‘परिवर्तन’ के लिए उत्सुकता इस तथ्य से स्पष्ट है कि सभी जिलों में ग्राम पंचायत के लिए बीजेपी को चुना गया था। तृणमूल कांग्रेस द्वारा बीजेपी के खिलाफ नियमित तौर पर चलाए गये हिंसक अभियान के बावजूद था ये परिणाम सामने आये थे। खासकर पुरुलिया और झारग्राम जहां बीजेपी तृणमूल कांग्रेस के खिलाड़ कड़ी प्रतिद्वंदी बनकर उभरी।
2. देश के अन्य हिस्सों की तरह पश्चिम बंगाल में भी ममता के अल्पसंख्यक कल्याणार्थ उठाये गये कदम अब लगता है हिन्दुओं को यूएसएचवी (यूनाइटेड स्पेक्ट्रम ऑफ़ हिंदू वोटर्स) की ओर बढ़ावा दे रहे है। पश्चिम बंगाल की दीदी हिन्दुओं की भावनाओं पर चोट करती आयीं हैं और हिंदुओं के प्रति उनका नजरिया किसी से छुपा नहीं है। राम नवमी के अवसर पर हालिया समारोह राज्य में हिंदू एजेंडे के बढ़ते समर्थन को इंगित करता है।
3. नरेंद्र मोदी की विकासपुरुष के रूप में व्यक्तिगत प्रमाण-पत्र ने ममता की परेशानियों को बढ़ावा दिया है। पश्चिम बंगाल विकास और प्रगति के मार्ग पर लौटने के लिए उत्सुक है जो लगातार कम्युनिस्ट और तृणमूल द्वारा खंडित हुआ है। तृणमूल कार्यकर्ता भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत उन्नति पर ज्यादा केंद्रित रहे हैं और अब उनकी ये नीति किसी से छुपी नहीं है।
4. बीजेपी ने दिखा दिया है कि वो खुद के दम पर भी पूर में जीत सकती है। हाल ही में त्रिपुरा में हुई ऐतिहासिक जीत इस तथ्य को इंगित करती है कि राज्य में बंगाली मतदाताओं ने भगवा पार्टी को अपनी पसंदीदा पार्टी के रूप में चुना है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में इसका प्रभाव पड़ेगा ही।
कारक जो पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ हैं:
डेमोग्राफिक्स: पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा, संयुक्त मतदाताब्लॉक मुस्लिम हैं और ऐसे कोई संकेत नहीं मिलें हैं कि ये बीजेपी के पक्ष में वोट देंगे। जब तक हिन्दू बीजेपी को एक मुश्त वोट नहीं देते हैं तब तक बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल पर पकड़ बनाना मुश्किल है।
राजनीतिक हिंसा: तृणमूल विपक्ष का सामना करने के लिए राज्य में कम्युनिस्ट शासित राज्य केरल के तरीकों को अपना रही है। तृणमूल कांग्रेस द्वारा बीजेपी कार्यकर्ताओं को सार्वजनिक क्षेत्र में हत्या कर उन्हें लटका देने के मामले सामने आये थे और पंचायत चुनावों में तृणमूल के दबंगों ने हिंसा की सारी हदें पार कर दी थी। ये स्पष्ट करता है कि तृणमूल लोकतांत्रिक रूप से सत्ता को हारना स्वीकार नहीं करेगी।
स्थानीय नेतृत्व: जबकि पश्चिम बंगाल अमित शाह और नरेंद्र मोदी के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता बना हुआ है लेकिन तथ्य ये है कि बीजेपी राज्य में स्थानीय नेतृत्व बढ़ाने में असमर्थ रही है जिससे वो ममता बनर्जी की शक्ति को चुनौती दे सकती है। अमित शाह लगातार बंगाली मतदाताओं के लिए बाहरी चेहरा बने हुए हैं।
महागठबंधन: हालांकि, ऐसा लगता नहीं है कि तृणमूल और कम्युनिस्ट कभी एक दूसरे से हाथ मिलाएंगे लेकिन ये संभव भी है कि कांग्रेस अपनी चतुर नीति से मोदी विरोधी ताकत को तैयार करने के लिए महागठबंधन कर लें। कांग्रेस, तृणमूल और कम्युनिस्ट के बीच किसी भी प्रकार की चुनावी समझ, अंतर्निहित या स्पष्ट पश्चिम बंगाल में बीजेपी की जीत के विचार पर पानी फेर सकता है।
निष्कर्ष: राज्य में बीजेपी को तृणमूल के बेहतर विकल्प के रूप में उभरने के लिए अपनी राज्य इकाई को सशक्त बनाने की जरूरत होगी। मोदी मैजिक सबसे मजबूत तब होगा जब मजबूत स्थानीय इकाई होगी जो उनके संदेश को लोगों तक पहुंचा सके। पार्टी के मतदाताओं और कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास को बढाने के लिए तृणमूल कांग्रेस के गुंडों द्वारा की जा रही हिंसा का सामना करने की भी आवश्यकता है। अभी के लिए, ये कहना पर्याप्त होगा कि बीजेपी 42 में से 2 सीटों के अपने स्तर में सुधार कर राज्य मे 20 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है।