नोटबंदी का फैसला 8 नवंबर 2016 में लिया गया था। इस फैसले के अगले ही दिन प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर में काफी भीड़ होने की वजह से सरकार ने सहकारी बैंक को 10 नवंबर 2016 को एक नोटिस जारी कर प्रतिबंधित नोटों को स्वीकार करने की अनुमति दी थी। लेकिन जल्द ही सरकार ने ये महसूस किया कुछ लोग जमा काले धन को सफेद करने के लिए सहकारी बैंकों का दुरुपयोग कर रहे हैं खासकर महाराष्ट्र राज्य में ऐसा हो रहा है। इसीलिए इस फैसले के 5 दिन बाद यानी 14 नवंबर 2016 को सरकार की ओर से यह निर्देश दिया गया कि किसी भी सहकारी बैंक में नोट नहीं बदले जाएंगे लेकिन इन 5 दिनों तक सहकारी बैंकों में प्रतिबंधित नोट जमा करने की प्रक्रिया चलती रही।
आरटीआई का जवाब और कांग्रेस का बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर आरोप:
हाल ही में 7 मई, 2018 को एक आरटीआई के जवाब में ये सामने आया कि अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसीबी) में इन्हीं पांच दिनों में कुल 745.59 करोड़ मूल्य के प्रतिबंधित नोट जमा हुए थे। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने तुरंत हमला किया और बीजेपी पर डीसीसीबी द्वारा गैरकानूनी लेन-देन का आरोप लगाया। कांग्रेस ने प्रेस को दिए एक बयान में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उनके लोगों पर तथाकथित अवैध लेन-देन द्वारा फायदा उठाने का आरोप लगाया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अमित शाह बैंक के 24 निदेशकों में से एक हैं।
कौन हो सकता है सहकारी बैंक का निदेशक?
कोई भी कंपनी या बैंक किसी भी व्यक्ति को निदेशक मंडल में रख सकता है अगर उन्हें ऐसा लगता है कि वो बैंक के कार्यों में अच्छी तरह से सलाह दे सकते हैं। सलाह देने और बैठकों के अलावा निर्देशक कोई कार्यकारी कार्य नहीं करता है। देश में 370 जिला सहकारी बैंक हैं जिनका प्राथमिक कार्य कम ब्याज दरों पर किसानों को क्रेडिट प्रदान करना है। सहकारी बैंकों को एक राष्ट्रीय बैंक राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो भारत में एक शीर्ष विकास संस्थान है।
नाबार्ड का जवाब:
नाबार्ड ने विस्तार के साथ एक प्रेस रिलीज़ जारी कर मीडिया संस्थानों और कांग्रेस के पार्टी प्रोपेगेंडे को ध्वस्त कर दिया है। अपने प्रेस रिलीज़ में नाबार्ड ने कहा कि डीसीसीबी के कुल 16 लाख बैंक खातों में केवल 9.37 प्रतिशत लोगों ने ही बैंक से प्रतिबंधित नोटों को डिपाजिट/एक्सचेंज किया और कुल 98.66 प्रतिशत डिपाजिट/एक्सचेंज 2.5 लाख से कम था। अहमदाबाद डीसीसीबी में औसत जमा राशि 46,795 रुपये, गुजरात के 18 डीसीसीबी में प्रति जमाकर्ता के औसत से कम था।
स्त्रोत: नाबार्ड प्रेस रिलीज़
अहमदाबाद डीसीसीबी के ऑपरेशन का स्तर
नाबार्ड ने आगे बताया कि, 5 दिनों तक के लिए हुए डिपाजिट/एक्सचेंज प्रतिबंधित नोटों का कुल 746 करोड़ रुपये बैंक के कुल जमा राशि का 15 प्रतिशत है। इससे हमें उस पैमाने के बारे में पता चलता है जो अहमदाबाद डीसीसीबी को संचालित करता है। यहां महत्वपूर्ण बात ये है आमिर राज्यों का डीसीसीबी में नकदी डिपाजिट/एक्सचेंज राज्यों में सरकार होने के बावजूद गरीब राज्यों के डीसीसीबी बैंकों से ज्यादा है। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन शासन में महाराष्ट्र में 4000 करोड़ रूपये के आसपास डिपाजिट/एक्सचेंज हुआ , गुजरात का 3700 करोड़ रुपये का डिपाजिट किया गया जबकि कम्युनिस्ट शासित केरल गुजरात के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग आधे हिस्से के बावजूद केरल 2400 करोड़ रुपये का डिपाजिट किया गया।
ये अर्थव्यवस्था कहते है, नासमझों!
दूसरा अहम बिंदु ये है कि गुजरात और महाराष्ट्र राज्य के किसान क्रमशः कपास और गन्ना जैसे नकदी फसलों के कारण अपेक्षाकृत समृद्ध हैं। गुजरात और केरल में प्रति व्यक्ति आय बिहार से पांच गुना है और ये महाराष्ट्र में छह गुना है। इसलिए, यदि महाराष्ट्र और केरल के लोग बिहार से पांच से छह गुना अधिक समृद्ध हैं तो ये स्पष्ट है कि इन राज्यों में डीसीसीबी बिहार की तुलना में अधिक नकदी डिपाजिट/एक्सचेंज करेंगे।
क्या नियमों का पालन किया गया था ?
नाबार्ड ने अपने प्रेस रिलीज़ में कहा कि, “हमनें अहमदाबाद डीसीसीबी में जमाकर्ताओं का 100% वेरिफिकेशन किया” जो दिखाता है कि बैंक ने आरबीआई गाइडलाइन्स के मुताबिक केवाईसी का पालन किया था। नोटबंदी के दौरान बैंक ने नोट बदलने की प्रक्रिया का पालन किया। इसके अलावा, खातों का केवाईसी अनुपालन का सत्यापन भी किया गया था जिसमें अहमदाबाद डीसीसीबी समेत 10-14 नवंबर, 2016 की अवधि के दौरान प्रतिबंधित नोट खातों का सत्यापन हुआ था।
मीडिया ने अपने कदम पीछे खींचे:
नाबार्ड के प्रेस रिलीज़ के बाद न्यूज़18, टाइम्स नाउ, फर्स्टपोस्ट और द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अपने प्रकाशित लेख हटा दिए क्योंकि उन्होंने कांग्रेस द्वारा लगाये गये आरोपों में कोई सच्चाई नहीं पायी।
इस तरह की चीजें करने के पीछे का क्या उद्देश्य है?
सहकारी बैंक जो किसानों और छोटे पैमाने पर ग्रामीण उद्यमियों को उधार देने पर ध्यान केंद्रित करता है, इस बैंक ने देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। और जब उनकी बैंकिंग नैतिकता की बात आती है, तो वे सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों और यहां तक कि नामी निजी बैंकों की तुलना में काफी बेहतर हैं। सहकारी बैंकों ने सफलतापूर्वक एनपीए परेशानी का सामना किया। किसान बड़े पैमाने पर बीजों की खरीद, ट्रैक्टर, उर्वरकों आदि की खरीद जैसे नियमित कृषि गतिविधियों को पूरा करने के लिए सहकारी बैंकों पर निर्भर करते हैं। कांग्रेस पार्टी अमित शाह को बदनाम करने के लिए और अपने एजेंडे को साधने के लिए वास्तव में किसानों को चोट पहुंचा रही है और उनकी आजीविका को खतरे में डाल रही है। सहकारी बैंक किसानों के लिए लाइफलाइन की तरह है, कांग्रेस का ये रवैय्या ये निश्चित रूप से किसानों को रास नहीं आएगा। कांग्रेस पार्टी जो भी कर रही है उसर एक बार आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। झूठी अफवाहों को बढ़ावा देना निश्चित रूप से उनके पतन को और बढ़ावा देगा। ऐसे में अगर पार्टी किसानों के समर्थन को भी खो देती है तो पीएम मोदी और अमित शाह का कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना जल्द ही साकार हो जायेगा।