देश में शांति और सुरक्षा और समानता ऐसी चीजें हैं जिनके साथ कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए। कांग्रेस के 60 सालों के शासन में माओवादी बल अपने शहरी नक्सल भाइयों के समर्थन से ऐसा ही करते आया है। वामपंथी पार्टियों और उनके नेताओं से उन्हें राजनीतिक और वित्तीय सहायता मिलती है जो उन्हें देश में आपराधिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए बिना ज्यादा प्रतिबंध के ही सक्षम बनाता है। बीजेपी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ये माहौल बदल गया। माओवादियों और शहरी और जमीनी स्तर के नक्सलियों दोनों पर ही शिकंजा कसने का काम तेजी से शुरू हो गया। धीर-धीरे इस तरह की ताकतों में हताशा और भय बढ़ता गया और ये ऐसे साथियों की तलाश करने लगे जो भारत में इनकी गतिविधियों को जारी रखने में मदद कर सकें और इन्हें बचा सकें। माओवादी जो पहले ही बांग्लादेश, पाकिस्तान और अन्य विदेशी आतंकवादीयों के साथ अपने तार को तोड़ने के लिए दबाव का सामना कर रहे थे, अब लगता है उन्हें घर में ही नए सहयोगी मिल गए हैं।
दरअसल, टाइम्स नाउ के हाथ एक पत्र लगा है जो जनवरी माह के आरंभ में एक वरिष्ठ माओवादी द्वारा अपने साथियों को लिखा गया था। इस पत्र से जो सामने आया है वो चौंका देने वाला है। इस पत्र में कई ‘बुद्धिजीवियों’ और कई शहरी नक्सल के नाम शामिल हैं जो माओवादी नेटवर्क को समर्थन देते हैं। इस पत्र में जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला हिस्सा था वो माओवादियों के उल्लेख का वो हिस्सा जिसके मुताबिक कांग्रेस पार्टी जिग्नेश मेवानी के माध्यम से योजनाबद्ध तरीके से दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने में मदद प्रदान कर रही थी। जिग्नेश मेवानी गुजरात से विधान सभा के सदस्य हैं और अक्सर दलित आंदोलनों में शामिल रहे हैं। इस पत्र में उनका उल्लेख दर्शाता है कि कैसे महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में दलित विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुए थे। इसके जरिये कांग्रेस की योजना थी राज्य और देश में जिग्नेश मेवानी के मध्यम से अशांति पैदा करने की। ये जानना महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने गुजरात विधानसभा चुनावों में अपने निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवारों को मैदान में न उतारकर जिग्नेश मेवानी का समर्थन किया था।
टाइम्स नाउ को मिले पत्र में स्पष्ट रूप से ये उल्लेख किया गया है कि कांग्रेस पार्टी जिग्नेश मेवानी के माध्यम से पूरे भारत में योजनाबद्ध तरीके से दलित आंदोलन को वित्त पोषित किया। पत्र देश भर में रैलियों और विरोध प्रदर्शनों की व्यवस्था की ओर भी इशारा करता है। खासकर अप्रेल माह में बीजेपी के शासित राज्यों में हुए दलित विरोधों के लिए ये स्पष्टिकारण हो सकता है जिसमें व्यापक रूप से हिंसा और संपत्ति का नुकसान हुआ। माओवादी ताकतों ने समाज में व्यवधान और अशांति पैदा करके दलितों की भावनाओं का दुरुपयोग किया। पत्र के मुताबिक विधायक जिग्नेश मेवानी के माध्यम से कांग्रेस द्वारा इन माओवादियों को भारत विरोधी और सरकार विरोधी हिंसा को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक मदद मिलती थी। कांग्रेस का इस तरह से राजद्रोह कृत्य में शामिल होना और विधायक जिग्नेश मेवानी जिनपर पहले से ही एसडीपीआई और पीएफआई जैसी भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है, दोनों पर ही कठोर कार्रवाई की जाने की आवश्यकता है।
.@RShivshankar takes us through the letter which establishes that Maoists used Dalits as pawns and names Congress as a prime source of funds for anti-India activities #MaoistLetterNamesCong pic.twitter.com/bfrYjJtC9k
— TIMES NOW (@TimesNow) June 6, 2018
किसी भी लोकतांत्रिक देश में नक्सलियों और माओवादी आतंकवादियों के लिए कोई जगह नहीं है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को अकेला छोड़ दें। पत्र में साफ़ बताया गया है कि 2019 में होने वाले चुनावों से पहले विवाद पैदा करने के लिए माओवादियों ने आम जनता का दुरूपयोग किया। कांग्रेस ने अपने एजेंडे के लिए कैसे नक्सलियों को बढ़ावा दिया है ये पत्र उसी का प्रमाण है। विधायक जिग्नेश मेवानी कांग्रेस-माओवादी नक्सलियों के पूरे जाल का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा हैं लेकिन इस पूरे नेटवर्क में कई नाम सामने आने बाकि है जिनका खुलासा खुफिया एजेंसियों के जांच के बाद ही हो सकेगा।