मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह को अपने ही गृह राज्य में 6 जून को अनदेखा कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर में किसानों की सभा को संबोधित किया जो पिछले साल गोलीकांड में मारे गए भाइयों के सम्मान में इकट्ठा हुए थे। ये मंच राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के अभियान को जबरदस्त तरीके से शुरू करने के लिए तैयार किया गया था जोकि इसी वर्ष होने वाले हैं। रैली में राहुल गांधी ने अपने भारी भाषण में एक से एक बड़े वादे किये। उनके भाषण में कुछ गलत जानकारी और झूठे तथ्य भी शामिल थे और यही नहीं उन्होंने इस दौरान उन्होनें अपने राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह को अनदेखा कर दिया। राहुल गांधी ने अपने पूरे भाषण में कहीं भी दिग्विजय सिंह का जिक्र नहीं किया, गौरतलब हो कि दिग्विजय सिंह न सिर्फ मप्र कांग्रेस की धुरी रहे हैं बल्कि वो प्रदेश के मुख्यमंत्री और सूबे के राजा भी हैं। न सिर्फ राहुल गांधी बल्कि कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक बार भी मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह का जिक्र नहीं किया। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार कमेटी के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुना है और कमलनाथ को मध्यप्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है।
राज्य में उमा भारती के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार से हारने के बाद राहुल गांधी को तैयार करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने दिग्विजय सिंह को एक बहुत ही महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था। उन्होंने उत्कृष्टता के साथ इस कार्य को पूरा किया और इसका प्रभाव देखने को मिला क्योंकि राहुल गांधी राजनीतिक पृष्ठ में तमाशा करने वाले एक ‘विशेषज्ञ’ बन के रह गये हैं। उनकी इस उपलब्धि के बाद भी कांग्रेस में उनकी उपेक्षा हो रही थी और ये उपेक्षा बढ़ती गयी। सक्रिय राजनीति में 10 साल की सेवानिवृत्ति भी दिग्विजय सिंह के लिए उतना अच्छा नहीं था क्योंकि उनके पास फालतू की रणनीतियों में शामिल होने के लिए और भी समय था। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की कोशिश और भगवा आतंकवाद की झूठी कहानियों से हर कोई परेशान हो गया था।
दिग्विजय सिंह जिस पार्टी के महासचिव थे वही पार्टी उनकी राज्य चुनावों में की गयी गलतियों की वजह से एक के बाद एक चुनाव हार गयी। दिग्विजय सिंह की एक और गलती की वजह से गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी सरकार बनाने में सबसे बड़ी पार्टी असफल रही, इससे उन्हें और कांग्रेस को बड़ा धक्का लगा। कांग्रेस ने दिग्विजय से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव पद का प्रभारी भी उनसे वापस ले लिए और उन्हें मध्य प्रदेश समन्वय समिति के पद के साथ छोड़ दिया गया। कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह से ये सब छीन लिया और अगर दिग्विजय सिंह को देखें तो उनके हावभाव को देखकर लगता है कि ये कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
मंदसौर में सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं बल्कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने भाषण में दिग्विजय सिंह को शामिल न करके उन्हें अनदेखा किया। ऐसे में भविष्य में दिग्विजय सिंह कांग्रेस को गंभीर रूप से चोट पहुंचा सकते हैं, चाहे देश की राजनीति में दिग्विजय का कद काफी कम हो गया हो लेकिन प्रदेश की राजनीति में अभी भी उनके पास काफी शक्ति है ख़ास कर के अशोकनगर-राघोगढ़-ब्यावरा क्षेत्र में, और कुछ प्रभाव निमाड़ क्षेत्र में भी ज़रूर है। ऐसे में कांग्रेस को दिग्विजय से दुश्मनी महँगी पड़ सकती है। हालाकि ना तो दिग्विजय भाजपा में शामिल होंगे ना भाजपा ही उन्हें शामिल करने का जोखिम उठाएगी लेकिन दिग्विजय शंकर सिंह वाघेला की तरह कांग्रेस की मिट्टीपलीद ज़रूर कर सकते हैं।। ऐसे में कांग्रेस नेताओं को दिग्विजय सिंह को भड़काने से पहले एक बार गौर जरुर करना चाहिए। बीजेपी को दिग्विजय सिंह के रोष से फायदा हो सकता है यदि ये रोष उन कांग्रेस नेताओं के लिए बढ़ जाए जो अपने वरिष्ठ नेता की लगातार उपेक्षा कर रहे हैं।