जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है। महबूबा मुफ्ती की सरकार गिरने के बाद से ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि उमर अब्दुल्ला की नैशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे से हाथ मिलाकार कश्मीर में एक बार फिर से मिली-जुली सरकार बना सकते हैं। हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने अपने बयान में स्पष्ट कर दिया है कि वो किसी भी हालत में पीडीपी को अपना समर्थन नहीं देंगे। अब्दुल्ला के इस बयान ने सभी गठबंधन की अटकलों पर विराम लगा दिया। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने राज्य के 4 प्रमुख दलों से परामर्श के बाद राज्य में राज्यपाल शासन के लिए एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजी थी। ताजा रिपोर्टों के अनुसार, राष्ट्रपति ने राज्य में राज्यपाल शासन को लागू करने की मंजूरी दे दी है।
जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है। राज्य में छह महीने के लिए राज्यपाल शासन तो लागु कर दिया गया है पर अब यहां भी एक नया मोड़ देखने को मिला है क्योंकि राज्यपाल एनएन वोहरा का दूसरा कार्यकाल 27 जून को खत्म होने जा रहा है। हालांकि, केंद्र ने अमरनाथ यात्रा को ध्यान में रखते हुए उनके कार्यकाल को कुछ समय के लिए आगे बढ़ाने का फैसला किया है। बता दें कि, एनएन वोहरा के राज्यपाल रहते ये चौथा मौका है जब राज्य में केंद्र का शासन होगा लेकिन वोहरा के बाद जम्मू-कश्मीर का अगला राज्यपाल कौन होगा? ऐसे संवेदनशील राज्य की बागडोर किस नए चेहरे को दी जाएगी ? राजनीतिक क्षेत्र में कई अनुमानित नामों में से तीन ऐसे नाम सामने आये हैं जिनमें से एक को राज्य का अगला राज्यपाल बनाया जा सकता है।
राज्य में राज्यपाल शासन को लागू करने के बाद से ये पद राज्य की कानून और व्यवस्था की दयनीय स्थिति के लिए आने वाले महीनों में निर्णायक साबित होगा। ऐसे में वो कौनसे तीन नाम हैं जो राज्यपाल के लिए सबसे प्रमुख नामों में से एक हैं ?
सुब्रमण्यम स्वामी: बीजेपी सांसद और वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी इस पद के लिए संभावित नामों में से एक हैं। सुब्रमण्यम स्वामी एक कट्टर राष्ट्रवादी हैं और वो सुरक्षा बलों का समर्थन हर तरह से समर्थन करेंगे। वो कानूनों और नियमों से भी अच्छी तरह से वाकिफ हैं और उनका तेज दिमाग कश्मीर की स्थिरता को बनाने में काफी सहायक होगा। सुब्रमण्यम स्वामी ने वास्तव में बीजेपी के समर्थन वापस लेने से पहले ही ये भविष्यवाणी की थी कि राज्य में राज्यपाल शासन होगा। राज्यपाल के रूप में सुब्रमण्यम स्वामी की नियुक्ति के साथ एकमात्र नकारात्मक पक्ष ये है कि इससे उन्हें देश के अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर से ध्यान हटाना पड़ेगा। नेशनल हेराल्ड मामले में नेहरू-गांधी परिवार से लेकर को अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर मामले तक में सुब्रमण्यम स्वामी अकेले ही सबपर भारी रहे हैं और दोषियों की रातों की नींद उड़ाकर रख दी है। राज्यपाल के रूप में उनकी नियुक्ति राज्य के लिए तो बहुत अच्छा होगा लेकिन व्यापक रूप से राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक साबित होगा।
जनरल सैयद अता हसनैन: पद के लिए अगले सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार जनरल सैयद अता हसनैन हैं जो भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त 3-स्टार जनरल हैं। उन्होंने कश्मीर के हालात को काबू करने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है और उन्होंने घाटी में लोगों से जुड़ने के लिए ‘हार्ट डॉक्ट्राइन’ शुरू किया था जिससे कश्मीर घाटी के हालात में काफी सुधार हुए थे। उनके द्वारा बड़े पैमाने पर राष्ट्रवादी लहर का प्रभाव भी जमीनी स्तर पर देखने को मिला था। उनकी अंतर्दृष्टि निश्चित रूप से कश्मीर में आतंकवादियों और अलगाववादियों और सीमा पार की गतिविधियों पर नियंत्रण करने में सशस्त्र बलों को मदद करेगी। वो घाटी के निवासियों के बीच एक लोकप्रिय चेहरा हैं और वो आतंकियों के खिलाफ अपने सख्त रुख और आम नागरिकों के प्रति नर्म रवैये की वजह से लोकप्रियता का आनंद उठाते हैं। जनरल सैयद अता हसनैन जम्मू और कश्मीर के बारामूला में 19 इन्फैन्ट्री डिवीजनों को एक मेजर जनरल के रूप में कमांड कर चुके हैं जो एक्सवी कॉर्प्स की संपूर्ण दिशा में काम करते थे। वो 2010 में कश्मीर में जीवीओ के रूप में कश्मीर के एक्सवी कॉर्प्स लौट गये थे तब उन्होंने राज्य में सुरक्षा परिदृश्य में सुधार करने के लिए अथक रूप से काम किया था। जनता के प्रति उनके नर्म दृष्टिकोण का अध्ययन किया गया और इसकी व्यापक रूप से सरकार द्वारा सराहना भी की गयी थी। 2013 को लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन को दिल्ली की राजधानी फाउंडेशन सोसाइटी द्वारा अपना पहला नागरिक सम्मान दिया गया था। वो पहले से ही पाकिस्तान के साथ ट्रैक 2 की कूटनीति के महत्वपूर्ण सदस्य रहे हैं और वो देश की राजधानी में विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन से भी जुड़े हैं। उनके अतीत के कार्यकाल को देखते हुए उन्हें कश्मीर में आतंकी और अलगाववादी हिंसा के कठिन दौर में उपयुक्त उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है।
The way the trends are today, it appears the Ram Temple by October this year, Ram Setu as a national monument, TDK, Bambino, Bottle Goon, PC MC BC, cousin AC & Bahu, GST etc., in jail, J&K under Central Rule, and hence 300+ LS seats for BJP in May 2019
— Subramanian Swamy (@Swamy39) June 13, 2018
मेजर जनरल गगनदीप बक्षी: मेजर जनरल गगनदीप बक्षी भी एक कट्टर राष्ट्रवादी और तेज तर्रार नेता हैं जिनका नाम इस पद के लिए चर्चा में है। राज्यपाल के रूप में जनरल जीडी बक्षी की नियुक्ति को बड़े पैमाने पर आतंकवादियों पर क्रैकडाउन के रूप में देखा जा रहा है जो कश्मीर घाटी में हिंसा को बढ़ावा देते हैं। उन्हें कारगिल ऑपरेशन में बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया था। वो कश्मीर और पंजाब में कई आतंकविरोधी अभियानों का सफल नेतृत्व कर चुके हैं। इसके अलावा उन्हें कारगिल ऑपरेशन में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए विशिष्ट सेवा मेडल भी प्राप्त है।
दोनों जनरल गगनदीप बक्षी और जनरल सैयद अता हसनैन इस पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं। दोनों के बीच एकमात्र अंतर राज्य के मुद्दों को हल करने के लिए उनके दृष्टिकोण में है। जनरल गगनदीप बक्षी कड़े रुख के साथ आतंकवादियों का सफाया करते हैं और शायद यही भारत की जरूरत है वहीं, जनरल हसनैन नागरिकों के लिए अपने नर्म सैन्य दृष्टिकोण के साथ आतंकवादियों का सफाया करना जारी रखेंगे।
केंद्र सरकार राज्यपाल एनएन वोहरा के बाद किसी एक नाम पर अपनी आखिरी मोहर लगा सकती है। आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जायेगा कि जम्मू-कश्मीर का नया राज्यपाल कौन होगा। राज्यपाल का पद आज से अन्य दिनों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण भी है और ऐसे में कश्मीर घाटी के प्रभारी के रूप में सर्वश्रेष्ठ उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त करने की जरूरत है।