राज्य विधान सभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बावजूद जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन कर्नाटक में सरकार बनाने में कामयाब रहे। ये गठबंधन ट्रस्ट वोट जीतने में कामयाब रही और 6 महीने के लिए सरकार गठित हो गयी क्योंकि अब 6 महीने के लिए कोई ट्रस्ट वोट नहीं होगा लेकिन ऐसा लगता है कि इस सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस किसी भी तरह से गठबंधन में आ गयी और जेडीएस को खुश करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही। गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने सीएम पद के साथ समझौता किया और वित्त मंत्रालय जैसे प्रमुख मंत्रालय भी अपने सहयोगी जेडीएस को दे दिए। कांग्रेस ने कई मंत्रालयों के साथ समझौता किया और अब अपने विधायकों को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं बचा है। हालांकि उनके कुछ नेताओं को पोर्टफोलियो मिला है लेकिन सिद्धारमैया जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के हाथ कुछ नहीं लगा जिन्होंने पार्टी के काफी कुछ किया है।
लिंगायत महासभा की मदद से कांग्रेस का एक बड़ा भाग विद्रोह कर रहा है क्योंकि महासभा इस तथ्य से नाखुश है कि मंत्रालय के वितरण में लिंगायतों को नजरअंदाज कर दिया गया है। इस विद्रोह का नेतृत्व वरिष्ठ लिंगायत नेता एम बी पाटिल अन्य वरिष्ठ नेताओं जैसे रोशन बैग, रामलिंगा रेड्डी, दिनेश गुंडुराव, शमानुर शिवाशंकराप्पा और सतीश जरकीहोली के साथ कर रहे हैं जिन्हें मंत्रालयों से दूर रखा गया था। एम बी पाटिल के समर्थकों ने विजयपुरा में बंद का ऐलान करने की योजना बनाई है क्योंकि उनके नेताओं को कैबिनेट बर्थों से वंचित कर दिया गया है। राज्य में सबसे शक्तिशाली लिंगायत समुदाय की जनसंख्या राज्य में 17 प्रतिशत है। कर्नाटक राज्य में अधिकांश राजनेता और मुख्य मंत्री इसी समुदाय से हैं।
लिंगायत महासभा सबसे शक्तिशाली संगठन है राज्य में इसका समर्थन आधार काफी बड़ा है। महासाभा लिंगायत मठ और शैक्षिक संस्थान चलाता है, और चुनाव जीतने या सरकार को आसानी से चलाने के लिए इसका समर्थन महत्वपूर्ण माना जाता है। उत्तर कर्नाटक में लिंगायत सबसे प्रभावशाली समुदाय हैं और आजादी के बाद से इस समुदाय ने राज्य पर लगभग सबसे ज्यादा समय तक के लिए शासन किया था। इसलिए, कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन द्वारा उनके नेताओं को अनदेखा करना लिंगायत समुदाय आसानी से नहीं जाने देगा। लिंगयतों के मुकाबले वोक्कालिगा समुदाय को सरकार से अच्छा फायदा मिला है, क्योंकि मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी और डीके शिवकुमार जैसे कई अन्य शक्तिशाली मंत्री इसी समुदाय से आते हैं। तथ्य ये है कि वोक्कालिगा को सरकार बनने से काफी फायदा हुआ है जबकि लिंगयायत समुदाय को निराशा हाथ लगी है। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री जी परमेश्वर ने सुझाव दिया कि समुदाय को शांत करने के लिए लिंगायत समुदाय को प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। हालांकि, बैंगलोर के एक प्रमुख ब्राह्मण नेता दिनेश गुंडुराव के साथ ये मामला कुछ अच्छा नहीं रहा जिन्हें पहले पीसीसी के मुख्य पद के उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था।
डीके शिवकुमार और आर वी देशपांडेय जैसे कांग्रेस नेता विद्रोह करने पहुंचे और कहा कि जिन्होंने मंत्रालय छोड़ा है उन्हें बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाए और पद को कैबिनेट रैंक के लिए बढ़ाया जायेगा लेकिन वो इन नेताओं को शांत करने में नाकाम रहे हैं। ऐसा लगता नहीं है कि नेतृत्व इससे खुश हैं कि उन्हें 6 महीने के लिए सत्ता मिल गयी है लेकिन फिर ऐसा लगता है कि उन्हें 6 महीने की सत्ता से ही खुश होना पड़ेगा। विद्रोह से मंत्रालयों के आवंटन में देरी हुई है जिसके लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी को अंतिम फैसला लेना पड़ा।