मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के पिपलिया मंडी शहर में पिछले साल 6 जून को दो स्थानों पर हुए पुलिस द्वारा चलाई गयी गोलीबारी में पांच किसानों की मौत हुई थी। पांच किसानों की मौत की दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर भी कांग्रेस ने राजनीतिकरण किया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके केबल ने पिछले वर्ष पूरी घटना के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली बीजेपी सरकार को दोषी ठहराया था। उन्होंने मुख्यमंत्री को सशस्त्र बलों द्वारा फायरिंग किये जाने के लिए दोषी ठहराया था। इसी महीने 6 जून को मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर पुलिस फायरिंग की पहली बरसी के मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रैली कर इस मुद्दे को राज्य के आगामी चुनावों के लिए उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया था। कांग्रेस नेतृत्व के आधारहीन आरोपों को जस्टिस जे.के जैन आयोन द्वारा खारिज कर दिया गया है। इस मामले की रिपोर्ट में सीएम चौहान और उनकी सरकार पर लगाये गये सभी आरोपों पर स्पष्टीकरण दिया गया है।
जे.के जैन की अध्यक्षता में जांच पैनल ने अपनी रिपोर्ट में आंदोलन के दौरान किसानों पर हुई फायरिंग से हुई मौत के मामले में मध्य प्रदेश पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को क्लीनचीट दे दी है। आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि तत्कालीन स्थिति को देखते हुए सीआरपीएफ और मध्य प्रदेश पुलिस बलों ने आत्म-रक्षा के लिए गोली चलाई थी जो आवश्यक और न्यायसंगत था। न्यायमूर्ति जे.के जैन आयोग का गठन किसानों की हुई मौत की जांच के लिए शिवराज सिंह चौहान द्वारा किया गया था। स्वतंत्र समिति द्वारा पेश की गयी इस रिपोर्ट ने कांग्रेस और अन्य द्वारा राज्य सरकार पर लगाये गये आरोपों को ख़ारिज कर दिया है जो इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश में लगे हुए थे।
पैनल की रिपोर्ट का कुछ हिस्सा प्रेस द्वारा लीक हो गया है जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सीआरपीएफ कर्मियों द्वारा गोलीबारी की पहली घटना को अंजाम पिपलिया मंडी शहर के पास भाई विश्वनाथ चौपाटी में दिया गया था। सीआरपीएफ कर्मियों को तब सभी उत्तेजित किसानों ने घेर लिया था और उनपर पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी थी। सुरक्षा कर्मियों ने अपने आप को बचाने की कोशिश की थी लेकिन दो सीआरपीएफ कर्मियों को किसानों की भीड़ ने पकड़ लिया और उनकी राइफल छिनने की कोशिश की और कुछ अन्य कर्मियों ने जब अपने सहयोगी की मदद करने की कोशिश की तो उन पर भी हमला किया गया। सीआरपीएफ के कर्मियों द्वारा बार-बार चेतावनी दिए जाने के बाद भी किसान पीछे नहीं हटे आखिर में कोई रास्ता न बचने पर सुरक्षा कर्मियों ने फायरिंग की। इस फायरिंग में दो आंदोलनकारी किसानों की मौत हो गयी थी जबकि तीन घायल हो गये थे।
इस घटना के दो घंटे बाद दोहपहर के समय में पिपलिया मंडी पुलिस स्टेशन में दूसरी घटना हुई। पुलिस स्टेशन को 1,500-2,000 विरोधी भीड़ ने घेर लिया था। एकत्रित हुई किसानों की भीड़ पुलिस कर्मियों की बात सुनने के मूड में नहीं थी। ड्यूटी पर मौजूद पुलिस ने भीड़ को आंसू गैस के गोले और लाठीचार्ज से फैलाने की कोशिश भी की थी लेकिन पुलिस की ये कोशिश की नाकाम रही थी। भीड़ लगातार पुलिसकर्मियों पर हमले कर उन्हें चोटिल कर रही थी। ड्यूटी पर मौजूद कर्मी खतरे से घिर गये थे यहां तक भीड़ उन्हें जीवित ही जलाने की कोशिश करने लगी।
न्यायमूर्ति जेके जैन आयोग द्वारा पेश की गयी रिपोर्ट में जो निष्कर्ष सामने आया है वो चौंका देने वाला है और ये कांग्रेस नेतृत्व की घृणास्पद राजनीति को उजागर करता है। कांग्रेस नेताओं ने अक्सर हमारे वर्दी धारण किये पुरुषों को दोषी ठहराया है और अतीत में कभी भी उनका समर्थन नहीं किया है और चौंकाने वाली बात तो ये है कि वो इसके बावजूद सुरक्षा बलों से बेहतर सुरक्षा की मांग करते हैं। शिवराज सिंह चौहान को पिछले वर्ष हुई घटना की जड़ तक पहुँचने के लिए एक नई जांच के लिए आदेश देना चाहिए। हो सकता है इस जांच से कुछ चौंका देने वाले रहस्यों से पर्दा उठे जैसे भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस द्वारा की गयी जांच में कांग्रेस का माओवादी और नक्सल लिंक सामने आया था।