एक देश और उसके लोगों का इतिहास हमें सबसे दिलचस्प अनुरूपता, तथ्यों और संघर्षों के बारे में बताता है। अगर आपको इतिहास की थोड़ी जानकारी होगी तो वर्तमान समय में भारत-मंगोलिया के बीच का संबंध चीन के संबंध में देखना ज्यादा आकर्षक नजर आएगा। 12वीं शताब्दी में चंगेज खान ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली मंगोल साम्राज्य की स्थापना की थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चंगेज खान को दुनिया के सबसे महान शासक के रूप में सम्मानित किया। मंगोल साम्राज्य ने 100 से अधिक वर्षों तक चीन पर शासन किया था और ‘द ग्रेट खान’ के उत्तराधिकारी द्वारा पूर्वी एशिया से पश्चिमी यूरोप तक इस साम्राज्य का विस्तार किया गया था। बिना किसी कारण या अन्य वजहों से कभी भी मंगोल साम्राज्य ने सीधे तौर पर भारतीय महाद्वीप पर हमला नहीं किया। मध्य एशिया की तुर्क-मंगोल जनजाति जिन्होंने मंगोल साम्राज्य के शासकों से अपनी वंशावली का पता लगाया था उन्होंने भारत में मुगल सामराज्य की स्थापना की थी। ये कहना सही होगा कि 12 वीं शताब्दी के बाद से भारत, चीन और मंगोलिया एक-दूसरे के साथ संपर्क में थे, वहीं चीन पर लंबे समय तक मंगोलिया ने राज किया था।
अब समय बदल चुका है चीन अब संयुक्त राष्ट्र के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ताकतवर देश है। चीन ने किंग राजवंश के शासन के दौरान मंगोलिया पर शासन किया था लेकिन 1946 में उन्होंने अपनी आजादी को पहचाना था। तबसे स्वतंत्र होने के बाद भी वो चीन पर अपने व्यापार और वाणिज्य के लिए काफी निर्भर है। ये राष्ट्र चीन के दूसरे प्रांत की तरह है जिसका केंद्रीय प्राधिकरण मंगोलिया की सरकार पर अपने फरमानों को थोपती रहती है। मंगोलिया के लोगों में चीन के खिलाफ नाराजगी 2017 में बढ़ी थी जब मंगोलिया ने चीन के एक बड़े आलोचक खाल्टमा बटुलगा को देश का राष्ट्रपति चुना था। खाल्टमा बटुलगा अपने चुनावी अभियान के दौरान बीजिंग से ज्यादा आर्थिक आजादी की वकालत की थी और उन्होंने चीन की नीतियों की आलोचना की और रूस और चीन से परे ध्यान केंद्रित करने के लिए “तीसरी पड़ोसी नीति” की वकालत की थी।
इस अवसर का लाभ उठाते हुए भारत ने इस देश को ‘तीसरा पड़ोसी’ की नीति को लागू करने के लिए मदद का हाथ बढ़ाया। जब मंगोलिया कभी सबसे शक्तिशाली साम्राज्य हुआ करता था तब हमारी मातृभूमि पर हमला नहीं करने के लिए आज मंगोलिया के आभार का भारत भुगतान कर रहा है। मंगोलिया ने रूस से आयातित ईंधन पर निर्भरता समाप्त करने के लिए शुक्रवार को अपना पहला तेल संयंत्र लांच किया जो मंगोलिया के कुल आयात का 18 प्रतिशत है। इस परियोजना के लिए भारत सरकार ने मंगोलिया को एक अरब अमेरिकी डॉलर की मदद की है। रिपोर्ट के अनुसार इस तेल संयंत्र की क्षमता प्रति वर्ष 1.5 मिलियन मीट्रिक टन तेल की है। ये सालाना 560,000 टन गैसोलीन, 670,000 टन डीजल ईंधन और 107,000 टन लिक्विफाइड गैसो का उत्पादन करेगा। मंगोलिया में एक बड़े उद्घाटन समारोह में गृह मंत्री राजनाथ सिंह और मंगोलिया के प्रधानमंत्री यू. खुरलसुख शामिल हुए। मंगोलिया के पास पर्याप्त तेल भंडार है लेकिन उन्हें रूस से परिष्कृत तेल आयात करना पड़ता है क्योंकि उनके पास कोई तेल संयंत्र नहीं हैं। इस देश को रूस से परिष्कृत तेल आयात करने के लिए सस्ती कीमतों पर पड़ोसी चीन को अपने कच्चे तेल को बेचना पड़ता है। डीडी न्यूज़ के मुताबिक ये रिफाइनरी मंगोलिया के सकल घरेलू उत्पाद को 10 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है। मंगोलिया अपने कच्चे तेल को संसाधित करने के लिए इस रिफाइनरी का उपयोग करेगा जिसे अभी तक चीन को बेचा जाता है। चीन मंगोलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और 90 प्रतिशत मंगोलिया के निर्यात उसके दक्षिणी पड़ोसी के पास जाते हैं।
मंगोलिया मुख्य रूप से एक बौद्ध देश है। इस देश ने 2015 में दलाई लामा को अपने यहां आमंत्रित किया था। दलाई लामा की यात्रा चीन को रास नहीं आयी थी और उसने मंगोलिया से आयात होने वाली चीजों पर शुल्क लगा दिया और आयात करने वाले साधनों पर भी अतरिक्त शुल्क लगा दिया। भारत ने एक रिफाइनरी की स्थापना में मंगोलिया की मदद करके चीन को उचित जवाब दिया है क्योंकि चीन ने हिंद महासागर में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए भारत के पड़ोसी देशों में बुनियादी ढांचों का निर्माण कर रहा है। जब हमने भारत और मंगोलिया के बीच आधुनिक संबंध को देखा तो पाया कि भारत के उपमहाद्वीप पर हमला नहीं करने के लिए मंगोलिया के लोगों को वापस भुगतान करने का ये सबसे बढ़िया तरीका है।