बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार देश के सबसे चतुर नेताओं में से एक हैं क्योंकि वो महत्वपूर्ण मतदाता आधार के बिना ही एक दशक से भी ज्यादा समय से राज्य में शासन कर रहे हैं। योगेंद्र यादव जैसे शीर्ष पेशेवरों की तुलना में वो एक बेहतर चुनाव विश्लेषक हैं क्योंकि वो हमेशा ही विजेता पार्टी के साथ गठबंधन में रहे हैं। महागठबंधन से खुद को अलग करने के बाद से उनकी पार्टी लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के खिलाफ लगभग हर चुनाव हार गयी। वो इस तथ्य से पूरी तरह से अवगत हैं कि बीजेपी उनकी पार्टी को कुछ सीट देगी यदि वो 2019 के लोक सभा चुनावों में साथ जाते हैं। पिछले दशक से सत्ता में होने के बावजूद जेडीयू अपने दम पर चुनाव जीतने में सक्षम नहीं है क्योंकि जेडीयू का शासन गठबंधन पार्टी द्वारा वोट स्थानांतरित करने पर निर्भर है।
रविवार को पटना में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) कोर कमेटी की बैठक हुई और इस दौरान एकतरफ घोषणा की गयी कि नितीश कुमार बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे। इस घोषणा के जरिये वो इस ओर भी इशारा कर रहे थे कि गठबंधन में उनकी पार्टी सबसे बड़ी निर्वाचक है, 2015 के चुनाव में उनकी पार्टी ने बीजेपी की 53 सीटों के खिलाफ 71 सीटें जीती थीं। आत्मनिर्भरता के उनके इस दावे को एक चाल के रूप में देखा जा रहा है ताकि दबाव में आकर बीजेपी 40 लोकसभा सीटों को जेडीयू की संतुष्टि के लिए उसके खाते में स्थानांतरित कर दे। इसे गठबंधन में दरार के रूप में देखा जा रहा था लेकिन नितीश कुमार ने वंशवाद राजनीति पर हमला करके अपने पार्टी के सदस्यों द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई कर दी। उन्होंने कहा, “आज के युवाओं में वैसा दम नहीं है जैसा उनके जमाने के छात्र आंदोलनों में हुआ करता था। आजकल लोग परिवार के भरोसे राजनीति में अपना भाग्य आजमा रहे हैं।” इस बयान के जरिये नितीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस पर करारा हमला बोला और उनके इस बयान ने बीजेपी के साथ गठबंधन की मजबूती की पुष्टि की। बिहार में मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के सवाल पर उन्होंने कोई प्रत्यक्ष बयान देने से मना कर दिया और कहा, “लोग मुझे बिहार में मौजूदा स्थिति पर टिप्पणी करने को कह रहे हैं। मुझे नहीं पता कि वो क्या सुनना चाहते हैं। मैं हमेशा लोकतंत्र को मजबूत बनाने से जुड़ी बातें करता रहा हूं। हम जनता के लिए काम करते हैं।“
आरजेडी और कांग्रेस पर हमला करने के नितीश के फैसले ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उनकी पार्टी द्वारा उन्हें बिहार में एनडीए का चेहरा घोषित करना सिर्फ एक दाव था ताकि वो सीटों के समझौते के लिए पार्टी का सहारा पा सकें। वो अच्छी तरह से जानते हैं कि महागठबंधन के लिए फिर से हाथ मिलाने का विकल्प नहीं बचा है क्योंकि आरजेडी खुद ही जेडीयू से हाथ नहीं मिलाना चाहती है। आरजेडी ने हर चुनाव में जेडीयू को हराया है और यही वजह है कि आरजेडी हाथ नहीं मिलाना चाहती है। ऐसे में बीजेपी ही जेडीयू के लिए एकमात्र विकल्प है। 2014 में लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी जेडीयू के बिना ही आगे निकल गयी थी, तब बीजेपी ने 22 सीटें जीतीं थी और उसके सहयोगियों ने 9 और सीटें जीतीं, जिससे एनडीए की संख्या 31 हो गई। इसके अलावा, बीजेपी में 24.4 फीसदी के साथ बिहार में सबसे ज्यादा वोट शेयर हैं। पिछले चुनाव में 7.9 4% की वृद्धि हुई है। जेडीयू अपने दम पर सिर्फ दो सीटें ही जीत पायी थी और इसका वोट शेयर सिर्फ 15.8 फीसदी था, और पिछले चुनाव में इसके वोट शेयर में 8.24 फीसदी से गिरावट आई थी, इसलिए ये स्पष्ट है कि पार्टी अकेले चुनाव जीतने में सक्षम नहीं है।
शिवसेना ने अभियान में ‘उठा महाराष्ट्र’ के नारे के साथ उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र में एनडीए का प्रमुख चेहरा बनाने की कोशिश की थी। इसका नतीजा वैसा नहीं था जैसा कि उद्धव ठाकरे ने उम्मीद की थी बल्कि वो फिर अलग राह पर चल दिए, प्रमुख चेहरे की तस्वीर में देवेंद्र फडणवीस आये और बाकि इतिहास बनकर रह गये। मोदी-शाह की जोड़ी की आक्रामक राजनीति ने उन्हें गठबंधन में दूसरा खेल खेलने से पहले ही सीमित कर दिया और अब फडणवीस अपने राजनीतिक कौशल से उन्हें गुमनामी की ओर धकेल रहे हैं।